राम-कृष्ण की नगरी छोड़ गोरखनाथ की शरण में योगी, सूत्रों का दावा- अयोध्या में जीत पर था संशय

राम की अयोध्या से योगी दूर क्यों? भाजपा राम मंदिर के नाम पर पूरे UP में बनाना चाहती माहौल, सूत्र- हार के डर से योगी गोरखपुर पर अड़े, स्वामी ने बिगाड़ दिए थे गोरखपुर की आसपास की सीटों के समीकरण, अयोध्या में भी जीत को लेकर नहीं थे श्योर!

अयोध्या या मथुरा से क्यों डर गए योगी?
अयोध्या या मथुरा से क्यों डर गए योगी?

Politalks.News/UttarpradeshChunav. उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh Assembly eleciton) भाजपा ने शनिवार को अपने 107 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. इस लिस्ट में सबसे चौंकाने वाला नाम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का रहा. जिसके तहत बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और सीएम योगी ना मथुरा (Mathura) से और ना अयोध्या (Ayodhya) से और ना ही प्रयागराज से चुनावी रण में उतर रहे हैं, बल्कि योगी आदित्यनाथ गोरखपुर (Gorakhpur) शहर से ताल ठोकेंगे. भाजपा ने अपनी पहली ही सूची के साथ यह घोषणा कर सबको चौंका दिया है और चौंकने की वजह ये कि अब तक यह लगभग तय माना जा रहा था कि योगी या तो अयोध्या या मथुरा से चुनावी रण में उतरेंगे. सूत्रों की मानें तो पार्टी हाईकमान की भी मंशा यही थी.

योगी आदित्यनाथ जैसा कट्‌टर हिंदुत्व का चेहरा अयोध्या से चुनावी मैदान में उतरता तो पूरे प्रदेश में वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद ज्यादा थी. सियासी गलियारों में चर्चा है कि आलाकमान की इच्छा के विपरीत खुद योगी अपने गढ़ गोरखपुर से उतरकर पहले अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे और फिर आसपास की 17 सीटों पर असर डालना चाहते थे. वहीं दूसरी तरफ एक चर्चा यह भी है कि अयोध्या में ब्राह्मणों की नाराजगी के चलते योगी को गोरखपुर से उतारने का फैसला किया गया है.

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2017 में मोदी लहर में फहराया था अयोध्या में भाजपा का झंडा
माना जाता है कि यूपी की अयोध्या एक ऐसी सीट है, जहां 93.23% आबादी हिंदू होने के बावजूद भाजपा की जीत तय नहीं रही है. 2012 में यह सीट समाजवादी पार्टी ने जीती थी, तो 2017 में मोदी लहर में भाजपा के हाथ आई. इस बार समीकरण क्या बनेंगे? अभी यह तय नहीं है. आपको बता दें कि 2012 के चुनाव में सपा के पवन पांडे यहां से जीते थे. भाजपा के लल्लू सिंह और बसपा के टिकट पर लड़े वेदप्रकाश गुप्ता तीसरे स्थान पर थे, बाकी पार्टियों और निर्दलीयों का वोट शेयर भी ठीक-ठाक था. लेकिन मोदी की तगड़ी लहर के बावजूद 2017 के चुनाव का वोट शेयर बताता है कि सपा का वोट बैंक ज्यादा नहीं खिसका था तो वहीं बसपा का वोट शेयर थोड़ा बढ़ा था. लेकिन मोदी-योगी लहर में बाकी सभी पार्टियों और निर्दलीयों का सूपड़ा साफ हो गया जिन्हें सिर्फ 5.92% वोट मिले. यानी 2012 के मुकाबले 22% वोट घटे जो सीधे भाजपा को गए.

