करारी हार के बाद गांधी परिवार को मिला शिवसेना का साथ, सामना के लेख में G-23 को बताया ‘सड़ा हुआ आम’

विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस में कलह! G-23 ग्रुप आज मिल रहा है डिनर पर, ग्रुप के अलावा अन्य नेताओं को भी भेजा गया न्योता, इस बीच गांधी परिवार के लिए सामना में लिखा लेख, सामना में लिखा- ‘जी-23’ के नेता हार पर कर रहे हैं विलाप, इनमें से कितने नेता चुनाव में जमीन पर उतरे थे? कितनों ने प्रत्यक्ष रूप से प्रचार में खुद को झोंका?

सामना के लेख में G-23 को बताया 'सड़ा हुआ आम'
सामना के लेख में G-23 को बताया 'सड़ा हुआ आम'

Politalks.News/ShivSenawithGandhifamily. यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी शिकस्त (Congress’s crushing defeat) मिली है. इसके बाद कांग्रेस में कलह बढ़ गई है. इस बीच आज पार्टी के ‘जी 23’ समूह के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के आवास पर बैठक करेंगे. इस डिनर पर पूरे देश की नजरें रहेंगी. इस बैठक से पहले गांधी परिवार को शिवसेना का साथ (Shiv Sena with Gandhi family) मिला है. शिवसेना (Shiv Sena) ने अपने मुखपत्र सामना (Samna) के संपादकीय में गांधी परिवार का समर्थन करते हुए जी-23 नेताओं (G-23 Leaders) की तुलना सड़े हुए आम से की है. साथ ही संपादकीय में राहुल और प्रियंका गांधी की तारीफ भी गई है साथ ही G-23 के नेताओं से सवाल पूछे गए हैं कि कितने नेता चुनाव में प्रचार के लिए उतरे थे और कितने नेता अमरिंदर सिंह को समझाने गए थे.

जीत दिलाने वाला नेता ‘जी-23’ गुट में है क्या?- सामना
सामना में शिवसेना ने लिखा है कि, ‘कांग्रेस का G-23 का समूह सड़ा हुआ आम है, लेकिन कांग्रेस संगठन को आज गांधी ही चाहिए. उत्तराखंड में बीजेपी के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी पराजित हो गए, लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस ने फिर से हरीश रावत जैसे पुराने नेता को बागडोर सौंपकर बीजेपी को आगे के लिए गति दे दी. वे (रावत) खुद चुनाव हार गए.’ संपादकीय में लिखा कि, ‘गांधी नेतृत्व छोड़ें यह ठीक, लेकिन कांग्रेस को आगे ले जाने वाला, जीत दिलाने वाला नेता उनके ‘जी-23’ गुट में है क्या?’

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‘कांग्रेस की सूख गई हैं जड़ें’
सामना में लिखा कि, ‘कांग्रेस की थाली और कटोरी में खा-पीकर कई बार डकार लेकर स्वस्थ हुए नेता G-23 में हैं और कांग्रेस की पराजय पर वे विलाप कर रहे हैं. इनमें से कितने नेता पांच राज्यों के चुनाव में जमीन पर उतरे थे? कितनों ने प्रत्यक्ष रूप से प्रचार में खुद को झोंक दिया था? केवल गांधी परिवार ही एकमात्र बल स्थान नहीं रह गया है. कांग्रेस की जड़ें सूख गई हैं और वृक्ष पत्ता विहीन हो गया है पत्ते अंकुरित हों, बहार आएं और वातावरण ताजा हो, ऐसा किसी को मन से लगता है तो वृक्षों की पूरी छंटाई कर नया बगीचा फुलाना होगा.”

‘बंगाल, महाराष्ट्र और केजरीवाल ने तोड़ा नरैटिव’
सामना के संपादकीय में शिवसेना ने यह भी कहा कि, ‘बीजेपी से मुकाबला अगर आने वाले वक्त में करना है तो नैरेटिव भी चेंज करना होगा. इसमें कांग्रेस काफी पीछे है. बीजेपी के भ्रम को तोड़ने का काम पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दिल्ली में केजरीवाल ने किया है.’

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G-23 के कितने नेता उतरे थे प्रचार में?
शिवसेना ने G-23 के नेताओं से सवाल किया है कि इनमें से कितने नेता पांच राज्यों के चुनाव में जमीन पर उतरे थे? कितनों ने प्रत्यक्ष रूप से प्रचार में खुद को झोंक दिया था? पी. चिदंबरम, के.सी. वेणुगोपाल, सचिन पायलट, भूपेश बघेल जैसे कुछ गिने-चुने नेता दिखाई दे रहे थे. प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में थीं. राहुल गांधी गोवा, उत्तराखंड, पंजाब में थे. लेकिन गुलाम नबी, कपिल सिब्बल और G-23 के नेता चुनावी समर में कभी नहीं दिखे. ऐसा लगता है कि ये सभी नेता बाहर रहकर राहुल गांधी की पारिवारिक भागदौड़ में ‘एन्जॉय’ कर रहे थे और मन-ही-मन कांग्रेस की असफलता की मनोकामना कर रहे थे’.

