रणनीतिकारों की चूक और उलझन में कांग्रेस

कांग्रेस के रणनीतिकार हर दिन एक नई समस्या से निबटने में जूझते जा रहे हैं, बार-बार बदलती जा रही रणनीति के कारण कांग्रेस और गहलोत सरकार सवालों के घेरे में आने के साथ-साथ रणनीतिक तौर पर कमजोर पड़ रही है

रणनीतिकारों की चूक और उलझन में कांग्रेस
रणनीतिकारों की चूक और उलझन में कांग्रेस

Politalks.News/Rajasthan. अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अशोक गहलोत सरकार के रणनीतिकारों की जल्दबाजी के कारण सियासी संकट के समय बाजी पूरी तरह उलझ गई. भले ही मुख्यमंत्री गहलोत संख्या बल के हिसाब से मजबूत हैं, लेकिन रणनीति के तौर पर पायलट ज्यादा मजबूत साबित हो रहे हैं.

इसे समझना बहुत जरूरी है, कि घटनाक्रम की शुरूआत में हुआ क्या जिसके कारण यह सियासी घमासान 17 दिन चल गया और अभी कितने दिन चलेगा, कुछ कह नहीं सकते. लेकिन एक बात तो साफ हो चुकी है कि गहलोत सरकार के वो सारे दाव जो बहुत मजबूत नजर आ रहे थे, एक के बाद एक कमजोर पड़ते गए.

दरअसल, जिस रोज पायलट खेमा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनौती देकर मानेसर पहुंचा. उसी दिन से मीडिया बयानबाजी के अलावा ऐसा कुछ नहीं हुआ कि पायलट से मिलकर उस पर विस्तृत चर्चा की जाए. असल में मुख्यमंत्री गहलोत के पास सरकार के बहुमत का नंबर गेम पूरा है. इसलिए कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं में एक आम राय बन गई कि पायलट यहां राजस्थान में मध्य प्रदेश की तर्ज पर सरकार नहीं गिरा सकते हैं. यही कारण रहा कि कांग्रेस नेताओं ने सारा ध्यान सरकार के समर्थन कर रहे विधायकों को एकजुट रखने पर ही लगा दिया.

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इसी बीच पार्टी ने विधायक दल की एक बैठक बुलाकर व्हिप जारी कर दिया. उसके बाद एक विधायक दल की बैठक और बुला ली गई. दो बैठकें बुलाने के बाद पार्टी ने स्पीकर के यहां याचिका लगाकर पायलट सहित 18 विधायकों को नोटिस जारी करवा दिए.

अब यहां बड़ा कानूनी पेच फंस गया. नोटिस की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए पायलट खेमा हाईकोर्ट पहुंच गया. नोटिस की टाइमिंग और स्पीकर के क्षेत्राधिकार को लेकर कई तरह के सवाल हाईकोर्ट के सामने आए. इन सभी पर हाईकोर्ट की डिविजन बैंच ने तीन दिन तक चर्चा करके निर्णय को 24 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया. हाईकोर्ट ने कहा कि निर्णय आने तक स्पीकर 19 विधायकों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करें.

यहां एक बार फिर से कांग्रेस के रणनीतिकारो से भारी चूक हो गई. स्पीकर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार से मामले में विस्तृत सुनवाई का निर्णय किया. इधर हाईकोर्ट ने मामले में स्टे सुना दिया. कुल मिलाकर कानूनी पेचीदगियां बढ़ती चली गई. कांग्रेस का संकट हर एक दिन किसी न किसी रूप में बढ़ता चला गया.

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अब जब सोमवार को स्पीकर की याचिका पर सुनवाई होनी थी तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने याचिका को वापस ले लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया. इसका क्या मतलब हुआ, इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस के रणनीतिकार आगे बनने वाली परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रहे.

