सियासी चर्चा: पीएम मोदी ने खुद बोया था ‘बेअदबी’ की प्रथा का बीज, अब काट रहे हैं कांटेदार बबूल!

राजनीति में सामान्य शिष्टाचार की पालना को लेकर सियासी चर्चा, एक के बाद एक पीएम मोदी के साथ हुई 'बेअदबी'! तेलंगाना के सीएम ने नहीं की मोदी की अगवानी, इससे पहले पंजाब में भी नहीं पहुंचे थे सीएम चन्नी, ममता, गहलोत और सोरेन भी दे चुके हैं झटका! कहां लुप्त हो गया राजनीतिक शिष्टाचार? प्रधानमंत्री ने खुद डाला था 'बेअदबी' का बीज! पीएम मोदी ने विपक्षी दिग्गजों को पानी पी-पीकर कोसा! विपक्ष के नेताओं के खिलाफ गढ़े अपमानजनक जुमले! गैर भाजपा शासित राज्यों को ठहराया देशद्रोही!

पीएम मोदी ने खुद बोया था 'बेअदबी' की प्रथा का बीज
पीएम मोदी ने खुद बोया था 'बेअदबी' की प्रथा का बीज

Politalks.News/PMModi. राजनीति में सूचिता की बात अब दूर की कौड़ी होती दिखाई दे रही है. एक के बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसके बाद देश की राजनीति में सामान्य शिष्टाचार (Political Etiquette) की पालना नहीं हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पांच फरवरी को संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा का अनावरण करने हैदराबाद पहुंचे तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव (CM ChandraShekhar Rav) उनकी अगवानी करने के लिए हवाईअड्डे पर मौजूद नहीं थे और बाद में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुए. सबसे बड़ी बात यह है कि हैदराबाद या आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस समय कोई चुनाव नहीं हो रहा है, जो यह माना जाए कि राजनीतिक कारणों से मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री का बहिष्कार किया.

आपको बता दें, प्रधानमंत्री मोदी एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने हैदराबाद पहुंचे थे और उनके पद का मान रखने के लिए भी मुख्यमंत्री को उनकी अगवानी करनी चाहिए थी. लेकिन राव ने इस सामान्य शिष्टाचार का पालन नहीं किया. अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि आखिर इस अमर्यादित राजनीति का जिम्मेदार कौन है? दबी जुबान में चर्चा यह है कि आज अगर प्रधानमंत्री पद की गरिमा दांव पर लगी है और राज्यों के साथ टकराव बढ़ा है तो उसके लिए जिम्मेदार पिछले करीब आठ साल की राजनीति है, जिसमें भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्व ने राजनीतिक प्रतिपक्ष को जानी दुश्मन बना दिया.

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पंजाब में अगवानी करने नहीं पहुंचे थे सीएम चन्नी
यहां आपको याद दिला दें कि यह पहला मौका नहीं था, जब किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ इस तरह का बर्ताव किया है. इस घटना से ठीक एक महीने पहले 5 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी पंजाब के बठिंडा पहुंचे थे और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी उनकी अगवानी करने नहीं गए थे. प्रधानमंत्री को हुसैनीवाला में शहीद स्मारक पर जाना था और कई योजनाओं का शिलान्यास करना था. हालांकि किसानों के विरोध के चलते प्रधानमंत्री मोदी की वह यात्रा पूरी नहीं हो सकी और सुरक्षा चूक का अलग मामला आ गया, जिसके चलते बीच मे से ही पीएम मोदी को वापस लौटना पड़ा. इस मामले को लेकर काफी बयानबाजी भी हुई थी.
ममता, गहलोत और सोरेन भी दे चुके हैं झटका!
वहीं पिछले साल पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफान का जायजा लेने प्रधानमंत्री मोदी कलकत्ता पहुंचे तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनकी मीटिंग में शामिल नहीं हुईं थीं. प्रधानमंत्री इंतजार करते रहे, ममता आईं, उनको नमस्ते की और चली गईं. इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टेलीफोन किया तो उसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि, ‘प्रधानमंत्री सिर्फ मन की बात करते हैं, काम की बात नहीं करते’. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पीएम मोदी पर उनके पत्रों का जवाब नहीं देने का आरोप लगा चुके हैं.

