पॉलिटॉक्स न्यूज. सुप्रीम कोर्ट में देश का नाम ‘इंडिया’ से बदलकर भारत करने की मांग पर आज सुनवाई टल गई. याचिका पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ को सुनवाई करनी थी, लेकिन मंगलवार को सीजेआई की छुट्टी के कारण इसे टाल दिया गया. हालांकि अगली सुनवाई के लिए अगली तारीख तय नहीं की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि इंडिया नाम भारत सरकार की नाकामी और अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है. देश का नाम अंग्रेजी में भी ‘भारत’ करने से लोगों में राष्ट्रीय भावना बढ़ेगी और देश को अलग पहचान मिलेगी. यह याचिका दिल्ली के किसान नमह ने की है और जनहित याचिका दायर कर संविधान के आर्टिकल-1 में बदलाव की मांग की है.
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याचिकाकर्ता का कहना है कि प्राचीन काल से ही देश को भारत के नाम से जाना जाता रहा है, लेकिन, अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी से मिली आजादी के बाद अंग्रेजी में देश का नाम इंडिया कर दिया गया. अंग्रेज गुलामों को इंडियन कहते थे. उन्होंने ही देश को अंग्रेजी में इंडिया नाम दिया था. 15 नवंबर, 1948 को संविधान के आर्टिकल-1 के मसौदे पर बहस करते हुए एम. अनंतशयनम अय्यंगर और सेठ गोविंद दास ने देश का नाम अंग्रेजी में इंडिया रखने का जोरदार विरोध किया था. उन्होंने इंडिया की जगह अंग्रेजी में भारत, भारतवर्ष और हिंदुस्तान नामों का सुझाव दिया था लेकिन उस समय ध्यान नहीं दिया गया. हमें देश के प्राचीन इतिहास को भुलाना नहीं चाहिए इसलिए देश के असली नाम भारत को ही मान्यता दी जानी चाहिए.’ याचिकाकर्ता ने इस गलती को सुधारने के लिए कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश देेने की बात कही है.
बता दें, जैन संत आचार्य विद्यासागर भी इंडिया नाम को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. मुनी अपनी बातों और प्रवचनों में ‘भारत को भारत कहा जाए’ का जिक्र करते रहे हैं और 2017 से देशव्यापी अभियान भी चला रहे हैं. कुछ दिनों पहले ‘भारत बने भारत’ नाम से एक यू-ट्यूब चैनल भी शुरू किया गया है.
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आचार्य का कहना है कि जब हम मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर सकते हैं, गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर सकते हैं तो इंडिया को हटाकर भारत करने में क्या दिक्कत है? श्रीलंका जैसा छोटा सा देश पहले सीलोन के नाम से जाना जाता था लेकिन अब श्रीलंका के नाम से जाना जाता है तो हम क्यों गुलामी के प्रतीक इंडिया को थामे हुए हैं. हमें भी अपने गौरवशाली भारत नाम को अपनाना चाहिए.