विशेष रिपोर्ट: भाजपा आलाकमान को अब समझना ही होगा कि मरुधरा की धरा पर केवल वसुंधरा

मैडम राजे के नेतृत्व में हर बार बीजेपी को 100 से अधिक सीटें दिलाई, 2013 के चुनावों में कांग्रेस को 21 सीटों पर समेटा, वसुंधरा राजे की राजपूत, जाट और गुर्जर समाज के अलावा महिला व युवा वर्ग में भी है खास पकड़, बीजेपी के मौजूदा 71 विधायकों में से 40 से अधिक विधायक कट्टर राजे समर्थक हैं जिन्हें हिलाया जाना मुश्किल... दूसरी तरफ राजस्थान में मोदी फेक्टर उतना असर नहीं रखता है जितना कि अन्य राज्यों में...

राजस्थान में भाजपा मतलब वसुंधरा
राजस्थान में भाजपा मतलब वसुंधरा

Vasundhra Raje in Rajasthan BJP. राजस्थान में गहलोत सरकार अगले महीने अपने चार साल पूरे करने वाली है. ऐसे में कांग्रेस सरकार की पिछले चार साल की विफलताओं को गिनाने एवं जनता के सामने लाने के लिए प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी सभी 200 विधानसभाओं में जन आक्रोश यात्रा निकालने जा रही है. सभी विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी रथ यात्रा निकालकर गहलोत सरकार की विफलताओं को गिनाने का काम करेगी. खास बात यह है कि बीजेपी का अपनी जन आक्रोश यात्रा तीन दिसम्बर यानी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के 4 दिसम्बर को राजस्थान में प्रवेश करने से एक दिन पहले निकालने जा रही है. अब आते हैं असल मुद्दे पर, बीजेपी इस यात्रा को पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के चेहरे पर ही निकालना चाह रही थी, लेकिन समय रहते एक बार फिर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इस बात का अहसास हो गया कि राजस्थान में बीजेपी का मतलब केवल और केवल वसुंधरा राजे है और इस धरा पर अगर ‘वसुंधरा’ नहीं तो बीजेपी का ‘राज’ भी नहीं.

अब आपको बताते हैं कि आखिर अचानक ये बात एक बार फिर कहां से उठी? दरअसल, इस बार बीजेपी सत्ता प्राप्ति के बाद मुख्यमंत्री चेहरा बदलने पर विचार कर रही है. जबकि पिछली दो बार राजस्थान की बीजेपी की सत्ता में मैडम वसुंधरा राजे ही मुख्यमंत्री चेहरा रहीं और मुख्यमंत्री बनी भी. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. चूंकि राजस्थान बीजेपी में आधा दर्जन से ज्यादा चेहरे मुख्यमंत्री की दावेदारी पेश कर रहे हैं. इनमें गुलाबचंद कटारिया, सतीश पूनियां, गजेन्द्र सिंह शेखावत के नाम के साथ-साथ अब अलवर के बीजेपी सांसद बाबा बालकनाथ का नाम भी जुड़ गया है. ऐसे में बीते रविवार को जारी हुए बीजेपी की जन आक्रोश यात्रा के रथों पर लगने वाले पोस्टरों को लेकर पार्टी में जबरदस्त हलचल मची हुई थी, पार्टी इन पोस्टर्स पर कि किस नेता की फ़ोटो को जगह देती है. खासकर मैडम वसुंधरा राजे की फ़ोटो को लेकर कौतूहल मचा हुआ था, क्यों कि इससे पहले भी पार्टी के एक-दो कार्यक्रमों में मैडम राजे की फ़ोटो पोस्टर्स से नदारद रही थी.

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खैर, प्रदेश कांग्रेस से कहीं ज्यादा प्रदेश भाजपा ने जारी आंतरिक खींचतान से वाकिफ बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने यात्रा के बारे में फैसला लिया कि विवाद से बचने के लिए आधिकारिक पोस्टरों-बैनरों पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्‌डा की तस्वीर लगाई जाएगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही. पता चला है कि यात्रा की सभी तैयारियां हो चुकी थीं और पीएम मोदी और नड्डा के फोटो वाले झंडे भी रथों पर लगने वाले थे लेकिन बीते रविवार को जारी होने वाले इन पोस्टर्स के ऐन वक्त पहले इन पोस्टर्स पर प्रदेश के तीन बड़े नेताओं के फोटो भी यात्रा के बैनर्स पर लगाने पड़े. दरअसल, जब बीजेपी में प्रदेश नेतृत्व की अनदेखी को लेकर आंतरिक रूप से इस पर सवाल उठने लगे तो बीजेपी को ऐन वक्त पर अपनी स्ट्रैटजी बदलनी पड़ी. अब बीजेपी ने राजस्थान के तीन नेताओं के चेहरे प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की तस्वीरों को भी अपने आधिकारिक पोस्टर और बैनर में शामिल किया.

