‘क्या हमारी सुरक्षा इस देश के लिए एक मजाक है’?

सोशल मीडिया पर आज की हचलच

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. कहते हैं इंसाफ के मंदिर में देर है पर अंधेर नहीं. आज बड़े बुजुर्गों की ये कहावत थकी हुई सी लगती है. वजह- निर्भया केस में आज आया पटियाला हाउस कोर्ट का फैसला, जिसमें चारों दोषियों की फांसी दूसरी बार टल गई. 16 दिसम्बर, 2012 की वो रात भी इतनी गहरी नहीं रही होगी जितने साल निर्भया की मां की रातें इंसाफ की राह तकते तकते काली हो गई हैं. मामला 9 साल पुराना है लेकिन कल का ही लगता है. दोषियों के वकील फांसी का वक्त खींचने की पूर जोर कोशिश कर रहे हैं.

फांसी का फैसला आने से पहले तक चारों दोषियों ने कोई याचिका नहीं लगाई और जेल की रोटियां तोड़ते रहे. जब फांसी का फैसला आया तो उन्हें अपने परिवार, जिम्मेदारी और दया याचिकाओं की याद आई. फांसी से दो दिन पहले तक याचिकाएं भेजना जारी है तो फांसी का टलना भी बदस्तूर जारी है. देश की न्याय प्रणाली और लचर व्यवस्था एक बार फिर सोशल मीडिया ट्रेंडिंग में हैं. यहां एक बार और खास है. एक वकील वृंदा ग्रोवर जो खुद एक महिला हैं, न केवल दोषी को बचाने की कोशिश कर रही हैं, निर्भया की मां से उन्हें माफ करने को कह रही हैं.

खैर…अब सोशल मीडिया पर यूजर्स न केवल न्याय प्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं, अपितु महिला सुरक्षा को लेकर भी अपनी आवाज मुखर कर रहे हैं. कुछ दोषियों को इतने मौके देने पर प्रश्न कर रहे हैं तो कुछ ने कहा कि दोषियों को वो सब मिल गया जो वे चाहते थे. अन्य यूजर ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर जाहिर की है.

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