मूर्ति-स्मारकों पर लुटा रहीं सरकारें करोडों का सरकारी खजाना, मरीजों को बचाने के लिए अच्छे इलाज की जरूरत है या मूर्तियों की- हाईकोर्ट

जनता की प्राथमिकता क्या अच्छा इलाज और रोटी-कपड़ा-मकान या हजारों करोड़ से बनी मूर्तियां? मुंबई हाईकोर्ट ने राजस्थान, यूपी, मध्यप्रदेश का नेगेटिव उदाहरण देते हुए लगाई उद्धव सरकार को फटकार

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे देश में करोड़ों की लागत से बनने वाली महापुरूषों की एक से बढकर एक प्रतिमा और उनका स्मारक बनाने का दौर जारी है. देश में करीब-करीब हर शहर में किसी न किसी महापुरूष की मूर्तियां बनाने का रिवाज लम्बे समय से चला आ रहा है. इन शहरों के चौराहे या तिराहे इन मूर्तियों से सजे नजर आते हैं. लेकिन बता दें मूर्तियों के कदों (लम्बाई) को बढाने के साथ स्मारक और मूर्तियां बनाने का असली सिलसिला उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के राज में शुरू हुआ.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनावाए थे और उसमें अपनी, दलित नेता भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की सैकंडों मूर्तियां लगवाई थीं. उस समय इन स्मारकों पर लगभग 6 हजार करोड खर्च हुए थे. मायावती ने महापुरूषों की मूर्तियां बनवाने के मामले में एक कदम आगे बढाते हुए खुद की मूर्ति भी सरकारी खजाने से बनवा दी थी, बाद में एक जनहित याचिका की सुनावई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मायावती से उसकी और बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी की बडी संख्या में लगी मूर्तियां बनाने पर खर्च हुए धन को सरकारी खजाने में जमा कराने के आदेश दिए.

वहीं 14 फरवरी 2013 को पटना में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 70 फुट की विश्व की सबसे ऊंची कांस्य प्रतिमा का राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में अनावरण किया गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 30 फुट के आधार वाली और 40 फुट की ऊंचाई वाली इस प्रतिमा का अनावरण किया. बिहार के भवन निर्माण विभाग ने लगभग 10 करोड़ रुपए की लागत से इस प्रतिमा का निर्माण कराया.

इसके बाद केन्द्र में नरेंद्र मोदी-1 का राज आया तो गुजरात में नर्मदा नदी के किनारे स्टेच्यू आॅफ यूनिटी के नाम से लोह पुरूष सरदार वल्लभ की दुनिया की सबसे उंची प्रतिमा के साथ हाईटेक स्मारक बनवाया गया. इस पर 5 हजार करोड का भारी भरकम बजट आया. गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति बनी तो महाराष्ट्र में शिवसेना ने छत्रपति शिवाजी की मूर्ति और उनका स्मारक उठाने की मांग तेज हो गई. वहां भी तत्कालीन बीजेपी की फण्डवीस सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया और समुद्र के किनारे एक मानव निर्मित आयरलैंड पर मूर्ति बनाने का निर्णय किया गया. जिसके तहत छत्रपति शिवाजी और उनके स्मारक के लिए 3 हजार 643 करोड का बजट स्वीकृत किया गया.

महाराष्ट्र में ही इन महापुरूषों के साथ-साथ संविधान निर्माता डाॅ भीमराव अंबेडकर की मूर्ति और उनका स्मारक बनाने का निर्णय भी हुुआ, यह भी समुद्र के पास ही बनेगा. इसके लिए 500 करोड का बजट स्वीकृत किया गया. शिवाजी की मूर्ति की उंचाई 413 फीट, तो अंबेडकर मूर्ति की उंचाई 350 फीट की होगी. बता दें, सरदार पटेल की मूर्ति की उंचाई 597 फीट है. जाहिर है महाराष्ट्र अब जब सत्ता बदल गई और महाविकास अघाड़ी की सरकार बन गई तो वो गुजरात की बीजेपी सरकार से पीछे कैसे रहती, शिवसेना ने सत्ता में आते ही इन मूर्तियों की उंचाई बढाने का निर्णय कर लिया और मूर्तियों की उंचाई बढेगी तो उनकी लागत भी करोडों में ही बढ़ेगी जो कि लाजमी भी है.

