मिशन पंजाब के बाद राजस्थान में चन्नी मॉडल को लेकर चर्चाएं तेज, गहलोत-पायलट नहीं तो तीसरा कौन?

पंजाब के बाद अब राजस्थान का नंबर, कोई वजह नहीं की अब बदलाव में हो कोई देरी, लेकिन पंजाब में चन्नी की नियुक्ति के बाद पायलट खेमे को लगा थोड़ा धक्का, क्या राजस्थान में भी किसी तीसरे को मिल सकती है सत्ता? सियासी गलियारों में इसको लेकर चर्चाओं का दौर शुरू

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Politalks.News/Rajasthan. पंजाब कांग्रेस में उठे सियासी बवंडर अब चरणजीत सिंह चन्नी के नाम के ऐलान के साथ ही थम चुका है. कांग्रेस सूत्रों की मानें तो अब आलाकमान का पूरा फोकस राजस्थान पर आ गया है. क्या पंजाब का प्रयोग राजस्थान में भी होगा? इसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा का दौर शुरू हो गया है. क्योंकि राजस्थान में भी पंजाब जैसे ही हालात हैं. आलाकमान काफी समय से मंत्रिमंडल में फेरबदल और सचिन पायलट गुट को सत्ता और संगठन में भागीदारी दिलाने की कोशिश कर रहा है लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अभी तक बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं. इस बीच सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा की ओर से किये गये ट्वीट ने नया ट्विस्ट ला दिया है. हालांकि बताया जा रहा है कि आलाकमान की झिड़की के बाद ओएसडी साहब का इस्तीफा तो ले लिया गया है. लेकिन अब जल्द ही राजस्थान की राजनीति में भी डवलममेंट देखने को मिल सकते हैं.

पंजाब के घटनाक्रम का असर राजस्थान कांग्रेस में आगे आने वाले दिनों में सत्ता संगठन में बदलाव में भी पड़ना तय माना जा रहा है. मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों और जिलाध्यक्ष-ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति में गहलोत पायलट खेमों के बीच पावर बैलेंस के हिसाब से बंटवारा जल्द किया जा सकता है. राजस्थान और पंजाब के हालात में जो अंतर है, वह मुख्यमंत्री के पास विधायकों की संख्या का है, राजस्थान में अब तक जादुई आंकड़े का नंबर गेम सीएम गहलोत के पक्ष में है.

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प्रदेश प्रभारी अजय माकन कह ही चुके हैं कि सीएम गहलोत के स्वस्थ होने का इंतजार है. हाल ही में एक पीसी के दौरान अजय माकन ने यह भी कहा था कि अगर सीएम की तबीयत खराब नहीं हुई होती तो अब तक मंत्रिमंडल विस्तार हो चुका होता और सारा रोडमैप तैयार है. वहीं दूसरी ओर खुद सीएम गहलोत भी स्वस्थ होने के संकेत दे चुके हैं. तो अब कोई वजह नहीं बनती है कि राजस्थान में बदलाव में कोई भी देरी हो.

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वहीं दूसरी और पंजाब में दलित कार्ड खेलते हुए आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर सिद्धू की हसरतों पर तो पानी फेर ही दिया है, इसके साथ ही राजस्थान में भी इसको लेकर चर्चाएं शुरू हो गई है कि कहीं आलाकमान यहां भी सीएम गहलोत और सचिन पायलट को छोड़ किसी तीसरे नेता को मुख्यमंत्री तो नहीं बना देगा. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जिस तरह का टकराव और गुटबाजी है, कमोबेश वही टकराव राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच जारी है. पॉपुलर लीडर बनाम अनुभवी नेता की जैसी लड़ाई पंजाब में कैप्टन व सिद्धू के बीच है लगभग वैसी ही राजस्थान में गहलोत व पायलट के बीच है. पंजाब में कैप्टन की मनमानी और हाईकमान की न सुनने से परेशान होकर कांग्रेस ने पहले उनके विरोध के बावजूद सिद्धू को पीसीसी चीफ बनाया और अब उनको सीएम पद से हटाने का अप्रत्यक्ष घटनाक्रम हुआ.

इस मामले में राजस्थान में भी पंजाब जैसे ही हालात हैं. हाईकमान काफी समय से मंत्रिमंडल में फेरबदल और सचिन पायलट गुट को सत्ता व संगठन में भागीदारी दिलाने की कोशिश कर रहा है लेकिन गहलोत अभी तक बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं. आपको बता दें, नवजोत सिंह सिद्धू लोकप्रिय हैं और क्राउड पुलर हैं लेकिन अमरिंदर गुट सिद्धू की कांग्रेस में निष्ठा को लेकर उन्हें कटघरे में खड़ा करता आया. कमोबेश ये ही राजस्थान में सचिन पायलट के साथ हो रहा है. अपने समर्थकों को मानेसर ले जाने की गलती करना पायलट को अभी भी भारी पड़ रही है.

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माना जा रहा है कि अमरिंदर को हटाने के पीछे बड़ी वजह एंटी इनकमबेंसी और सरकार के रिपीट होने के चांस कम माने जा रहे हैं. ये ही सवाल राजस्थान में अब सचिन पायलट और उनके समर्थक उठा रहे हैं. ‌गहलोत गुट को आशंका है कि पंजाब में बदलाव के बाद राजस्थान में बदलाव की मांग जोर पकड़ सकती है. पार्टी हाईकमान राजस्थान में भी वैसी ही सख्ती दिखा सकता है. और अगर आलाकमान यहां सख्ती दिखाता है तो सीएम पर किसे बैठाया जाता है ये देखने की बात होगी.

अगर सीएम गहलोत और पायलट कैंप की कलह का पंजाब फॉर्मूले से हल निकलता है तो राजस्थान में रोचक सियासी समीकरण बनने की पूरी संभावना है. पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी फॉर्मूला अगर राजस्थान में लागू होता है तो जो नाम सियासी गलियारों में उभर कर सामने आ रहा है वो सीपी जोशी का है. क्योंकि पहले भी वो एक वोट से हारने की वजह से सीएम बनते बनते रह गए थे. हालही में विधानसभा में जो सख्ती जोशी ने दिखाई थी वो क्या इसी का तो संकेत नहीं था. हालांकि पंजाब में कांग्रेस ने 32% दलितों को रिझाने के लिए भी चन्नी कार्ड खेला है, जबकि राजस्थान में अभी ऐसे कोई हालात नहीं हैं.

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वहीं पंजाब के घटनाक्रम से गहलोत सरकार में राजस्व मंत्री हरीश चौधरी के नए पावर सेंटर बनकर उभरने के संकेत मिल रहे हैं. अजय माकन के साथ हरीश चौधरी को पंजाब में नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए ऑब्जर्वर बनाकर भेजने से यही मैसेज गया है कि हरीश चौधरी की दिल्ली पर पकड़ बरकरार है. हरीश चौधरी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रह चुके हैं, इसलिए उन्हें पंजाब की सियासत की बारीकी से पकड़ है. हरीश चौधरी को आगे चलकर पंजाब का प्रभारी बनाए जाने की भी चर्चाएं हैं.

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