पॉलिटॉक्स ब्यूरो. चुनाव आयोग को दी गयी जानकारी के मुताबिक 2018-19 में भारतीय जनता पार्टी को बतौर चंदा कुल 800 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. इसमें सबसे अधिक चंदा टाटा समूह द्वारा नियंत्रित संस्था प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने दिया है. यह चंदा कुल 356 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. ये आंकड़े चुनाव आयोग में जमा किए गए दस्तावेजों के मुताबिक है. इस पर भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने ट्वीट कर तंस कसा है.
स्वामी ने ट्वीट पोस्ट करते हुए लिखा, ‘टाटा ने भाजपा को भारी राशि चंदे में दी है. अगर सरकार एअर इंडिया की कमान टाटा को सौंपती है तो यहां कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट होगा.’ यानि सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि अगर टाटा ग्रुप को एयर इंडिया का अधिकार सौंपा जाता है तो ये एक सरकारी निर्णय न होकर व्यक्तिगत रूचि से प्रभावित होगा. बता दें, स्वामी के इस पोस्ट को अब तक 8.8 हजार लाइक और 736 कमेंट मिल चुके हैं. साथ ही 1.2 हजार लोगों ने इसे रीट्वीट किया है.
So Tata donates an hefty amount to BJP. Thus it would be a conflict of interest to had over Air India to him
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 13, 2019
बता दें कि भाजपा ने सालभर में पार्टी को मिले चंदे की जानकारी के दस्तावेज चुनाव आयोग को जमा कराए हैं. ये आंकड़े 31 अक्टूबर तक के हैं. इसके मुताबिक भाजपा को इस साल चेक और ऑनलाइन पेमेंट के जरिए कुल 800 करोड़ रुपए से अधिक का चंदा मिला है. वहीं कांग्रेस की बात करें तो ये आंकड़े केवल 146 करोड़ रुपये बनता है. इस अनुसार भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले 5 गुना से अधिक चंदा प्राप्त हुआ है.
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द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट भारत का सबसे धनी ट्रस्ट माना जाता है. इस ट्रस्ट को भारती ग्रुप, हीरो मोटोकॉर्प, जुबिलियेंट फूडवर्क्स, ओरिएंट सीमेंट, डीएलएफ, जेके टायर्स जैसे कॉरपोरेट घरानों का समर्थन मिला हुआ है. इस ट्रस्ट ने कांग्रेस को 39 करोड़ रुपए चंदा दिया है. आदित्य बिड़ला समूह के जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट भाजपा को 28 और कांग्रेस को 2 करोड़ रुपए बतौर चंदा दिया. इसके अलावा, ट्रिम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 5 करोड़, हार्मोनी ग्रुप ने 10 करोड़, जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट और न्यू डेमोक्रेटिक इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 2.5-2.5 करोड़ रुपए चंदे में दिए.
गौरतलब है कि राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से अधिक रकम वाले चैक और ऑनलाइन मिले चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. चुनावी बॉन्ड के रूप में प्राप्त चंदा इस जानकारी में शामिल नहीं होता. चुनाव संहिता के अनुसार राजनीतिक दलों के लिए वित्त वर्ष के दौरान मिलने वाले कुल चंदे का खुलासा करना आवश्यक है.