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इससे पहले, बीजेपी ने जन आक्रोश यात्रा को लेकर पहले अपनी रणनीति के अनुसार ऑफिशियली इस्तेमाल होने वाले सभी पोस्टर, बैनर, पम्पलेट पर राजस्थान के किसी भी नेता की तस्वीर नहीं रखी थी. पार्टी में चल रही गुटबाजी और आमतौर पर कार्यक्रमों में होने वाली फोटो पॉलिटिक्स से बचने के लिए यह तोड़ निकाला गया था. बाद में, पहले जो तय किया गया था, उसे लेकर चर्चाओं में यह बात सामने आई कि प्रदेश नेतृत्व के पोस्टर्स पर नहीं दिखने से कई सवाल खड़े हो सकते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए इन सभी नेताओं के फोटो बैनर में शामिल करने पड़े.

ये कहानी जितनी सीधी और सरल दिखाई दे रही है, उतनी सीधी है नहीं. दरअसल, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि इस बार राजस्थान का विधानसभा चुनाव केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा. उसकी वजह है कि केंद्रीय आलाकमान इस बार राजस्थान में नया सीएम फेस लाने पर विचार कर रहा है. वहीं संघ के जुडे नेताओं को राजस्थान बीजेपी में तवज्जो दी जा रही है. लेकिन इन सबके बीच दो बार की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के प्रदेश में प्रभाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

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इसमें कहीं कोई दो राय नहीं है कि राजस्थान की सियासत में मैडम वसुंधरा राजे का जो दमखम है, अन्य भाजपा नेताओं का उतना प्रभाव नहीं है. स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत के राजस्थान की सत्ता छोड़ने के बाद मैडम राजे ही यहां बीजेपी का असल चेहरा रही हैं. वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और इस दौरान उन्होंने अपने नेतृत्व में हर बार बीजेपी को 100 से अधिक सीटें दिलाई हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों में तो मैडम राजे ने कांग्रेस को 21 सीटों पर समेट दिया था. यही नहीं मैडम वसुंधरा राजे की राजपूत, जाट और गुर्जर समाज के अलावा महिला और युवा वर्ग में भी खास पकड़ है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के प्रभाव के सामने सतीश पूनियां, गुलाबचंद कटारिया, गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल की स्थिति काफी शिथिल नजर आती है.

आपको बता दें, प्रदेश के सियासी गलियारों में इस बात की पुष्टि होती है कि राजस्थान में कांग्रेस से ज्यादा आपसी खींचतान भाजपा में है, लेकिन यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि बीजेपी के मौजूदा 71 विधायकों में से 40 से अधिक विधायकों को मैडम वसुंधरा की कृपा हासिल है और ये कट्टर राजे समर्थक हैं जिन्हें हिलाया जाना मुश्किल ही नहीं असम्भव प्रतीत होता है. दूसरी तरफ यह भी सर्वविदित है कि राजस्थान में मोदी फेक्टर उतना असर नहीं रखता है जितना कि अन्य राज्यों में माना जाता है, बल्कि सीधे शब्दों में बोलें तो बीजेपी की टॉप की तिगड़ी पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से कहीं ज्यादा प्रभाव मैडम राजे का माना जाता है. सियासी जानकारों का मानना है कि मैडम वसुंधरा राजे के प्रदेश में इसी प्रभाव को देखते हुए केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व में ऐन वक्त पर जन आक्रोश यात्रा को लेकर अपनी स्ट्रैटजी बदलनी पड़ी है.

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प्रदेश की राजनीति को समझने वाले सुधिजन बताते हैं कि अब चूंकि अकेले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का फोटो भी बैनर में शामिल नहीं किया जा सकता था, क्योंकि अगर ऐसा होता तो जो आंतरिक घमासान अभी तक दबा हुआ है वो चुनाव के सालभर पहले ही खुलकर सामने आ जाता. इसके चलते मैडम वसुंधरा राजे के साथ प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का फोटो भी शामिल किया गया हैं. हालांकि, अभी तो बानगी है बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की असली परीक्षा थोड़े समय बाद सामने आएगी, क्योंकि राजस्थान में मौजूदा गहलोत सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी होने के बावजूद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को आगे रखे बिना यहां चुनाव जीतना सुईं के छेद में से ऊंट को निकालने जितना मुश्किल माना जा रहा है.

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