इस बार सपा का दबदबा ज्यादा, बिगड़ सकते थे समीकरण

सियासी गलियारों में चर्चा है कि, अयोध्या में ब्राह्मण खुश रहते तो भाजपा की जीत पक्की थी. वहां पर शहरी क्षेत्र में 70 हजार ब्राह्मण, 28 हजार क्षत्रिय हैं. 27 हजार मुस्लिम के साथ ही 50 हजार दलित हैं. इसके साथ ही शहरी क्षेत्र में यादव वोटरों की संख्या 40 हजार है.ऐसे में चर्चा है कि अगर योगी यहां से चुनावी मैदान में उतरते तो टक्कर कड़ी रहती और उन्हें यहां अपना ज्यादा समय देना पड़ता, क्योंकि सपा के विधायक रहे पवन पांडेय का दबदबा आज भी यहां कायम है. वहीं योगी सरकार के ठाकुरवाद और ब्राह्मणों की नाराजगी के भाजपा ने योगी को गोरखपुर से उतारने का फैसला लिया है. ऐसे में अब योगी के यहां से हटने के बाद अयोध्या सदर सीट भाजपा के हाथ से निकलती दिख रही है.

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अयोध्या में जातीय गणित हमेशा काम नहीं आता, यही था डर!

यूपी की सियासत को समझने वाले जानकारों का कहना है कि, अयोध्या विधानसभा क्षेत्र का जातीय गणित हमेशा गड़बड़ होता रहा है. यहां कभी भी हार-जीत में जातीय समीकरण काम नहीं आया. ब्राह्मण बाहुल्य इस क्षेत्र में केवल तीन विधायक ब्राह्मण चुने गए और जब भी ब्राह्मण प्रत्याशी जीते, ब्राह्मण मतदाताओं का उनकी जीत में योगदान न के बराबर रहा. तीनों ही ब्राह्मण विधायक समाजवादी खेमे के रहे. सात बार ब्राह्मण प्रत्याशियों को यहां हार मिली, जिसमें से दो बार तो वे कम वोट बैंक वाले पंजाबी (खत्री) बिरादरी से हारे.

योगी के चुनाव लड़ने की तैयारियों शुरू हो चुकी थी अयोध्या में
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दूसरी तरफ अयोध्या विधानसभा से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने के कयासों के बीच भाजपा कार्यकर्ता के साथ ही संत, साधु और मंदिर से जुड़े लोगों ने जनसंपर्क शुरू कर दिया था. 8 से 12 लोगों की टीम बना करके घर-घर संपर्क किया जा रहा था. साधु-संत मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से जहां योगी के पक्ष में वोट डालने की बात कह रहे थे. व्यापारी भी लगातार योगी के पक्ष में प्रचार करते नजर आने लगे थे. वार्ड स्तर पर भाजपा का स्थायी कार्यालय बनाया गया था. जहां से प्रत्येक वार्ड में रहने वाले लोगों को योगी के पक्ष में सहेजा जा सके.

योगी खुद चाहते थे गोरखपुर, 17 सीटें हाथ से निकलने था डर!

भाजपा और सीएम योगी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि, ‘योगी आदित्यनाथ यदि गोरखपुर क्षेत्र से बाहर रहते तो, शहरी के साथ ही आसपास के 17 विधानसभा सीटों पर असर पड़ने के आसार थे.’ गोरखपुर ग्रामीण के साथ ही पिपराइच, चौरीचौरा की सीट भी फंसती हुई दिखाई दे रही थी. कुशीनगर में स्वामी प्रसाद मौर्या के अलग होने से पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर की सीट पर भी सपा का कब्जा होता दिख रहा था. यहां पर कांग्रेस के साथ ही मौर्या समाज का दबदबा है. संत कबीर नगर में तीन विधानसभा सीट में खलीलाबाद की सीट हाथ से निकलती दिखाई दे रही थी.

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18 साल बाद UP में कोई CM विधायक का चुनाव लड़ेगा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है, यानी यहां 18 साल का एक रिकॉर्ड टूटने जा रहा है. दरअसल, यहां आखिरी बार मुलायम सिंह यादव गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री बने थे. मुलायम ने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता साबित की थी. ऐसे में अब 18 साल बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में विधान परिषद सदस्य यानी MLC बनकर मुख्यमंत्री बनने की परिपाटी पर ब्रेक लग रहा है.

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