बिहार की सियासत में एनडीए का ‘चिराग’ बनने की कोशिश में जूनियर पासवान!

नीतीश कुमार का आखिरी हो सकता है आगामी बिहार विसचु, ऐसे में नीतीश की सियासी जमीन पर अपनी फसल काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं चिराग पासवान. 

chirag paswan ljp (r) bihar
chirag paswan ljp (r) bihar

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान किया है. यह पहली बार होगा कि चिराग किसी विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत को आजमाएंगे. चिराग पासवान ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर बिहार की सियासत में खलबली मचा दी है. वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने ये भी फैसला लिया है कि चिराग किसी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि प्रदेश की किसी सामान्य श्रेणी की सीट से चुनाव लड़ेंगे. अब यह सवाल बार बार सियासी ​गलियारों में उठ रहा है कि आखिर क्यों चिराग पासवान राज्य की राजनीतिक में उतरना चाह रहे हैं, जबकि चिराग पासवान और उनके पिता रामविलास पासवान स्वयं भी केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे थे.

इसका जवाब है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. संभवत: नीतीश कुमार का यह अंतिम चुनाव होगा. उसके बाद बिहार को नीतीश के किसी उत्तराधिकारी की आवश्यक होगी. बिहार में कांग्रेस के हासिए में आने के बाद राजद भी थोड़ी कमजोर हुई है जिससे तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटते हुए दिख रहा है. वहीं बीते कुछ सालों में एनडीए वहां मजबूत हुई है. फिलहाल बीजेपी में ऐसा कोई दावेदार नजर नहीं आता तो बिहार की कमान को संभाल सके. बस इसी विकल्प को पैदा करने के लिए चिराग आगे आ रहे हैं. हालांकि ये तैयारी 2025 के बिहार विस की नहीं है, बल्कि 2030 के विस चुनाव को लेकर है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जूनियर पासवान नीतीश की सियासी जमीन पर अपनी फसल काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वह खुद को स्थापित करके एनडीए के सामने एक मजबूत चेहरा पेश करना चाहते हैं.

खुद को मजबूती से स्थापित करना चाहते हैं चिराग

दरअसल, चिराग पासवान को लेकर एक बात दबी जुबान में बार-बार कही जाती है कि वह दिल्ली यानी केंद्र के नेता हैं. हालांकि, भविष्य को देखते हुए चिराग खुद केंद्र की राजनीति से बिहार की सियासत में शिफ्ट होना चाहते हैं. उनका बिहार चुनाव में सक्रियता से उतरने का फैसला सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य की मजबूती की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. चिराग पासवान के सामने सबसे बड़ी चुनौती है तेजस्वी के सामने स्थापित करना. तेजस्वी बिहार के नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं. ऐसे में चिराग पासवान खुद को तेजस्वी के मुकाबले खुद को स्थापित करना चाहते हैं. उनके इस कदम के पीछे नीतीश के विकल्प के रूप में उभरना और तेजस्वी यादव के मुकाबले खुद को स्थापित करना है. साथ ही अपनी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश भी है.

कमजोर होती एलजेपी के लिए बूस्टर डोज

यह हकीकत है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी कमजोर हुई है. चाचा-भतीजे की लड़ाई में तो पार्टी का भी नुकसान हुआ है. चाचा पशुपति पारस की नाराजगी ने पार्टी को दो हिस्सों में तोड़ दिया है. हालांकि, चिराग ने उसे पाटने की कोशिश की है. चिराग पासान की एलजेपी (आर) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटें जीतकर 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया. अब वह विधानसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराकर पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत करना चाहते हैं. उनकी रणनीति दलित वोटों, खासकर पासवान समुदाय को एकजुट करने की है, जिसमें उनके चाचा सेंधमारी में लगे हैं.

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चिराग और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच रामविलास पासवान की विरासत को लेकर लंबे समय से टकराव है. साल 2024 में बीजेपी ने चिराग को समर्थन दिया था. इससे पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी हाशिए पर चली गई. अब चिराग के विस में उतरने की चाल से ऐसा लग रहा है कि चिराग इस चुनाव में चाचा को सियासी रूप से पूरी तरह खत्म करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वहीं स्थानीय राजनीति में उतरने से पार्टी मजबूत होगी और उनका चुनाव जीतना एक बूस्टर डोज की तरह काम करेगा.

बिहार को चाहिए एक युवा बिहारी चेहरा

एनडीए को कब से बिहार में एक युवा फेस की तलाश है. ऐसे में चिराग की नजर उस बात पर भी जरूर होगी.  अब तक दिल्ली की सियासत करने वाले चिराग पासवान यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वह बिहार की मिट्टी से जुड़कर रहने वाले जमीनी नेता हैं. इतना ही नहीं, चिराग खुद को बिहार में नीतीश और तेजस्वी जैसे नेताओं का विकल्प बताने का भी प्रयत्न कर रहे हैं. स्थानीय चुनावों में उम्मीदवारी पेश कर चिराग एनडीए में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में खुद को पेश करते हुए दिखाई दे रहे हैं. बहरहाल, आने वाले दिनों में चिराग के इस फैसले से बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

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