यूपी में सपा का पलड़ा भारी तो बाकी राज्यों में बीजेपी-कांग्रेस के लिए आप व TMC बनी बड़ी चुनौती

5 राज्यों में बजी चुनावी रणभेरी, राजनीतिक दलों का चुनावी मंथन हुआ तेज, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और किसान आंदोलन बने बड़े सियासी मुद्दे, यूपी में प्रधानमंत्री मोदी और योगी कर रहे हैं जीतोड़ मेहनत तो सपा को है चुनावी भीड़ का सहारा, पंजाब-उत्तराखंड में हाथ के साथ झाडू भी मजबूत तो गोवा-मणिपुर में भी आप के साथ TMC कर सकती है बड़ा खेला

बज गई चुनावी रणभेरी
बज गई चुनावी रणभेरी

Politalks.News/AssemblyElections. देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी रणभेरी बज चुकी है. उत्तरप्रदेश में जहां 7 चरणों में मतदान होने हैं तो मणिपुर में 2 चरणों में और पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में 1 चरण में मतदान होगा. 10 मार्च को चुनावी नतीजे घोषित हो जाएंगे. चुनावी तारीखों के एलान के साथ ही इन पांच राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है. ऐसे में अब सभी राजनीतिक दलों की सियासी कसरत भी और तेज हो चली है. क्या उत्तरप्रदेश, क्या पंजाब, क्या उत्तराखंड, क्या मणिपुर और क्या गोवा सभी जगह अब राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से आगे की रणनीति पर काम करने में जुट गई हैं. चुनाव के संभावित नतीजों की बात की जाए तो 3 राज्यों में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन सभी 5 राज्यों में बीजेपी की साख दांव पर लगी है.

उत्तरप्रदेश में सात चरणों में होगा रोमांचक मुकाबला
भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच है. यहां तक कि सूबे की सत्ता में वापसी के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं. लेकिन बीजेपी के लिए इस बार पार पाना थोड़ा मुश्किल लग रहा है. सियासी जानकारों की मानें तो किसान आंदोलन, बेरोजगारी, कमरतोड़ महंगाई और कोरोना में यूपी का जिस तरह का मंजर पुरे देश ने देखा उसके बाद जनता के मन में बीजेपी के लिए रोष व्याप्त है. वहीं सबकुछ दांव पर लगाने के बाद भी बीजेपी इस बार अपने पुराने अंदाज में नजर नहीं आ रही है.

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हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव की तरह ही बीजेपी इस बार भी हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाते हुए हिन्दू बनाम मुसलमान कर वोट पाने की जुगत में है. यही कारण है कि राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्धघाटन के बाद अब भाजपा मथुरा का राग अलाप रही है. वहीं चर्चा यह भी है कि प्रदेश का एक बड़ा वोट बैंक ब्राह्मण सीएम योगी से खफा नजर आ रहा है, तो वहीं एक साल से ज्यादा लम्बे चले किसान आंदोलन के कारण भी बीजेपी के हाथ पांव फुले हुए हैं. दिग्गजों का कहना है कि यूपी चुनाव को देखते हुए ही बीजेपी ने तीनों कृषि कानून वापस लिए हैं, लेकिन इस फैसले को लेने में केन्द्र की मोदी सरकार ने बहुत देरी कर दी है, जबकि सभी विपक्षी दल इस आंदोलन को सबसे बड़े मुद्दे के रूप में लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

वहीं यूपी में प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी की बात करें तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो आगामी चुनाव में 400 से ज्यादा सीटें जीतने का दम भर चुके हैं. जनता के मुद्दों को उठाकर सपा अध्यक्ष अपनी नींव मजबूत करने में जुटे हैं. अखिलेश यादव की जनसभा में उमड़ रही भीड़ को देख सियासी दिग्गज भी यह कहने लगे हैं कि सपा एक बार फिर सत्ता में आ सकती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह भीड़ वोट में कितनी परिवर्तित होती है. अगर कांग्रेस और बसपा की बात की जाए तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश में अपने आप को वापस खड़ा करते हुए आगे तो बढ़ रही है लेकिन उसे ज्यादा बड़ी सफलता मिल पाएगी, फिलहाल इसकी सम्भावना कम ही लगती है.

प्रदेश की आधी आबादी को साधने के लिए प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ की मुहीम छेड़ रखी है. वहीं प्रियंका स्थानीय मुद्दों के साथ साथ प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर भी योगी सरकार पर हमलावर है. तो वहीं दूसरी तरफ सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अपनी पार्टी बसपा के वजूद को बचाने में जुटी है. मायावती इस चुनाव में उस तरह एक्टिव नजर नहीं आ रही हैं जैसा की उनके लिए कहा जाता है. वहीं सूत्रों का कहना है कि मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि ‘उनके पास अन्य पार्टियों की तरह इतना पैसा नहीं है कि वह अन्य दलों की तरह बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां करें. इसलिए सभी कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाएं.’

