उपचुनाव से पहले ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर शिवराज सरकार ने खेला मास्टर स्ट्रोक

उपचुनावों को लेकर शिवराज सरकार भी जल्दबाजी और हड़बड़ी में आ रही नजर, करीब करीब सभी सीटों पर सिंधिया महाराज का प्रभुत्व लेकिन दल बदल के चलते यहां से जीते नेताओं की छवि पर पड़ा असर, कांग्रेस भी आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में

पॉलिटॉक्स न्यूज/एमपी. मध्य प्रदेश की सियासत में आगामी विधानसभा उप चुनाव को लेकर सरगर्मियां अब साफ तौर पर दिखने लगी हैं. जैसे जैसे कोरोना फीवर कम हो रहा है, राजनीति गहरी होती जा रही है. ऐसे समय में उप चुनाव से ठीक पहले एमपी बीजेपी ने ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर मास्टर स्ट्रोक खेला है. बीजेपी ने तीन राज्यों को जोड़ने वाले ‘चंबल एक्सप्रेस-वे’ का नाम बदलकर ‘चंबल प्रोग्रेस-वे’ कर दिया है. इस प्रोजेक्ट का काम जल्द शुरु होगा और इसके लिए भूमि पूजन का ऐलान भी जल्दी ही होगा. माना जा रहा है कि 24 सीटों पर उपचुनाव के कारण सरकार इसे लेकर हड़बड़ी में दिखाई दे रही है क्योंकि 16 विधानसभा सीटें इसी ग्वालियर चंबल इलाके में हैं. इसके बाद कांग्रेस भी अलर्ट मोड पर आ गई है और सीएम शिवराज एवं बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर झूठ बोलकर प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेने का गंभीर आरोप लगाया है.

दरअसल, केंद्र सरकार के भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के मुरैना से राजस्थान के कोटा तक 352 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बनाया जाना है. इस प्रोजेक्ट की डीपीआर बनाने और जमीन अधिग्रहित करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है लेकिन इसे बनाने का दारोमदार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के जिम्मे है. चंबल प्रोग्रेस से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित तीन जिलों को आपस में जोड़ा जाना है. 8 लेन का ये एक्सप्रेस-वे चंबल नदी के किनारे बनाया जाना प्रस्तावित है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से राज्य सरकार ने सहमति ले ली है.

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ये भी बता दें कि चंबल प्रोग्रेस ग्वालियर चंबल इलाके के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है. चंबल के विकास के लिए यह महा पथ होगा. इसके जरिए औद्योगिक इकाइयां और व्यापारिक व्यवस्थाएं बनाई जाएंगी. प्रदेश की जिन 24 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है, उसमें से 16 विधानसभा सीटें इसी ग्वालियर चंबल इलाके में हैं. चूंकि जून के बाद कभी भी उप चुनावों का ऐलान किया जाना संभावित है, उससे पहले पहले शिवराज सरकार प्रोजेक्टव का भूमि पूजन कर नींव का पत्थर गाड देना चाहती है. इसी कारण सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर हड़बड़ी में दिखाई दे रही है.

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार, ‘चंबल एक्सप्रेसवे बनाने का जो फैसला बीजेपी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में किया था. इसे कांग्रेस सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था. अब प्रदेश की बीजेपी सरकार एक नए प्रारूप में चंबल एक्सप्रेस-वे को चंबल प्रोग्रेस-वे के नाम से तैयार करेगी’.

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चंबल एक्सप्रेस-वे के काम को फिर से शुरु करने को लेकर बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सीएम का धन्यवाद किया है. शिवराज की घोषणा के बाद सिंधिया ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट को कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था. इसके लिए सिंधिया ने केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी का भी आभार जताया.

सिंधिया ने एक ट्वीट करते हुए लिखा, ‘पूर्व की कांग्रेस सरकार ने चंबल के विकास, प्रगति और उन्नति को गति देने के लिए बनने वाले ‘चंबल एक्सप्रेस वे’ को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, उसे आज मप्र सरकार ने ‘चंबल प्रोग्रेस वे’ के नाम से तुरंत बनाने का निर्णय लिया है’.

अब इस प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेने में कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली है. यही वजह है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान भी इस एक्सप्रेस-वे की याद पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार को भी आ रही है. कांग्रेस ने एक्सप्रेस-वे को लेकर सीएम शिवराज के बयान पर जवाबी हमला बोलते हुए इस प्रोजेक्ट को अपना बताया है. इस संबंध में पूर्व पीडब्लूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा, ‘चंबल एक्सप्रेस-वे को लेकर सीएम शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया झूठ बोल रहे हैं. चंबल एक्सप्रेस वे कांग्रेस के प्रयासों से शुरू हुई बहुआयामी योजना है. इसके लिए कांग्रेस ने हर स्तर पर प्रयास किए हैं’.

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चूंकि पूर्व कांग्रेस नेता सिंधिया के बीजेपी में जाने और एक साथ 24 विधायकों के इस्तीफे देने के चलते कमलनाथ सरकार के हाथों से प्रदेश की कमान निकलकर फिर से शिवराज सिंह के हाथों में आई है, ऐसे में कांग्रेस पूरजोर से सत्ता की बागड़ौर फिर से हथियाने के मूड में है. कांग्रेस नेता पहले ही इस बात की भविष्यवाणी कर चुके हैं कि आगामी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर झंडा मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ ही फहराएंगे. इस बात का सीधा सीधा मतलब ये है कि कांग्रेस 24 सीटों पर होने वाले उप चुनावों में जीत के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. वहीं बीजेपी के सिर पर भी सरकार बचाए रखने का भारी बोझ है. कांग्रेस को बराबरी का मुकाबला करने के लिए कम से कम 15 सीटों पर जीत की जरूरत है. ऐसे में कांग्रेस उक्त प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेकर इलाके की 16 विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा करने की फिराक में है.

वैसे ये सभी सीटें कांग्रेस के कब्जे में ही थी. वहीं ग्वालियर महाराज भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते. वैसे तो यहां से जीते सभी विधायक सिंधिया खेमे के ही हैं, लेकिन अचानक से इस्तीफा देकर दल बदलने से इन सभी की छवि पर गहरा असर पड़ा है. ऐसे में दोनों ही पार्टियोें के लिए यहां सीटें जीतना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. ऐसे में इस सेतू का क्रेडिट लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां जीत का रास्ता पार करना चाह रही हैं.

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