बीजेपी को भारी पड़ सकता है संजय पासवान का बयान, सीटों बंटवारे को लेकर पहले ही चल रहा जेडीयू से भारी मतभेद

बीजेपी नेता पासवान के बयान पर भड़की जेडीयू ,पासवान को बताया बड़बोल नेता, पार्टी आलाकमान से कार्यवाही की मांग, वहीं नीतीश के बिना भाजपा का जीत पाना दूर की कोड़ी

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. बिहार की राजनीति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. जहां एक ओर बीजेपी के दिग्गज इस बात की घोषणा कई बार कर चुके हैं की बीजेपी अगला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार को सीएम का चेहरा रखकर लडेगी वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के विधान पार्षद संजय पासवान का हालिया बयान बिहार में बीजेपी और जदयू के गठबंधन पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. बुधवार को संजय पासवान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे को पुराना चेहरा बताते हुए कहा कि बिहार की जनता चाहती है कि अब भाजपा का मुख्यमंत्री बने. इतना ही नहीं पासवान ने ये भी दावा कर दिया कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी नीतीश कुमार के बिना भी जीत का दम रखती है. पासवान के इस बयान के बाद जदयू भड़क गई है और पासवान को बड़बोल नेता बताते हुए उन पर कार्रवाई करने की मांग बीजेपी आलाकमान से की.

हालांकि पासवान के बयान को बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने व्यक्तिगत बयान बताया लेकिन जदयू की ओर से आक्रमकता दिखाई जा रही है. इसी कड़ी में जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि पार्टी नेतृत्व को ऐसे बयानों पर संज्ञान लेना चाहिए. उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ऐसे बयानों पर संज्ञान लेंगे और आगे से इस तरह के बयान पर रोक लगाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि जेडीयू के किसी नेता ने अब तक बीजेपी के नेतृत्व पर नकारात्मक टिप्पणी नहीं की है, ऐसे में बीजेपी को भी इससे बचना चाहिए.

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जिस तरह के बिहार में बीजेपी और जेडीयू के हालिया संबंध चल रहे हैं, उसमें पासवान का ये बयान आग में घी का काम कर रहा है. विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर पहले ही नेताओं की बयानबाजी से उहापोह वाली स्थिति पैदा हो गई है. उसी में बीजेपी नेता का ये बयान दोनों के संबंधों पर असर डाल सकता है. अगर ऐसा है तो जदयू की नाराजगी बिहार में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है.

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दरअसल, संजय पासवान ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा था, ‘प्रदेश के लोग अब एक भाजपाई को बतौर बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. बीजेपी राज्य में सबसे मजबूत और सक्रिय पार्टी है. हम अकेले ही बिहार जीत लेंगे’. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अंततः हम पीएम मोदी और अपने नेता सुशील मोदी के फैसले का पालन करेंगे लेकिन अब हम बिहार में अकेले चुनाव जीतने में सक्षम हैं. उनका ये बयान जेडीयू के गाल पर करारा थप्पड़ है.

वजह है- नीतीश कुमार सरकार बीजेपी की बैसाखियों पर टिकी हुई है और बीजेपी के दम पर ही नीतीश कुमार सत्ता का सुख भोग रहे हैं. हालांकि गठबंधन में एलजेपी भी शामिल है लेकिन अगर बीजेपी चाहे तो बिहार सरकार कभी भी गिर सकती है. चूंकि आगामी चुनावों को 10 महीने से भी कम वक्त बचा है, ऐसे में नीतीश कुमार सभी मुद्दों पर बेहद सतर्क हैं और चुप्पी साधे बैठे हैं.

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उधर, आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी और जदयू के बीच सीट बंटवारे को लेकर भी दोनों पार्टियों के नेताओं की खींचतान और बयानबाजी जग जाहिर है. जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर पहले ही कह चुके हैं जदयू इस बार के चुनावों में बड़े भाई की भूमिका में रहेगा और उन्हें इस बार बीजेपी से ज्यादा सीटें चाहिए. वहीं सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि भाजपा बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. लोकसभा में बीजेपी पहले ही ऐसा कर चुकी है लेकिन जदयू इस बार ऐसा करने के मूड में बिलकुल भी नहीं है.

पिछले विधानसभा चुनावों में जदयू अकेले 100 सीटों पर लड़ी थी. अन्य 143 सीटों पर महागठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने चुनाव लड़ा. जदयू ने 70 सीटें जीतीं. वहीं बीजेपी ने अपने गठबंधन में 168 सीटों पर चुनाव लड़ा और 54 सीटों पर सिमट गई. राजद नंबर 1 पार्टी बनी और 81 सीटों पर कब्जा जमाया और समझौते के तहत नीतीश मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने. हालांकि गठबंधन केवल 6 महीने ही चल पाया और नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर बीजेपी से हाथ मिलाने के साथ अगले ही दिन फिर से सीएम पद की शपथ ग्रहण कर ली.

चूंकि बीजेपी का ग्राफ देश में लगातार गिरता जा रहा है, उसके बाद भी भाजपा नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं. बिहार में जदयू के मुकाबले बीजेपी बेहतर स्थिति में है. देश में एक दर्जन से अधिक राज्यों में बीजेपी की सरकार है और करीब करीब इतने ही राज्यों में विपक्ष में है. ऐसे में देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उन्हें पूरा हक है कि वे बिहार को टेकओवर करें. वहीं नीतीश की पार्टी की सरकार इकलौते बिहार में है. हालांकि जदयू कई अन्य राज्यों में चुनाव में भागीदार बनती है पर सीटें न के बराबर. बीजेपी को ये भी लगने लगा है कि अब अगर नीतीश भाजपा का दामन छोड़ या उनकी शर्तों को ठुकराकर कांग्रेस और राजद के खेमे में जाते हैं तो उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलेगा.

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वहीं दबे स्वर में ये खबरें भी आ रहीं हैं कि प्रशांत किेशोर के बयान पर पलटवार के चलते बीजेपी ने संजय पासवान के जरिए ये बयान जानबूझकर दिलाया है ताकि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेताओं को हकीकत से रूबरू कराया जा सके. हालांकि इस बारे में न तो नीतीश और न ही पार्टी आलाकमान ने कुछ कहा है. एक बात और, बिहार अब बीजेपी की नाक का सवाल भी बन गया है. पिछले आठ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा केवल दो राज्यों पर ही कब्जा जमा पाई है.

अन्य 4 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रेस ने सरकार बनाई. फिलहाल कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिरने से बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार फिर से आ गई. वहीं हाल में तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में किसी भी राज्य में बीजेपी ने पूर्ण सफलता हासिल नहीं की. इकलौत हरियाणा में बीजेपी सरकार जजपा के समर्थन से बनी. अन्य दोनों राज्य महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन सरकारों का कब्जा है.

नए साल में देश की राजधानी दिल्ली और बिहार दो बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. दिल्ली में अगले माह चुनाव होंगे लेकिन यहां स्थिति कमोबेश आम आदमी पार्टी की ओर इशारा कर रही है. ऐसे में बिहार ही इकलौता राज्य है जहां बीजेपी अपनी साख और नाक दोनों बचाने की कोशिश करेगी. ये भी सच है कि राजद, जदयू और कांग्रेस के सामने अकेली बीजेपी का टिकना संभव नहीं. अगर बिहार में बीजेपी को टिकना है तो पार्टी के नेताओं की बयानबाजी पर नियंत्रण रखना ही होगा, वरना ऐसी तुकबाजी भाजपा को भारी भी पड़ सकती है.

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