होना क्या चाहिए था

जो कांग्रेस अब करना चाहती है, वह काम पहले दिन करना चाहिए था. जब मुख्यमंत्री गहलोत के पास बहुमत साबित करने का पूरा संख्या बल था तो राज्यपाल के पास जाकर पहले ही दिन सत्र बुलाने की मांग करनी चाहिए थी. नियमानुसार केबिनेट के निर्णय के बाद राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए बाध्य हैं. लेकिन इसके भी कुछ नियम है. इसमें सत्र बुलाने से पहले 21 दिन के समय का प्रावधान है. गहलोत सरकार को उसी नीति पर काम करना चाहिए था. वैसे भी सारी भागादौड़ी में 18 दिन तो हो ही चुके हैं. संवैधानिक नियमों से राज्यपाल को 21 दिन की अवधि पर केबिनेट के निर्णय के अनुसार सत्र बुलाना पड़ता.

जब राज्यपाल सत्र बुलाते तो बिल लाने के आधार पर कांग्रेस पार्टी व्हिप जारी करती. जो पार्टी ने सबसे पहले सीएम आवास और होटल में हुई बैठक के दौरान किया, जो कि विशेषज्ञों के अनुसार प्रभावी नहीं है. क्योंकि कोई पार्टी व्हिप सदन से जुड़ी किसी चर्चा, बिल या बहुमत के समय ही व्हिप जारी कर सकती है. उसी आधार पर पार्टी व्हिप प्रभावी होता है. इसके आधार पर ही किसी विधायक को अयोग्य ठहराया जा सकता है. यही नहीं, कांग्रेस मुख्य सचेतक महेश जोशी की शिकायत पर स्पीकर की ओर से कुछ ही घंटों में सचिन पायलट समेत 18 विधायकों को नोटिस देकर 3 दिन में जवाब मांगा गया. इससे स्पीकर की भूमिका पर भी सवाल उठ गए.

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उधर, बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने बीएसपी के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले में स्पीकर के यहां 4 महीने पहले एक याचिका लगाई थी. दिलावर का कहना है कि उनकी याचिका पर स्पीकर की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई और ना ही उन्हें अवगत कराया गया. अब यह मामला भी हाईकोर्ट पहुंच गया. हालांकि मदन दिलावर की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्पीकर से इस सम्बन्ध में लिए गए निर्णय की जानकारी मांगी और सुनवाई के बाद यह याचिका खारिज कर दी गई. इसमें हाइकोर्ट ने यह आधार माना कि विधानसभा अध्यक्ष ने 24 जुलाई को ही दिलावर की याचिका को खारिज कर दिया है. अब मदन दिलावर स्पीकर द्वारा याचिका को खारिज करने के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दाखिल करने जा रहे हैं.

वहीं स्वभाव के विपरीत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आक्रमक रवैये के कारण राज्यपाल से भी टकराव उतपन्न हो गया. गहलोत सरकार ने राज्यपाल से सत्र बुलाने की मांग करने के बाद दो दिन का भी इंतजार नहीं किया और मुख्यमंत्री गहलोत विधायकों को लेकर राज्यपाल के निवास स्थान राजभवन पहुंच गए. वहां राजभवन में नारेबाजी हुई जिससे राज्यपाल आहत हुए. वहीं इससे पहले मुख्यमंत्री गहलोत राज्यपाल को जनता द्वारा राजभवन को घेरने तक की चेतावनी देने से भी नहीं चुके.

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इससे मौके के ताक में बैठी बीजेपी को बैठे-बिठाए एक और मौका मिल गया और बीजेपी भी मैदान में आ गई. बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को राज्यपाल पर दबाव बनाने का कोई अधिकार नहीं है. अब आप कितनी ही सफाई दो कि यह राजनीतिक भाषा है लेकिन इससे जनता में मुख्यमंत्री गहलोत के स्वभाव के विपरीत सन्देश गया.

इस तरह कांग्रेस के रणनीतिकार हर दिन एक नई समस्या से निबटने में जूझते जा रहे हैं. बार-बार बदलती जा रही रणनीति के कारण कांग्रेस और गहलोत सरकार सवालों के घेरे में आने के साथ-साथ रणनीतिक तौर पर कमजोर पड़ रही है.

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