समय बदलता है तो बहुत कुछ बदल जाता है, बदले समय में बंगला भी बदलना पडेगा वसुंधरा राजे को

घनश्याम तिवाडी चुनाव जरूर हारे लेकिन बंगला न0 13 खाली करवाने की उनकी मुहिम जीत गई!, गहलोत ने मुख्यमंत्री के बाद की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पार्टी लाइन के विपरीत जाकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी लड़ाई

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. कहते हैं समय बदलता है तो बहुत कुछ बदलता है. 2009 में प्रतिपक्ष नेता वसुंधरा राजे ने सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर 13 में प्रवेश किया था. 2013 में दूसरी बार वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं तो मुख्यमंत्री के लिए आवंटित आवास में न जाकर इसी बंगले में रहने का निर्णय लिया. उस समय उन्हीं की पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाडी ने वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तिवाडी ने बंगला नंगर 13 को खाली कराने के लिए न सिर्फ कई दिनों तक प्रदर्शन किया बल्कि आगे चलकर भाजपा से हटकर अपनी ही एक पार्टी तक बना ली. वो बात अलग है कि चुनाव हुए तो पार्टी के अन्य उम्मीदवार तो छोडिए खुद तिवाडी अपनी परम्परागत सांगानेर सीट तक नहीं बचा पाए. लेकिन अब बंगला नंबर 13 को वसुंधरा से खाली कराओ की उनकी मुहिम आखिरी मुकाम तक पहुंच गई है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बंगला नंबर 13 खाली करना ही पडेगा. वसुंधरा राजे इस बंगले में पिछले 10 सालों से रह रही हैं इस दौरान यह बंगला उनकी राजनीति का बडा केंद्र रहा है, वसुंधरा राजे की राजनीति से जुडे अहम फैसले इस बंगले में हुए हैं. 2009 से जब वो गहलोत सकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहीं, 2013 जब वो मुख्यमंत्री बनीं और 2018 से अब जब वो दोनों ही पदों पर नहीं हैं, तो ऐसे में वसुंधरा राजे के तीनों ही दौर का बड़ा साक्षी यह बंगला नंबर 13 है.

कभी भाजपा के नेताओं/कार्यकर्ताओं/अधिकारियों से आबाद रहने वाले इस बंगले पर पिछले एक साल में रौनक नहीं है. घनश्याम तिवारी ने आरोप लगाया था कि श्रीमती राजे ने इस बंगले में रहने के लिए अपने मुख्यमंत्री पद का दुरुपयोग किया और लाखों रूपए इस पर नियम विरूद्ध खर्च किए. लेकिन उस समय पूरी राजस्थान भाजपा वसुंधरा राजे के साथ खडी दिखाई देती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. समय के साथ सब चीजें बदल जातीं हैं.

लेकिन राजस्थान भाजपा के पक्ष की एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि अगर वसुंधरा राजे के चेहरे को नजर अंदाज कर दिया जाए तो भाजपा के पास दूसरे कई राज्यों की तरह ऐसा कोई जनाधार वाला चेहरा नहीं है जिसमें भविष्य का मुख्यमंत्री देखा जा सके. आज भी अगर सिर्फ बीजेपी नेताओं के बीच सीएम चेहरे को लेकर सर्वे करवाया जाए तो मुख्यमंत्री के लिए वसुंधरा राजे के अलावा कोई दूसरा नाम बराबरी भी नहीं कर पाएगा.

बहरहाल सुप्रीम के आदेश के बाद एक बार फिर बंगला नंबर 13 और वसुंधरा राजे सुर्खियों में हैं. कोर्ट के आदेश आएं है तो एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री साहिबा को बंगला भी खाली करना ही पड़ेगा… लेकिन कैसा लगेगा वसुन्धरा को यह बंगला खाली करते वक्त? ये वक्त वक्त की बात ही तो है… जिसके लिए श्रीमती राजे ने इतनी लड़ाई लड़ी… उनके सुख और दुख के दिनों का साक्षी बना है ये बंगला. आखिर वसुंधरा राजे का इस बंगले से कितना मोह रहा होगा इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2013 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नेता प्रतिपक्ष की हैसीयत वाले इस बंगले में ही उन्होंने पूरे 5 साल निकाले लेकिन मुख्यमंत्री के लिए बने आवास पर नहीं गई. वसुंधरा राजे और बंगला नंबर 13 कई मायनों में एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं.

जब वसुंधरा राजे इस बंगले में आजीवन रहने का सपना सजाकर विधानसभा में बिल इससे सम्बंधित बिल लेकर आई थीं तो विपक्ष में कांग्रेस बैठी कांग्रेस ने इसका जमकर विरोध किया था और यह बिल हाईकोर्ट की मुकदमेबाजी में फंस गया. लेकिन जब कांग्रेस सत्ता में आई और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पार्टी भावना के विपरीत जाकर इस बिल को लागू करवाने का भरकस प्रयास किया. ऐसा करते वक़्त उनको शायद इस बात का अहसास रहा होगा कि एक दिन वो भी रिटायर होंगे और मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, तब यही बिल उन्हें भी सुविधाएं दिलाएगा. शायद इसी के चलते उन्होंने पार्टी के विरुद्ध जाकर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी…

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खैर, कुछ भी हो, श्रीमती वसुंधरा राजे की चाहत के चलते बंगला नंबर 13 ने सिविल लाइन स्थित दूसरे सभी बंगलों के बीच अपनी एक खास पहचान तो स्थापित कर ही दी है. अब राजे के बाद इस बंगले में जो भी सख्शियत रहने आएगी वो अपने आपको मुख्यमंत्री से कम नहीं समझेगा.

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