दिल्ली: सट्टा बाजार के ताजा आंकड़ों में आम आदमी पार्टी को 34 से 38, भाजपा को 22 से 25 तो कांग्रेस को 8 से 10 सीटें

आप ने काटे 15 मौजूदा विधायकों के टिकट, 5 विधायक पहले ही छोड चुके हैं पार्टी, तीन दलबदुलओं और 24 घण्टे पहले पार्टी में आये नेताओं को टिकट मिलने से 15 से 25 सीटों पर अंतर्कलह और भीतरघात से जूझ सकती है आप

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. अगले माह 8 फरवरी को होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव की चर्चा अब रौचक होती जा रही है. जहां एक ओर चुनाव आयोग द्वारा की गई चुनाव की घोषणा के साथ आए विभिन्न प्रीपोल सी वोटर सर्वे में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को अधिकतम 59 सीटें मिलना बताई गईं, वहीं अब प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सट्टा बाजार आम आदमी पार्टी को 34 से 38 सीटें मिलना ही बता रहा है. बता दें प्रीपोल वोटर सर्वे में आया 59 सीटों यह आंकड़ा पिछले चुनाव में आई 67 सीटों के मुकाबले 8 सीटें कम है. इन सी वोटर सर्वे रिपोर्ट्स में मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली की जनता की पहली पसंद अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर पर भाजपा के डॉ हर्षवर्धन हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न मीडिया एजेंसियों द्वारा कराए गए इन सी वोटर सर्वे से हटकर हार जीत की गणित का आंकलन करने वाला सट्टा बाजार अपनी ताजा तस्वीर कुछ और ही बंया कर रहा है. सट्टा बाजार के ताजा आंकलन में आम आदमी पार्टी को 34 से 38 सीटें ही मिल रही हैं. यह आंकड़ा 2015 के मुकाबले 29 सीटें कम है. वहीं सट्टा बाजार के आंकलन के अनुसार कांग्रेस को 8 से 10 और भाजपा को 22 से 25 सीटें मिल सकती हैं. बता दें, सट्टा बाजार का यह ताजा आंकलन आम आदमी पार्टी के सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने के बाद आए हैं.

सी वोटर सर्वे के विपरीत सट्टा बाजार के इस आंकलन की प्रमुख वजह यह बताई जा रही है कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा को अपनी अंतर्कलह और भितरघात के कारण भारी नुकसान उठाना पडा था. उसी तरह की परिस्थितियों से इस बार आम आदमी पार्टी (आप) को गुजरना पड सकता है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी सबसे पहले घोषित करके भाजपा और कांग्रेस से बाजी तो मार ली लेकिन उसने अपने 66 मौजूदा विधायकों में से पूर्व प्रधानमंत्री के पोते आदर्श शास्त्री सहित 15 विधायकों के टिकट काट दिए हैं. जिसके चलते टिकट कटने से इस विधायकों में अच्छी खासी नाराजगी और असंतोष है.

यही नहीं इसके साथ ही आम आदमी पार्टी (आप) ने दलबदलुओं को और सिर्फ एक दिन पहले पार्टी जॉइन करने वाले नेताओं को टिकट दे दिया. इनमें कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा भी शामिल हैं. विनय को द्वारका से टिकट दिया गया, जहां वर्तमान में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री विधायक हैं. वहीं हाल ही में आप में शामिल हुए बदरपुर के पूर्व विधायक राम सिंह को भी उम्मीदवार बनाया है. इसके साथ ही छह दिन पहले कांग्रेस से आप में आए शोएब इकबाल को मटया महल विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है.

इनके अलावा पिछले पांच सालों में आम आदमी पार्टी (आप) के 5 विधायक आप से बाहर जा चुके हैं. इनमें चांदनी चौक से अलका लांबा, करावल नगर से कपिल मिश्रा, बिजवासन से देवेंद्र सहरावत, सुल्तानपुर माजरा से संदीप कुमार और गांधी नगरसीट से अनिल वाजपेई शामिल हैं.

अब यहां आप ने भी वही किया जो अन्य बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां करती आईं हैं कि ने लोगों के लिए पुरानों को भूला दिया, जिसका कि ज्यादातर परिणाम नकारात्मक ही आता है. ऐसे में अंतर्कलह होना भी लाजमी है जिसकी शुरुआत भी हो चुकी है, टिकिट ना मिलने से मौजूदा विधायकों सहित पांच साल से पार्टी की सेवा कर रहे कर्मठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी से इस्तीफा देना शुरू कर दिया है. बदरपुर से राम सिंह को टिकट मिलने के बाद मौजूदा विधायक नारायण दत्त शर्मा का पार्टी से इस्तीफा देना इसका उदाहरण है.

वहीं अब टिकट कटने से नाराज इन 15 विधायकों सहित आम आदमी पार्टी (आप) के वो सभी कार्यकर्ता और पदाधिकारी जिनकी पिछले पांच साल में महत्वकांशाएं पूरी नहीं हुईं या फिर वो किसी और कारण से नाराज चल रहे हैं, यह सभी अरविंद केजरीवाल के सपने को पूरा होने में रोडे जरूर अटकाएंगे. आखिर यह सभी वही लोग हैं, जिन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव के समय आम आदमी पार्टी (आप) को 70 में से 67 सीटों के रिकार्ड तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की थी.

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अब जब चुनाव बहुत नजदीक आ चुके हैं तो सियासी समीकरण भी तेजी से बन और बिगड रहे हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी (आप) की इस अंतर्कलह का लाभ उठाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने समीकरण बनाना शुरू कर दिया है. वहीं भाजपा के पास अपनी जीत के कई दावे और आधार भी हैं. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही 3 सीटें ही जीती थीं लेकिन 2017 में हुए उपचुनाव में राजौरी गार्डन सीट से भाजपा ने जीती थी. इसके साथ ही एमसीडी के चुनाव में केजरीवाल को दिल्ली में सरकार होते हुए भी हार का सामना करना पडा था.

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