Rajasthan Assembly Election 2023. राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में करीब 10 महीने शेष हैं लेकिन गुजरात विस चुनाव के परिणामों के साथ यहां भी सियासी हलचल तेज हो चली हैं. गुजरात में कांग्रेस का जिस तरह का हश्र हुआ है, वो एक चिंता का विषय है. कुछ ऐसी ही हालात कांग्रेस की राजस्थान में साल 2013 में हुई थी, जब सरकार रिपीट कराने का सपना देख रहे अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट गई थी. पिछले गुजरात चुनावों में 42.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 77 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस इस बार 17 सीटों पर सिमट गई. 48 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ, सो अलग. दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी भी ट्रेंड पंडितों के विपरीत मुकाबले में कहीं नजर नहीं आई, लेकिन 5 सीटें जीत 12.9 फीसदी वोट शेयर पर कब्जा कर मीडिया की सुर्खियों में छा गई है. हालांकि मीडिया में ये बात कही जा रही है कि आप न होती तो कांग्रेस टक्कर में बनी रहती लेकिन दोनों की सीटों को मिला भी दिया जाए तो भी ‘हाथ’ बीजेपी की 182 के मुकाबले 156 सीटों के सामने न तो टिकता दिख रहा है, न ही वोट शेयर.
गुजरात में बीजेपी की जीत निश्चित थी लेकिन कांग्रेस की इस तरह की हार अप्रत्याशित रही. इसके अलावा, आम आदमी पार्टी ने केवल 5 सीटें जीतकर दिल्ली, पंजाब और दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस को मुकाबले से बाहर करने के बाद यह सबसे बड़ा उलट फेर कर दिया है. आप आदमी पार्टी ने दिल्ली में न केवल बीजेपी के 20 साल के साम्राज्य को खत्म कर दिया, बल्कि गुजरात से भी आगामी वर्षों में कांग्रेस को गर्त में भेजने की नींव रख दी है. बड़े चेहरों के अभाव में आप पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी और गुजरात चुनावों में कांग्रेस के अरमानों पर जो झाडू फेरी है, वो राजस्थान में भी सरकार रिपीट करने का सपना देख रही गहलोत सरकार के लिए दुस्वप्न से कम नहीं है.
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हालांकि राजस्थान में आम आदमी पार्टी एकदम नई है लेकिन दिल्ली में हैट्रिक, पंजाब में सरकार और गुजरात में ठीकठाक एंट्री ने प्रदेश में आप पार्टी को शक्ल दिखाने लायक जगह तो दे ही दी है. वैसे भी राजस्थान में क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या तो अधिक है लेकिन उनमें गेम चेंजर बनने का माद्दा न के बराबर है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी देश की तीसरी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी यहां सीमित है. पिछले राजस्थान विस चुनावों में पार्टी के 6 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे, जो फिलहाल कांग्रेस के बाड़े में ऐश करते दिखाई दे रहे हैं. हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का प्रभाव केवल जाट बाहुल्य क्षेत्रों में ही है. वर्तमान में उनके तीन विधायक सदन में हैं. छात्र राजनीति के दम पर प्रदेश की राजनीति में उतरी भारतीय ट्रिबल पार्टी असंतुष्ठ अल्पसंख्यकों की पार्टी है जिसने पहले विस चुनावों में दो सीट जीतकर सुर्खियां बटोरी हैं.
इनके अलावा, राष्ट्रीय लोकतांत्रित पार्टी के तीन, सीपीआईएम के दो और कांग्रेस सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के पास एक सीट है. 13 निर्दलीय विधायक भी हैं जिनमें से 11 कांग्रेस समर्थित हैं. इन सभी की सीटों का कुल योग किया जाए तो 30 के करीब होता है. इन सभी का एक छत्र के नीचे आना वक्त की नजाकत पर निर्भर करता है, जैसा होते नजर नहीं आता. फिलहाल इनमें से 25 से अधिक विधायक सत्तारूढ़ पार्टी को समर्थन दे रहे हैं. कुल मिलाकर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच ही है. वहीं ओवैसी की AIMIM और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का राजस्थान में फिलहाल कोई जनाधार मौजूद नहीं है।
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अब सवाल ये है कि अगले साल राजस्थान विस चुनावों में आप कांग्रेस का गणित कैसे बिगाड़ सकती है? इस जवाब है असंतुष्ठ वोटर. इनमें से अधिकांश 30 से 40 के बीच का युवा वर्ग है, जो पिछले कई सालों से बीजेपी और कांग्रेस दोनों की सरकारों को देख चुका है. बीते 10 सालों में आम आदमी पार्टी के दिखाए दिल्ली मॉडल पर सभी की नजर है. इस वर्ग का अरविंद केजरीवाल पर भरोसा गहराया है. फिलहाल ये वोट शेयर बीजेपी के हिन्दुत्व के घेरे से आजाद होना चाहता है लेकिन विकल्प न होने के चलते ‘मोदी है तो मुमकिन है’ की आस लगाए बैठा है. इससे उपर के लोग या तो कट्टर कांग्रेसी होंगे या फिर कट्टर बीजेपी विचारधारा में रमे हुए. यहां आम आदमी पार्टी एक अन्य विकल्प के तौर पर सामने आ सकती है.