‘कांग्रेस को ऐसे नेतृत्व की जरुरत जो युवाओं में विचार पैदा करे’
संपादकीय में लिखा गया है कि, ‘यह सच है कि अब कांग्रेस पार्टी को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो युवाओं में नई गति और नया विचार पैदा करे. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की रैलियों और रोड शो में अच्छी-खासी भीड़ हुई. लेकिन वोटों को लेकर कुछ हाथ नहीं लगा. वहां के 403 विधायकों की विधानसभा में दो सीटें मिलीं. वैसे देखा जाए तो मायावती को भी एक सीट मिली. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का संगठन और कार्यकर्ता नहीं रहे.

‘भाजपा का सामना हम परंपरागत, पुरानी पद्धति से नहीं कर सकते’
संपादकीय में लिखा गया है कि, ‘राहुल गांधी ने सही कहा कि चुनावी मैदान में भाजपा का मुकाबला करना कठिन हो गया है. भाजपा पर टिप्पणी करना, उसके एकाधिकार पर हमला करना ठीक है व शुरू ही रहेगा लेकिन हमें वैकल्पिक नैरेटिव देना होगा. भाजपा जिस तरीके और तैयारी से चुनाव लड़ रही है उसका सामना हम परंपरागत, पुरानी पद्धति से नहीं कर सकते. हमें यह चुनौती अलग तरीके से स्वीकार करनी होगी. राहुल जो कहते हैं उस तरह से यह चुनौती स्वीकार करनेवाले कितने लोग उनके आस-पास हैं?

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G-23 के कितने लोग अमरिंदर को समझाने गए
सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि पंजाब में अमरिंदर सिंह ने सीधे भाजपा से हाथ मिला लिया. अमरिंदर को मनाने के लिए ‘G-23’ के कितने लोग आगे आए? गोवा में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के पैर जमीन पर नहीं थे, कांग्रेस पार्टी का संगठन जर्जर हो चुका है, आकर्षण महसूस हो, ऐसा कुछ भी नया नहीं हो रहा है. राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत इस तरह पैर पसारकर बैठे हैं कि नए कार्यकर्ताओं को उंगली रखने की भी जगह नहीं है. भाजपा की साइबर फौज पहले वातावरण निर्माण करती है, साथ ही झूठे नैरेटिव तैयार करती है. खून की एक बूंद भी गिराए बिना सामने वाले को मजबूर और घायल कर देते हैं. फिर पीछे से भाजपा के नेता मैदान में उतरते हैं.

‘कांग्रेस द्वारा अलग धर्मनिरपेक्षता के ‘हिजाब’ को दूर करना होगा’
सामना में कांग्रेस को सलाह दी गई है कि, ‘कांग्रेस द्वारा अलग धर्मनिरपेक्षता के ‘हिजाब’ को दूर करना होगा. परिणामों की परवाह न करते हुए बिन काम के नेताओं को दूर करना चाहिए. पार्टी का अब और क्या नुकसान होना बाकी रह गया है? कांग्रेस पार्टी के आंतरिक मामलों में सिर घुसाने की जरूरत नहीं है लेकिन सभी विपक्षी पार्टियों के अस्तित्व और एकजुटता का विषय होने पर हमने अपने विचार व्यक्त किए’.

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आज है ‘जी23’ समूह की बैठक
बताया जा रहा है कि आज होने वाली ‘G-23’ समूह की बैठक के नेताओं ने कई ऐसे कांग्रेस को नेताओं को भी आमंत्रित किया है, जो इस समूह का हिस्सा नहीं है, लेकिन वे महसूस करते हैं कि पार्टी में बदलाव जरूरी है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पांच राज्यों के अध्यक्षों से इस्तीफा मांगा है. यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब इस समूह के प्रमुख सदस्य सिब्बल ने एक साक्षात्कार में कहा है कि, ‘गांधी परिवार को कांग्रेस नेतृत्व छोड़ देना चाहिए और किसी अन्य नेता को जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए’. पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली इस समूह से खुद को अलग कर चुके हैं और इसके दो अन्य सदस्य जितिन प्रसाद और योगानंद शास्त्री पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं.

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