‘सुप्रीम’ सुनवाई से पहले आदित्य ठाकरे को छोड़कर शिवसेना के 53 विधायकों को मिला नोटिस, जानें क्यों

आदित्य ठाकरे को नोटिस नहीं भेजने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह यह है कि शिंदे कैंप ने मातोश्री के प्रति सम्मान का दावा करते हुए आदित्य ठाकरे के खिलाफ के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का किया निर्णय, भागवत की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक सभी 53 विधायकों को सात दिनों के भीतर अपने बयान संबंधित दस्तावेजों के साथ स्पीकर के समक्ष पेश करने का दिया गया निर्देश

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Politalks.News/MaharashtraPolitics. बीते माह जून में महाराष्ट्र में आए सियासी तूफान के बाद सूबे में ठाकरे सरकार को गिराकर शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में नई सरकार का गठन भले ही हो गया, लेकिन प्रदेश सियासी हलचलों का दौर बदस्तूर लगातार जारी है. इस वक्त एक बड़ी खबर यह आ रही है कि विधानसभा अध्यक्ष ने आदित्य ठाकरे को छोड़कर शिवसेना के सभी 53 विधायकों को नोटिस भेजा गया है, जिसका उन्हें अगले सात दिवस में जवाब देना है. महाराष्ट्र विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. जिन विधायकों को नोटिस भेजा गया है उनमें एकनाथ शिंदे गुट के 39 और ठाकरे खेमे के 14 एमएलए शामिल हैं. दरअसल, दोनों ही खेमों की तरफ से तीन और चार जुलाई को पहले स्पीकर के चुनाव और फिर फ्लोर टेस्ट के दौरान व्हीप के उल्लंघन का आरोप लगाते हुआ सदस्यता रद्द करने की मांग की है. यहां आपको बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दोनों खेमे द्वारा दी गई याचिकाओं पर सुनवाई होनी है.

दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा के विशेष सत्र के पहले दिन 3 जुलाई को एकनाथ शिंदे गुट 39 बागी विधायकों ने स्पीकर पद के लिए भाजपा उम्मीदवार राहुल नार्वेकर के पक्ष में मतदान किया था. जबकि शिवसेना के ठाकरे गुट के 15 विधायकों ने नार्वेकर के खिलाफ मतदान किया था. उस दिन शिंदे गुट के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले ने उद्धव ठाकरे को छोड़कर बाकी ठाकरे गुट के 14 शिवसेना विधायकों के खिलाफ स्पीकर को याचिका दायर की थी.

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इसके दूसरे दिन विशेष सत्र के दौरान 4 जुलाई को एकनाथ शिंदे गुट के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले ने विश्वास मत के लिए शिवसेना के सभी विधायकों को एक लाइन का व्हिप जारी कर प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का निर्देश दिया था, जबकि दूसरी तरफ ठाकरे गुट के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु ने भी शिवसेना के सभी विधायकों को सरकार के पक्ष में मतदान नहीं करने का निर्देश दिया था. लेकिन कुल 40 शिवसेना विधायकों ने प्रस्ताव के पक्ष यानी सरकार के पक्ष में मतदान किया ( उस दिन एक विधायक विद्रोही खेमे में जुड़ गया था). जबकि 14 विधायकों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था. उसी दिन गोगावले ने स्पीकर राहुल नार्वेकर को याचिका दायर करते हुए कहा कि प्रस्ताव के पक्ष में मतदान नहीं करने वाले 14 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए. इसके बाद सुनील प्रभु ने भी एक याचिका दायर करते हुए कहा कि जिन शिवसेना विधायकों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट नहीं दिया उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए, उन्होंने उनमें से 39 का नाम लिया.

यहां आपको बता दें कि आदित्य ठाकरे को नोटिस नहीं भेजने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह यह है कि शिंदे कैंप ने मातोश्री के प्रति सम्मान का दावा करते हुए आदित्य ठाकरे के खिलाफ के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का निर्णय किया था. शिवसेना के इन 53 विधायकों से एक सप्ताह के अंदर जवाब मांगा गया है. भागवत की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक सभी 53 विधायकों को सात दिनों के भीतर अपने बयान संबंधित दस्तावेजों के साथ स्पीकर के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया गया है.

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गौरतलब है कि शिवसेना में विद्रोह शुरू होने और शिंदे के खेमे के सूरत के लिए रवाना होने के तुरंत बाद उद्धव ठाकरे ने शिंदे के स्थान पर अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल का नेता नियुक्त किया था, जबकि सुनील प्रभु को पार्टी का मुख्य सचेतक भी नियुक्त किया था. इसके बाद शिंदे ने स्पीकर का रुख किया और उन्हें फिर से शिवसेना विधायक दल का नेता नियुक्त किया गया और भरत गोगावाले को मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया. इस बीच प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा उठाए गए सभी प्रमुख मुद्दों पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.

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