मुस्लिम वोट, जो बीजेपी को वोट नहीं देना चाहता, उनके लिए भी आप कांग्रेस के अलावा नया विकल्प हो सकती है. राजस्थान विस चुनावों में आप के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन इस पहले चुनाव में अगर आप अपना वोट बैंक और एक या दो सीटें भी खड़ी कर देती है तो करीब करीब हर बड़े राज्य में उनकी उपस्थिति दर्ज करने में सफल साबित हो जाएगी. यही सियासी जमीन उन्हें राजस्थान और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में पंजाब जैसा कारनामा फिर से करने में मदद करेगी.
आप आदमी पार्टी हर राज्य की तरह ही राजस्थान में भी दिल्ली मॉडल दिखाकर फ्रीबीज पर दांव खेल रही है. इससे कांग्रेस और बीजेपी सहित अन्य पार्टियों पर भी दवाब बनेगा. कांग्रेस की कर्जमाफी, कम दाम पर फसल खरीदी और बेरोजगारी भत्ता जैसे योजनाओं का लाभ अधिकांश को न मिल पाने का गुस्सा युवाओं में व्याप्त है. ऐसे में नए और सामाजिक रूप से सक्रिय चेहरों को मौका देने से एंटी इंकम्बेंसी का फायदा उठाने में आम आदमी पार्टी कामयाब हो सकती है.
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पिछले राजस्थान चुनाव के वोट शेयर पर एक नजर डालें तो राजस्थान विस चुनाव 2018 में 200 में से 58 सीटों पर जीत हार का मार्जिन 5 फीसदी वोटों से भी कम रहा. इनमें से 13 सीटों पर अंतर एक फीसदी से भी कम, 23 सीटों पर दो फीसदी से कम, 39 सीटों पर 3 फीसदी और 47 सीटों पर 4 फीसदी से भी कम जीत हार का अंतर रहा.
इसी फॉर्मुले को अगर गुजरात विस चुनाव से कंपेयर करें तो आम आदमी पार्टी की जीत हुई 5 सीटों के अलावा, 33 सीटों पर पार्टी दूसरे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही. इनमें से 27 सीटों पर जीत हार का अंतर 5 हजार वोटों से भी कम रहा. यानी सीधे तौर पर कहें तो गुजरात में आप ने बीजेपी को कांग्रेस से बेहतर टक्कर दी. अब राजस्थान में भी जहां जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच नजदीकी मुकाबला है, वहां अगर आप आदमी पार्टी हल्की सी भी सेंध लगा पाने में सफल हो पाए या अपना वोट शेयर बनाने में कामयाब हो जाए तो इस वोट बंटने का सर्वाधित लाभ बीजेपी को होगा और बीजेपी आसानी से यहां सरकार बना सकेगी. ऐसे में कांग्रेस के लिए ये दो धारी तलवार साबित होगा.
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एक बार मान भी लिया जाए कि कांग्रेस नजदीकी अंतर से सरकार बनाने में कामयाब हो जाए और आम आदमी पार्टी के पास गेम चेंजर बनने का मौका हो, तो एक नेशनल पार्टी बन चुकी आप के लिए ये बड़ा मुश्किल होगा कि वो अपनी विरोधी पार्टी से हाथ मिला ले. कांग्रेस के साथ एक बारगी ऐसा हो सकता है लेकिन बीजेपी के साथ तो ऐसा नहीं होने वाला.
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गौर करने वाली बात ये भी है कि इस समय देश में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा केवल आम आदमी पार्टी के पास ही एक से अधिक राज्यों में सरकार है. आप के पास दिल्ली और पंजाब के अलावा दिल्ली नगर निगम में भी सत्तारूढ़ प्रशासन है. उनकी यही ताकत आप को अन्य राज्यों में बेखौफ होकर उतरने का विश्वास देता है. अगर गुजरात के रास्ते आम आदमी पार्टी 12.9 के मुकाबले आधा वोट शेयर भी राजस्थान में खड़ा करने में सफल साबित हो जाती है तो कांग्रेस के लिए सत्ता फिसलने से कोई रोक नहीं सकता. यानी आम आदमी पार्टी की झाडू की बेहतरीन सफाई से कांग्रेस को अगर बचना है तो अपने अंदरूनी कड़वाहट को छोड़ एकजुट होकर सियासी मैदान में उतरना होगा. अन्यथा केजरीवाल की ये आंधी बीजेपी को तो नहीं, लेकिन कांग्रेस को मरूधरा की आंधी में जरूर उड़ा देगी.