बाघिन जैसी घूमने वाली मायावती को जांच एजेंसियों का डर दिखाकर किया साइलेंट, तब जीती भाजपा- शिवसेना

चार राज्यों में भाजपा को मिले बहुमत पर बिफरी शिवसेना, सामना संपादकीय में बीजेपी और बसपा पर बोला हमला, लिखा-जांच एजेंसियों के डर से मायावती चुनाव से भाग गईं, मायावती ने अपना और पार्टी का वजूद कर लिया खत्म, केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से हुई बीजेपी से साठगांठ!, अब पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार स्वतंत्र' मोदी सरकार पर तंज- 'केंद्रीय जांच एजेंसियों का झमेला सिर्फ राजनीतिक विरोधियों के पीछे हैं क्यों लगता है?

चार राज्यों में भाजपा को मिले बहुमत पर बिफरी शिवसेना
चार राज्यों में भाजपा को मिले बहुमत पर बिफरी शिवसेना

Politalks.News/Samna. उत्तर प्रदेश (UttarPradesh Assembly Election 2022), गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भाजपा को जोरदार जीत मिली है. मायावती (Mayawati) और ओवैसी को पद्म विभूषण और भारत रत्न की मांग कर चुकी शिवसेना ने भगवा पार्टी भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) पर तीखा हमला बोला है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी पर बसपा प्रमुख मायावती पर दबाव बनाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों (central investigative agencies) का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. सामना में लिखा गया है कि, ‘यूपी चुनावों में बसपा की उपस्थिति महज औपचारिकता थी. पार्टी प्रमुख मायावती को चुनावों से दूर रहने के लिए मजबूर किया गया. मायावती की बसपा यूपी चुनाव से भाग गई और उनके वोटों को भारतीय जनता पार्टी की ओर मोड़ दिया गया’.

‘केन्द्रीय एजेंसियों के दबाव में चुनाव से दूर रहने के लिए किया मजबूर’
सामना के संपादकीय में कहा गया है कि, ‘कभी उत्तर प्रदेश में बाघिन की तरह घूमने वाली मायावती, केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से चुनाव से भाग खड़ी हुईं. अब आय से अधिक संपत्ति के मामले में केंद्रीय एजेंसियों से दबाव बनाकर उन्हें चुनाव से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया गया. जिस पार्टी ने कभी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सत्ता हासिल की थी, उसने राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर जीत हासिल की है. क्या कोई इसे स्वीकार कर सकता है?’ इसका सीधा मतलब है कि मायावती ने इस बार अपने साथ-साथ अपनी पार्टी ‘बसपा’ का भी अस्तित्व समाप्त कर दिया है’.

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‘चार राज्यों में जीत की खुशी में भाजपा के नेता बेचैन’
शिवसेना ने दावा किया है कि राज्य चुनावों में भाजपा की जीत में केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव प्रमुख कारक साबित हुआ. सामना में कहा गया है कि, ‘मायावती केंद्रीय एजेंसियों के दबाव का ज्वलंत उदाहरण हैं. चार राज्यों में जीत की खुशी ने भाजपा और उसके नेताओं को बेचैन कर दिया है’. आर्टिकल में पार्टी की जीत का जश्न मनाने वाले महाराष्ट्र भाजपा नेताओं पर निशाना साधा गया है. कहा गया है कि ‘जैसे ही उत्तर प्रदेश में जीत हासिल हुई, महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि ‘उत्तर प्रदेश की झांकी खत्म हो गई है, महाराष्ट्र अभी बाकी है’

‘राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को होगी मुश्किल’
सामना ने लिखा है कि, ‘उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का जश्न मनाया गया है. निश्चित तौर पर उनकी सत्ता आई है. हालांकि इस बार अखिलेश यादव की सीटें भी विधानसभा में तीन गुना बढ़ी हैं. पंजाब की स्थिति और इस तीन गुना बढ़ी सीटों के कारण राष्ट्रपति का चुनाव बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनता हुआ नजर आ रहा है.

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‘अब पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाने के लिए स्वतंत्र’
सामना में आरोप लगाया कि, ‘चार राज्यों में जीत को देखते हुए, भाजपा अब यूक्रेन युद्ध के नाम पर पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है’. लेख के अनुसार, भाजपा को बहुमत के जादुई आंकड़े (यूपी में) से 60 सीटें ज्यादा मिलीं और इसके लिए पूरी केंद्रीय सत्ता दांव पर लगी थी.

‘अपने दामन के दाग नहीं दिखते’
सामना ने अपने संपादकीय में सवाल उठाया है कि, ‘केंद्रीय जांच एजेंसियों का झमेला सिर्फ राजनीतिक विरोधियों के पीछे हैं क्यों लगता है? बीजेपी के भ्रष्ट और घोटालेबाज लोगों की जानकारी सार्वजनिक करते ही और उनके बारे में सरकार को बताते ही, जांच एजेंसियों पर दबाव कैसे सिद्ध हो सकता है? महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल ने दिल्ली की गुलामी को ठुकरा दिया. तुम्हारे टुकड़ों पर जीने वाले बिल्ली बनकर रहने से इंकार कर दिया. इसलिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करना, यह कैसी निष्पक्षता और स्वस्थ स्वतंत्र स्वाभिमान है?

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