आप को बता दें, ऊपर उल्लेखित इन मूर्तियों की लागत ही लगभग 12 हजार करोड़ रूपए से ऊपर की हो चुकी है, जबकि ये तो देश में स्थापित होने वाले कुछ स्मारकों की बात हुई है. अगर अभी तक के सभी मूर्ति और स्मारकों का लेखा-जोखा निकाला जाए तो दिमाग को हिला देने वाली राशि निकल कर आएगी. ऐसे में इन राजनीतिज्ञों को यह सीधी सी बात समझ क्यों नही आती की जनता के टैक्स के जितने करोड़ों रूपए ये लोग इन महापुरुषों के इन स्मारकों को बनवाने में सरकारी खजाने से लगा देते हैं उतने में न जाने कितने उन करोड़ों लोगों के लिए अच्छे इलाज और शिक्षा के साथ रोटी-कपड़ा-मकान की व्यवस्था हो सकती है जिनके लिए लड़ाई लड़ते-लड़ते ये महापुरुष बने हैं. यानि कि जिन दलित और गरीबों को बदहाली से निकालने के लिए ये लोग महापुरुष बन गए, पहले उनके जीवन स्तर को सुधारना ज्यादा आवश्यक है या उनकी मूर्तियां बनवाना.

ऐसे में मुंबई हाईकोर्ट के जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस आरआई चागला वाली दो जजों की बैंच की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फटकार लगाते हुए की गई टिप्पणी वाकई स्वागतयोग्य है.

यह भी पढ़ें: शर्म की बात! मुंबई के अस्पतालों की बदहाली पर हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार का नेगेटिव उदाहरण देकर उद्धव सरकार को लगाई फटकार

मुंबई कोर्ट ने उद्धव सरकार को लिया आड़े हाथ

अब बात करते हैं मुबई कोर्ट की नाराजगी की, मुंबई कोर्ट में दो अस्पतालों की दुर्दशा को सुधारने के लिए सरकार से फंड दिलाने के निर्देश दिए जाने की मांग को लेकर एक याचिका लगाई गई थी. इसी याचिका पर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कोर्ट को टालम टोल वाले जवाब दिए जा रहे थे, इसी से नाराज होकर कोर्ट ने बहुत ही सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, “सरकार के पास मूर्तियों के लिए पैसे हैं और अस्पतालों के लिए नहीं. मुंबई कोर्ट जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा कि सरकार अंबेडकर की प्रतिमा सरदार पटेल की प्रतिमा से ऊंचा बनवाना चाहती है, प्रतिमा के लिए पैसा है लेकिन अंबेडकर जिनका प्रतिनिधित्व जीवन भर करते रहे, वे दलित और गरीब मरें तो मरें?

मुंबई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए पूछा कि, ‘बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए लोगों को इलाज की जरूरत है या इन मूर्तियों की? मुबई जैसे महानगर में गरीबों को इलाज नहीं मिल रहा, महिलाओं और बच्चों को भर्ती करने से मना किया जा रहा है. बच्चे मर रहे हैं और राज्य का तंत्र राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश और गुजरात की तरह कुछ नहीं कर रहा. क्या महाराष्ट्र को भी वैसा ही बनाना है क्या?’ सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने आपात निधी से 24 करोड रुपए स्वीकृत किए हैं और तीन सप्ताह के अंदर अस्पताल को एक मुश्त राशि मिल जाएगी. लेकिन कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना और कोर्ट ने कहा हमें इससे कोई फर्क नहीं पडता, अस्पतालों को शुक्रवार तक रकम दी जाए.