कर्नाटक-गुजरात में BJP के प्रयोग, महाराष्ट्र में मराठा, हरियाणा में जाट, झारखंड में आदिवासियों की आस

चौंका रहे हैं भाजपा के नए (फैसले)प्रयोग, गुजरात में पटेलों की बल्ले-बल्ले करने के बाद और कर्नाटक में लिंगायत को साधने के बाद चर्चाओं का दौर, क्या हरियाणा में बनेगा जाट मुख्यमंत्री, झारखंड में आदिवासी और महाराष्ट्र में मराठा, ओबीसी कार्ड के सफल होने के बाद अब दबंग जातियों पर भाजपा की नजर

चौंकाने वाले फैसले ले रही है भाजपा!
चौंकाने वाले फैसले ले रही है भाजपा!

Politalks.News/Delhi. हिंदुत्व की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के पटेल राजनीति पर वापस लौटने के बाद कई और राज्यों में भाजपा के प्रयोगों पर सवाल उठने लगे हैं. गुजरात में पटेलों की बल्ले बल्ले कर दी गई है. मुख्यमंत्री समेत 8 मंत्री बनाए गए हैं. भाजपा ने हाल में जहां भी बदलाव किया वहां जातीय समीकरण में सबसे मजबूत जाति को ही तरजीह दी. कर्नाटक में लिंगायत मुख्यमंत्री हटाया तो लिंगायत को ही शपथ दिलाई गई. उत्तराखंड में ठाकुर मुख्यमंत्री की जगह उसी जाति का मुख्यमंत्री बनाया गया और गुजरात में जैन वैश्य समाज के विजय रुपाणी को हटा कर सबसे मजबूत पाटीदार समुदाय का मुख्यमंत्री बनाया. तभी यह सवाल है कि अब
भाजपा हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में क्या करेगी?

हरियाणा में जाटों की जगी उम्मीद!
हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में भाजपा ने बड़े साहसिक प्रयोग किए थे. भाजपा ने हरियाणा में जोखिम लेकर गैर जाट मुख्यमंत्री बनाया. हरियाणा के तीन लालों में एक लाल भजनलाल भी गैर जाट थे. वे बिश्नोई समाज से आते थे. लेकिन हरियाणा में भाजपा ने उससे भी एक कदम आगे बढ़ कर पंजाबी मुख्यमंत्री बना दिया. तब से भाजपा जाटों का विरोध झेल रही है. जाटों के विरोध के कारण भाजपा को विधानसभा चुनाव में जरूर नुकसान हुआ था लेकिन लोकसभा में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और सभी 10 सीटें जीत गई. लेकिन अब गुजरात के बाद तस्वीर बदल गई है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के भी सात साल पूरे होने वाले हैं. सो, हरियाणा के भी जाट नेता बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं. उनको लग रहा है कि गुजरात की तरह भाजपा हरियाणा में नया दांव चल सकती है.

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झारखंड में आदिवासियों की आस!
उधर झारखंड में एक बार फिर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा जोर पकड़ने लगी है. भाजपा ने 2014 के चुनाव के बाद वैश्य समाज के रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया था. यह भी बड़ी हिम्मत का काम था कि भाजपा ने आदिवासी बहुल राज्य में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया. वहां भी लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा और विधानसभा में भी ठीक ठाक प्रदर्शन रहा. पर सत्ता से बाहर होने के बाद भाजपा ने अपने पुराने नेता बाबूलाल मरांडी की पार्टी में वापसी कराई और उनको विधायक दल का नेता बनाया. गुजरात के बाद झारखंड के आदिवासी नेताओं को भी लग रही है कि अगला मौका मिलने पर भाजपा आदिवासी मुख्यमंत्री ही बनवाएगी.

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महाराष्ट्र में मराठा पर खेला जाएगा दांव!
इसी तरह महाराष्ट्र में भी भाजपा ने जोखिम लेकर गैर मराठा मुख्यमंत्री बनाया था. निकट अतीत में किसी ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मिसाल नहीं है. फिर भी भाजपा ने चुनाव जीतने के बाद देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया. अब जबकि भाजपा हर जगह मजबूत जाति को कमान देकर आगे की राजनीति कर रही है तो महाराष्ट्र में भी मराठा नेताओं की उम्मीद जगी है. उनको लग रहा है कि अगर भाजपा ने गुजरात का प्रयोग जारी रखने का फैसला किया तो महाराष्ट्र में भी अगला मौका मिलने पर मराठा मुख्यमंत्री बनेगा. ऐसा लग रहा है कि ओबीसी वोट पर पकड़ का भाजपा को ऐसा भरोसा हो गया है कि वह अब उससे इतर दबंग जातियों की राजनीति साधने के प्रयास कर रही है.

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