भाजपा सावरकर को भारत रत्न देने की तैयारी में, कांग्रेस ने सावरकर के आगे से हटाया ‘वीर’

विनायक दामोदर सावरकर को लेकर गरमाई सियासत, देश भर में चल रही सावरकर के नाम पर बहस, राजस्थान कांग्रेस ने दसवीं-बारहवीं की पुस्तकों से हटाया सावरकर के आगे से वीर

Savarkar
Savarkar

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विनायक दामोदर सावरकर (Savarkar) को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया, जो कि वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर व्यास के मुताबिक भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण मोड़ है. इस समय तमाम टीवी चैनल भी सावरकर का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं. इधर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम की किताबों में से सावरकर के नाम के आगे से वीर शब्द हटा दिया है और सावरकर ने अंडमान जेल में रहते हुए तत्कालीन अंग्रेज सरकार को जो दया याचिकाएं भेजी थीं, उनका उल्लेख भी सावरकर से संबंधित पाठ में जोड़ दिया गया.

कौन है विनायक दामोदर सावरकर

आखिर कौन हैं ये सावरकर (Savarkar)– 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या हुई. शाम तक खबर फैलते ही महाराष्ट्र में गांधीवादी अहिंसक कांग्रेसियों ने चितपावन ब्राह्मणों के घरों पर उसी तरह हमले शुरू कर दिए थे, जैसे 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ हुए थे. उस समय महाराष्ट्र के ब्राह्मणों की मॉब लिंचिंग हुई थी. मुंबई से शुरू हुई मॉब लिचिंग की घटनाओं में 31 जनवरी की रात तक मुंबई में 15 और पुणे में 50 लोग मारे जा चुके थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पाबंदी लगा दी थी. संघ से जुड़े लोगों के घरों पर हमले होने लगे थे. संघ, हिंदू महासभा आदि हिंदू राजनीति करने वाले संगठनों के कार्यकर्ताओं को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करना शुरू कर दिया गया था. आजाद भारत के इतिहास में इसका जिक्र विस्तार से नहीं किया गया है.

गांधीजी की हत्या का मुख्य आरोपी नाथूराम गोड़से चितपावनी ब्राह्मण था, इसलिए महाराष्ट्र के सारे चितपावनी ब्राह्मण कांग्रेसियों के निशाने पर आ गए थे. उस समय की परिस्थितियों पर मराठी साहित्यकार और तरुण भारत के संपादक गजानंद त्र्यंबक माडखोलकर ने मराठी में एक किताब लिखी है, एका निर्वासिताची कहाणी (एक शरणार्थी की कहानी). इसमें उन्होंने लिखा है कि गांधीजी की हत्या के बाद गांधी भक्तों की हिंसा में करीब आठ हजार मराठी ब्राह्मण मारे गए थे. 31 जनवरी को माडखोलकर के घर भी हमला हुआ था, तब उन्हें महाराष्ट्र से बाहर शरण लेनी पड़ी थी. अपने इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने किताब लिखी.

उस समय की एक रिपोर्ट के अनुसार गांधीजी की हत्या के बाद मुंबई में 15 और पुणे में 50 लोग मारे गए थे. इसके साथ ही सांगली, नागपुर, नासिक, सतारा, कोल्हापुर और बेलगाम (कर्नाटक) तक में मराठी ब्राह्मणों के घरों पर हमले हुए थे. सतारा में करीब एक हजार ब्राह्मणों के घर जला दिए गए थे. एक परिवार के तीन पुरुषों को सिर्फ इसलिए जिंदा जला दिया गया था कि उनका उपनाम गोडसे था.

विनायक सावरकर (Savarkar) के सबसे छोटे भाई स्वतंत्रता सेनानी नारायण सावरकर के साथ भी बहुत बुरा हुआ. पहले भीड़ ने सावरकर के घर हमला किया. फिर शिवाजी पार्क में उनके छोटे भाई डॉ. नारायण सावरकर के घर हमला किया. भीड़ ने उन्हें घर से खींचकर बाहर निकाला और पत्थर मारकर लहूलुहान कर दिया. कुछ महीनों बाद उनका निधन हो गया था.
गांधीजी की हत्या के समय महाराष्ट्र और गुजरात में गांधी टोपी पहनने वाले लोग सबसे ज्यादा दिखाई देते थे. गांधीजी की हत्या के बाद से ही महाराष्ट्र में संघ लगभग अछूत घोषित कर दिया गया था.

