कांग्रेस का राज्यसभा टिकट काटना राजद को पड़ रहा भारी, रालोसपा के बाद मांझी ने जताई नाराजगी

मांझी ने कहा कि बड़े भाई होकर भी भूमिका नहीं निभा रही राजद, शरद यादव खेमा भी राजद के फैसले से नाराज, वहीं कांग्रेस विधानसभा चुनावों में बड़ा हिस्सा लेने की कर रही आस

Bihar Jitin Manjhi
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पॉलिटॉक्स न्यूज/बिहार. चाहें किसी भी वजह से हो लेकिन वादा करने के बाद भी राज्यसभा में कांग्रेस की सीट हड़पना लालू की रास्त7जनता दल को भारी पड़ता दिख रहा है. राज्यसभा में बिहार से राज्यसभा की पांच सीटें खाली हुई थी जिनमें से दो राजद और तीन एनडीए के हिस्से में गई. आम चुनाव के समय सीटों के बंटवारे के समय कांग्रेस को एक राज्यसभा सीट देने का वादा किया गया था लेकिन जब समय आया तो राजद ने बिना कोई सीट कांग्रेस को दिए अपने पैठे से दो उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया. इस बारे में कांग्रेस की तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन हिंदूस्तान आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने नाराजगी जाहिर की है. इससे पहले रालोसपा भी इसी मुद्दे पर राजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. ये गुस्सा बिहार वि.स.चुनावों से पहले महागठबंधन दलों के बीच फूट के तौर पर देखा जा रहा है.

राजद के रूख पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि राजद महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में है. इसमें किसी को कोई शक नहीं है. लेकिन, राजद बड़े भाई की भूमिका नहीं निभा पा रहा है. यही रवैया रहा तो सहयोगी दल मार्च के बाद बड़ा फैसला ले सकते हैं. मांझी ने बागी तेवर दिखाते हुए कहा कि राजद अभी खुद को बड़े भाई की भूमिका निभाने में असमर्थ नजर आ रहा है. कांग्रेस को राज्यसभा का एक सीट देने का लिखित आश्वासन दिया गया था लेकिन अंतिम समय में एक ऐसे कारोबारी को टिकट दिया गया, जिसके बारे में सभी जानते हैं. सब जानते हैं किस वजह से उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है. राजद का अगर यही रवैया रहा तो आने वाले दिनों में उसकी यह भूमिका बदल सकती है.

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मांझी ने आगे कहा कि मैं महागठबंधन में राजद का मित्र हूं इसलिए जब वे गलती करते हैं तो बोलता हूं. मैं पहले दिन से प्रयास कर रहा हूं कि कोऑर्डिनेशन कमेटी बने. चाहे नेतृत्व हो या आंदोलन, जो भी फैसला हो सबकी सहमति से हो. हम पार्टी के अध्यक्ष ने राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर निशाना साधते हुए कहा, ‘उनका है यहां सिर्फ लालू यादव की बात मानी जाएगी. जिसे ये स्वीकार हो वह रहे और जिसे न हो, बाहर का रास्ता देखे. अगर राजद का रवैया ऐसा ही रहता है तो मार्च के बाद हमलोग कोई भी विकल्प तलाशने को स्वतंत्र होंगे’.

इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा भी राजद के रवैया पर सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस के पक्ष में बोलते हुए कुशवाहा ने कहा कि जो हुआ गलत हुआ. कांग्रेस को एक सीट मिलनी चाहिए थी. वहीं शरद पवार का खेमा भी राजद के फैसले से नाराज है और स्वतंत्र राजनीति करने की तैयारी कर रहा है. बिहार के महागठंधन की राजनीति में ये फूट निश्चित तौर पर राजद के लिए सोचनीय बात जरूर है लेकिन ये बात कांग्रेस के लिए दूर की कोड़ी साबित हो रही है.

वजह है- छोटी पार्टियों के राजद से दूर होने का फायदा कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी की तरह है. जैसा कि राजनीति विशेषज्ञों का मानना है ‘कांग्रेस छोटी पार्टियों को साथ लेकर बिहार में अपने आपको मजबूत कर रही है ताकि गठबंधन की स्थिति में राजद से बेहतर मोलभाव कर सके’. प्रदेश की राजनीति को गौर से देखें तो ये बात सटीक साबित होती है. जिस तरह कुशवाहा कांग्रेस का आगे बढ़कर पक्ष ले रहे हैं, माना यही जा रहा है कि मोलभाव करने में कुशवाहा कांग्रेस की मदद कर रहे हैं.

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कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि विधानसभा में सीटों के बंटवारे में वो अच्छी खासी सीटों पर अपना प्रभुत्व बना सके. ऐसे में कांग्रेस अकेले अपने लिए करीब 100 सीटों की मांग कर रही है जबकि 243 सीटों वाली एसेंबली में से राजद अपने सभी सहयोगियों को 100 के अंदर समेटने की तैयारी में है. अगर गठबंधन में कांग्रेस मजबूत रही तो न केवल अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी, वरन जीत की स्थिति में कई महत्वपूर्ण विभाग भी अपने हिस्से में करने में सफल होगी.

वहीं बात करें सत्तारूढ़ गठबंधन यानि जदयू, बीजेपी और लोजपा की तो तीनों ने अपनी अपनी चुनावों रणनीतियों को गति देना शुरु कर दिया है. बीजेपी के सभी नेताओं सहित शीर्ष आलाकमान ने नीतीश को सीएम चेहरा मान लिया है. तीनों पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा भी करीब करीब तय हो चुका है. वहीं महागठबंधन की ओर देखें तो यहां अभी तक केवल ख्याली पुलाव पक रहे हैं. तेजस्वी यादव बेरोजगारी के विरोध में प्रदेशभर में रथ यात्रा कर रहे हैं लेकिन अन्य सहयोगी दलों की नाराजगी इस कदर बढ़ चुकी है कि कांग्रेस सहित अन्य कोई सहयोगी दल इस यात्रा में भागीदार नहीं बना. यहां तक की तेजस्वी के चेहरे पर पार्टी के नेता एकमत नहीं हैं. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में राजद की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही है.

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