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पंजाब की 117 सीटों पर 14 फरवरी को होगा चुनाव
अब बात करें पंजाब की 117 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में 14 फरवरी को होने वाले सियासी संग्राम की तो यहां कुछ महीनों पहले तक कांग्रेस एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के लिए तैयार थी लेकिन पार्टी में छिड़ी आपसी कलह ने उसे थोड़ा पीछे धकेल दिया है. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद एक दलित को मुख्यमंत्री बना कांग्रेस ने बड़ा दांव जरूर खेला है लेकिन कांग्रेस की आपसी कलह इस सारी मेहनत पर पानी फेरती नजर आ रही है. आपको बता दें, कांग्रेस में अब 3 पावर सेंटर बन चुके हैं, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू और सुनील जाखड़ इस पावर सेंटर के मुख्य सूत्रधार है. किसान आंदोलन के बाद पंजाब में कांग्रेस किसानों के सहारे ही आगे बढ़ रही है. तो वहीं बीजेपी को कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह से आस है.

हालांकि पंजाब में खोने के लिए बीजेपी के पास कुछ भी नहीं है. वहीं शिरोमणि अकाली दल भी सत्ता में वापसी के लिए जूझ रही है. लेकिन आम आदमी पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले खुद को और मजबूती से पेश करने में जुटी है. सूबे की मुख्य विपक्षी पार्टी आप फिलहाल कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में दिख जरूर रही है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह कांग्रेस को मात दे पाएगी? सियासी गलियारों में चर्चा है कि दिल्ली की तर्ज पर फ्री योजनाओं का एलान कर आम आदमी पार्टी सत्ता में आने की तैयारी कर रही है.

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उत्तराखंड में बरसों से चले आ रहे बीजेपी-कांग्रेस के सीधे मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती है आप
पंजाब की तरह ही उत्तराखंड में भी 70 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में 14 फरवरी को ही मतदान किया जाएगा. उत्तराखंड में बरसों से बीजेपी और कांग्रेस के बीच चले आ रहे सीधे मुकाबले को इस बार आम आदमी पार्टी त्रिकोणीय बनाने जा रही है. देवभूमि में जहां कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सहारे सत्ता हासिल करने की आस लगाए बैठी है तो वहीं तीन बार मुख्यमंत्री बदलने के बाद प्रदेश की जनता बीजेपी से नाराज नजर आ रही है. वहीं किसान आंदोलन, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के सियासी तड़के ने कांग्रेस और आप को बीजेपी को घेरने का बड़ा मौका दे दिया है. वहीं पिछले 2 साल से प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने में जुटी आम आदमी पार्टी भी दोनों पार्टियों आउट खासकर बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करती नजर आ रही है. कुल मिलाकर उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति ने सियासी संग्राम को रोचक और त्रिकोणीय बना दिया है.

बात करें गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों की तो यहां भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. वर्तमान में दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है लेकिन कांग्रेस के अलावा अन्य दलों ने दोनों राज्यों में चुनाव लड़ने का जबसे एलान किया है तब से बीजेपी थोड़ी मुश्किल में दिख रही है. अगर गोवा की बात की जाए तो 2017 में जनता ने कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौपीं थी लेकिन बीजेपी ने अपनी कूटनीति से वहां कांग्रेस के सभी विधायकों को भाजपा में शामिल कर सत्ता हासिल कर ली थी. अब देखना यह होगा कि क्या गोवा की जनता बीजेपी पर ही भरोसा करेगी या एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी पर बैठाएगी, वहीं क्या यहां भी आम आदमी पार्टी बिगाड़ देगी दोनों का सियासी खेल, इसका फैसला 10 मार्च को हो जायेगा.

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वहीं मणिपुर में फिलहाल बीजेपी की स्थिति मजबूत जरूर नजर आ रही है, लेकिन प्रदेश में टीएमसी के ताल ठोकने से यहां बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा. आपको बता दें जहां गोवा की 40 विधानसभा सीटों के लिए 14 फरवरी को एक चरण में मतदान होगा तो वहीं मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों के लिए 27 फरवरी और 3 मार्च को 2 चरणों में मतदान सम्पन्न होगा. वहीं सभी पांच राज्यों के चुनाव परिणाम 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे.

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