आपको शोभा नहीं देता ऐसा भाषण कटारिया साहब! अमर्यादित बयान की हो रही चारों तरफ निंदा

संघ प्रष्ठभूमि से आने वाले कद्दावर उम्रदराज नेता से प्रदेश के मुखिया के लिए इस तरह की भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती और वो भी तब जबकि आप 8 बार विधायक एक बार सांसद के साथ पूर्व शिक्षामंत्री रह चुके हैं

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. CAA के समर्थन में शुक्रवार को प्रदेश भाजपा द्वारा निकाली गई रैली को सम्बोधित करते हुए प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने जिस अशोभनीय भाषा में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर बयान दिया उसकी ना सिर्फ राजनीतिक हलकों में बल्कि ब्यूरोक्रेसी और मीडिया में भी थू-थू हो रही है. क्या भाजपा और उसके वरिष्ठ सदस्यों की इस तरह की टिप्पणी प्रदेश के मुखिया के लिए शोभा देती है? शायद नहीं…

एक सुधिजन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि गुलाबचंद कटारिया भाजपा के एक वरिष्ठ नेता हैं और उन्हें प्रदेश के मुखिया के लिए तू-तड़ाका और उनकी औकात को याद दिलाने जैसी बात और मुख्यमंत्री गहलोत के लिए दिये बयान कि “मैं अशोक गहलोत तुझे चुनौती देता हूं…, तेरी क्या औकात…, तेरी सात पुष्तियों को…” जैसी शब्दावली शोभा नहीं देती. उनके बयानों में प्रदेश के मुखिया के लिए इस्तेमाल बयान कि “तू क्या तेरी सात पीढ़ी भी इस कानून को लागू करेंगी” वाकई बहुत ही शर्मनाक है.

संघ प्रष्ठभूमि से आने वाले कद्दावर उम्रदराज नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से प्रदेश के मुखिया के लिए इस तरह की भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती. संघ का तो पहला पाठ ही शिष्टाचार का होता है. प्रदेश के पूर्व शिक्षामंत्री और गृहमंत्री रह चुके वरिष्ठ भाजपा नेता से इस तरह के बयानों की उम्मीद शायद ही कोई करता हो. ऐसा बयान कोई छुटभैया नेता किसी दूसरे छुटभैया नेता के लिए दे तो शायद समझ आता है, लेकिन 8 बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके गुलाब चंद कटारिया ऐसा बयान आखिर कैसे दे सकते है? आज का युवा जो राजनीति सिख रहा है या जिसने राजनीति में अभी कदम रखा हो वो आपसे क्या सीख लेगा?

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किसी ने कहा, ऐसा लगता है कि गुलाबचंद कटारिया केवल तालियां बटोरने और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए जोश ही जोश में ऐसा बेहूदा बयान दे गए. उन जैसे नेता के लिए इस तरह के भाषण न सिर्फ उनकी मानसिकता दर्शाते हैं, बल्कि ऐसा लगता है माननीय कटारिया जी सारी सभ्यता ही भूल गए हैं, क्योंकि संसद में जब कोई कांग्रेस का नेता माननीय प्रधानमंत्री के बारे में कोई एक शब्द भी इधर उधर का कुछ भी बोल देता है तो भाजपाई चिल्ला-चिल्ला कर पूरी संसद सर पर उठा लेते हैं और देशभर में माहौल बना देते हैं. अब जब राज्य के मुखिया के लिए जिस तरह के वो बयान दे रहे हैं क्या वो संसदीय भाषा है?

जब वो खुद देश के प्रधानमंत्री के बारे में कुछ भी गलत सुनना नहीं चाहते तो फिर अपने ही प्रदेश जहां वो रहते हैं के मुखिया के लिए इतनी गलत शब्दावली का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? माननीय कटारिया जी को ये बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो आचरण वो खुद के लिए और पार्टी बीजेपी के लिए दूसरों से चाहते हैं वो ही आचरण वो खुद भी दूसरों के साथ करें, क्या आरएसएस जो संस्कारों के लिए पहचानी जाती है क्या कटारिया सही में इस संगठन के एक वरिष्ठ कायकर्ता हैं? ये बात सोचनीय है!!!

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