सीएम योगी और अखिलेश यादव के बीच फिर शुरू हुआ सियासी संग्राम, वजह बना ‘यश भारती सम्मान’

साल 2017 में भाजपा की सरकार आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पुरस्कार पर 'बैन' लगा दिया था, तभी से समाजवादी पार्टी सीएम योगी पर हमलावर बनी हुई है, अब योगी सरकार 'अटलजी संस्कृत पुरस्कार' देने की शुरुआत करने जा रही है

सीएम योगी और अखिलेश यादव के बीच शुरू हुआ सियासी संग्राम
सीएम योगी और अखिलेश यादव के बीच शुरू हुआ सियासी संग्राम

Politalks.News/Uttarpradesh. एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी सरकार और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच घमासान शुरू है. लेकिन इस बार दोनों के बीच सियासी जंग का कारण कोई बड़ा राजनीतिक एजेंडा नहीं है, बल्कि एक ऐसा पुरस्कार है जो सपा सरकार में खूब लोकप्रिय होता रहा है. हम बात कर रहे हैं ‘यश भारती सम्मान’ की. साल 2017 में भाजपा की सरकार आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पुरस्कार पर ‘बैन‘ लगा दिया था. तभी से समाजवादी पार्टी सीएम योगी पर हमलावर बनी हुई है.

भाजपा सरकार के यश भारती पुरस्कार को खत्म करने पर प्रदेश में आलोचना भी की गई थी. अब योगी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर ‘अटलजी संस्कृत पुरस्कार‘ देने की शुरुआत करने जा रही है. बता दें कि यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली विभूतियों को दिया जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने बजट 2021 के लिए इस पुरस्कार का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेज दिया है.

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गौरतलब है कि पर्यटन राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी ने फरवरी महीने में इस पुरस्कार की घोषणा की थी. अब विभाग ने 25 विभूतियों को पुरस्कार देने का प्रस्ताव तैयार किया है. पहला पुरस्कार पांच लाख रुपये पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर देने का प्रस्ताव रखा गया है, इसके अलावा 24 पुरस्कार में दो- दो लाख रुपये की राशि दी जाएगी. बता दें कि समाजवादी पार्टी सरकार में यश भारती पुरस्कार के अंतर्गत 11 लाख रुपये दिए जाते थे और 50 हजार रुपए की पेंशन भी दी जाती थी, लेकिन योगी सरकार ने यश भारती पेंशन को भी बंद कर दिया था. लेकिन जब इसकी चारों ओर आलोचना हुई तब जाकर यूपी सरकार ने इसे घटाकर 25 हजार महीने कर दिया.

वर्ष 1994 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया था यश भारती पुरस्कार

वर्ष 1994 में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यश भारती पुरस्कार योजना की शुरुआत की थी. पहले इस पुरस्कार की राशि एक लाख हुआ करती थी. आखिरी बार यह पुरस्कार साल 2006 में दिए गए थे. साल 2007 में जब राज्य में बसपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री मायावती ने इन पुरस्कारों को बंद कर दिया था. साल 2012 में सपा सरकार के आने पर अखिलेश यादव की पहल पर यह पुरस्कार फिर से साल 2015 में शुरू किए गए थे.

इसके बाद जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस पुरस्कार की राशि एक लाख रुपये से बढ़ाकर 11 लाख कर दी थी. बता दें कि यश भारती सम्मान उत्तर प्रदेश की सपा सरकार में बड़ा पुरस्कार माना जाता था. ये पुरस्कार साहित्य, समाजसेवा, चिकित्सा, फिल्म, विज्ञान, पत्रकारिता, हस्तशिल्प, संस्कृति, शिक्षण, संगीत, नाटक, खेल, उद्योग और ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले शख्सियत को दिया जाता था. बता दें कि इन पुरस्कारों के देने पर सपा सरकार के दौरान ही सवाल उठे थे.

सपा की यह पुरस्कार योजना और आजीवन पेंशन का प्रावधान विवादों में भी रहा

यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार में यश भारती पुरस्कार को लेकर कई बार विवाद भी सामने आए. इसके अलावा पुरस्कार पाने वाले को आजीवन पचास हजार रुपये की पेंशन दिए जाने का भी प्रावधान किया गया था. बाद में ये पुरस्कार योजना विवादों में घिर गई. साल 2017 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी की महत्वाकांक्षी यश भारती पुरस्कार पर पहले ही कैंची चला दी थी, यश भारती से सम्मानित लोगों को दी जाने वाली मासिक पेंशन बंद कर दी गई’. हालांकि बाद में योगी सरकार ने इसकी पेंशन आधी 25 हजार कर दी थी.

बता दें कि पिछले दिनों एक समारोह के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि सपा सरकार ने खेल प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार व उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सम्मान राशि के साथ यशभारती पुरस्कार देने की व्यवस्था की थी, लेकिन भाजपा सरकार ने बंद कर दिया. अखिलेश ने कहा कि प्रदेश में सपा सरकार आने पर ये पुरस्कार व सम्मान फिर से दिए जाएंगे. हालांकि सपा की सरकार बनेगी या नहीं, ये तो 2022 के विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगा.

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