गोडसे पर गांधीजी हत्या का आरोप होने से महाराष्ट्र के सारे चितपावन ब्राह्मण राजनीति की मुख्य धारा से बाहर कर दिए गए थे. उस महाराष्ट्र में भाजपा ने सावरकर को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है तो इसके गहरे निहितार्थ हैं. यह नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के दुस्साहस का भी प्रतीक है. पांच साल पहले जब भाजपा को पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला तो ब्राह्मण देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया. अब भाजपा ने सावरकर को भारत रत्न देने का मुद्दा उछाल दिया है और उसके आधार पर वोट मांगे जा रहे हैं.

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव भाजपा सिर्फ हिंदू राष्ट्रवादी फार्मूले से लड़ रही है. नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र में चुनावी सभाओं में बार-बार अनुच्छेद 370 खत्म करने के हवाले से विपक्ष को चुनौती दी है, जबकि हरियाणा में उन्होंने सीधे पाकिस्तान जाने वाला पानी हरियाणा को दिलवाने की बात कही है. महाराष्ट्र में अनुच्छेद 370 और हरियाणा में पाकिस्तान का पानी. ये मुद्दे भाजपा के लिए चुनाव जीतने के प्रमुख उपाय बने हुए हैं. हरिशंकर व्यास के मुताबिक जाहिर है अब दंगे, ओवैसी यानि हिंदू-मुस्लिम वाली राजनीति नहीं, बल्कि अघोषित हिंदू राष्ट्र में बहुसंख्यक वोटों को रंगते हुए सत्ता पकाने का रोडमैप है. तभी यह मोड़ कांग्रेस और विपक्ष के लिए संकट ले आया है.

सावरकर पर गरमाई राजस्थान की सियासत

सावरकर के मुद्दे पर अब राजस्थान में भी सियासत तेज हो गई है. राजस्थान की पूर्व भाजपा सरकार में दामोदर विनायक सावरकर को वीर बताया गया था. दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक के पाठ तीन में सावरकर को वीर सावरकर लिखा गया था. लेकिन अब कांग्रेस की गहलोत सरकार ने इस पाठ्यपुस्तक में सावरकर (Savarkar) के आगे से वीर शब्द हटा दिया है और उन दया याचिकाओं का उल्लेख जोड़ दिया है जो अंडमान सेलुलर जेल से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को सावकर (Savarkar) ने भेजी थी. पहली दया याचिका 30 अगस्त 1910 की है, दूसरी दया याचिका 14 नवंबर 1911 को भेजी गई थी, जिसमें सावरकर ने स्वयं को पुर्तगाल का पुत्र कहा था.

इस सम्बंध में राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा का कहना है कि सावरकर ने आजादी के संग्राम में ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे उनके नाम के आगे वीर या देशभक्त जोड़ा जाए. सावरकर को किस बात पर भारत रत्न दिया जाए? वहीं पूर्व शिक्षा मंत्री भाजपा नेता वासुदेव देवनानी ने कहा कि कांग्रेस को सिर्फ एक परिवार के महिमा मंडन के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता. कांग्रेस जिस तरह के पत्रों को लेकर माफी की बात कह रही है, इस तरह के पत्र तो गांधी जी सहित अन्य ने भी लिखे थे.

राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की ज्यादातर किताबों में विनायक दामोदर सावरकर (Savarkar) का ज्यादा जिक्र नहीं है. केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद कुछ किताबों में बदलाव हुआ है. डोटासरा ने कहा कि राजस्थान के विद्यार्थियों को एकदम सही इतिहास पढ़ाया जाता है, लेकिन पिछली भाजपा सरकार ने संघ के इशारे पर गलत तथ्य जोड़ दिए थे. वहीं देवनानी का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों में बदलाव की कवायद चल रही है. जल्दी ही सभी को सच पढ़ने को मिलेगा.

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