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कहां लुप्त हो गया राजनीतिक शिष्टाचार?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि पहले ऐसा नहीं होता था, आखिर अचानक क्या हो गया जो सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार को लेकर सवाल उठ रहे हैं?आखिर पिछले आठ साल में ऐसा क्या हुआ है, जो राज्यों के मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री के प्रति ऐसे भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं? सियासी पंडितों का कहना है कि राजनीति में वैचारिक टकराव पहले भी रहा है और पहले भी केंद्र और राज्यों में अलग अलग पार्टियों की सरकारें रही हैं, फिर ऐसा पहले क्यों नहीं हुआ? क्या इसे भाजपा विरोधी पार्टियों की राजनीतिक असहिष्णुता कह कर खारिज किया जा सकता है या इसके कुछ गंभीर कारण हैं, जिनकी तत्काल पड़ताल और निराकरण जरूरी है? आखिर ऐसा क्या हुआ है कि पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं के राज्यों के मुख्यमंत्री इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री ने खुद डाला था ‘बेअदबी’ का बीज!
सबसे बड़ी बात यह है कि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ‘बेअदबी‘ की लगभग सारी घटनाएं पिछले एक साल की हैं. उससे पहले राजनीतिक विरोध के बावजूद सामान्य शिष्टाचार था और उसका सार्वजनिक प्रदर्शन भी होता था, लेकिन इसके बीज पड़ने लगे थे, जिसकी अंत परिणति ऐसी ही होनी थी. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही इसकी शुरुआत हो गई थी. शुरू में राजनीतिक दलों के लिए यह अनोखी बात थी कि प्रधानमंत्री उनके प्रति अपमानजनक बातें कहें. इसका सबसे बड़ा कारण ये भी था कि मोदी की जीत थी ही इतनी प्रचंड तो विपक्ष के नेताओं ने इसे बरदाश्त किया. लेकिन हालात नहीं बदले और लगा कि एक खास राजनीतिक मकसद से प्रधानमंत्री मोदी योजनाबद्ध तरीके यह सब कर रहे हैं तब विपक्षी नेताओं के सब्र का बांध टूटा और उसमें सारे राजनीतिक शिष्टाचार बह गए.
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पीएम ने विपक्षी दिग्गजों को पानी पी-पीकर कोसा!
सियासी जानकारों का कहना है कि, देश का शायद ही कोई बड़ा विपक्षी नेता होगा, जिसके लिए सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी ने अपमानजनक बातें नहीं कही होंगी. मई 2014 में मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनावों में विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर ऐसे हमले किए, जैसे पहले कभी नहीं हुए थे. पीएम मोदी ने महाराष्ट्र में शरद पवार और अजित पवार की चाचा-भतीजे की जोड़ी को भ्रष्ट बताते हुए कहा कि, ‘इन दोनों ने राज्य को लूटा है. उसी समय जम्मू कश्मीर में पीएम मोदी ने मुफ्ती मोहम्मद सईद और मेहबूबा मुफ्ती को बाप-बेटी की जोड़ी और फारूक अब्दुल्ला व उमर अबदुल्ला को बाप-बेटे की जोड़ी बताते हुए कहा कि, ‘पहले एक जोड़ी राज्य को लूटती है और फिर दूसरी जोड़ी राज्य को लूटने आ जाती है. यह अलग बात है कि उसी चुनाव के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में पवार के समर्थन से सरकार बनाई और कश्मीर में अपना समर्थन देकर बाप-बेटी की ‘लुटेरी जोड़ी‘ को बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनवाया.
पीएम ने विपक्ष के नेताओं के खिलाफ गढ़े अपमानजनक जुमले!
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीतिक शिष्टाचार की सारी हदें पार की, जब मोदी ने दिल्ली में प्रचार करते हुए अरविंद केजरीवाल को नक्सली कहा और बिहार में प्रचार करते हुए नीतीश कुमार के डीएनए में खराबी बताई. संसद में रेणुका चौधरी के ऊपर दिया गया शूर्पणखा वाला बयान हो या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए ‘दीदी ओ दीदी’ वाला बयान हो. प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के नेताओं पर निजी हमले किए और अपमानजनक बयान दिया. उन्हें भ्रष्ट, परिवारवादी, माफियावादी, देशद्रोही, आतंकियों का समर्थक जैसी बातें कहीं.

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गैर भाजपा शासित राज्यों को ठहराया देशद्रोही!
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ चुनावी सभाओं में इस तरह की बातें कहीं, बल्कि जब भी राज्यों में किसी राजनीति कार्यक्रम में शामिल होने गए तो भी ऐसी ही बातें कहीं. नेताओं पर निजी हमलों के अलावा सार्वजनिक विमर्श के विषयों पर भी पीएम मोदी की भाषा संयमित नहीं रही और उनकी सरकार की नीतियां भी एकआयामी रहीं, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच दूरी बढ़ी. एक तरफ प्रधानमंत्री नेताओं के ऊपर निजी हमले कर रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा के अन्य नेताओं और आईटी सेल की ओर से नेताओं का चरित्रहरण किया जा रहा है. केंद्रीय एजेंसियां विपक्षी नेताओं और उनके करीबियों के यहां छापे मार रही हैं. गड़े मुर्दे उखाड़ कर कार्रवाई की जा रही है और जैसे ही आरोपी नेता भाजपा में शामिल हो जाता है वैसे ही सारे मामले ठंडे पड़ जाते हैं.

वहीं केंद्र सरकार की नीतियां भी बिना राज्यों से सलाह किए बनाई जा रही हैं और उन्हें नहीं मानने या उनका विरोध करने पर राज्यों की चुनी हुई सरकार को देशद्रोही ठहराया जा रहा है. बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने के मामले में राज्यों के विरोध पर केंद्र और भाजपा की प्रतिक्रिया इसकी मिसाल है. केंद्र सरकार की मनमानियों का नतीजा है कि आज केंद्र और राज्य के संबंध किसी भी समय के मुकाबले सबसे खराब स्थिति में हैं.
ये धारणा बनाई गई थी विपक्ष की सारी सरकारें हैं जनविरोधी!
प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा विरोधी पार्टियों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर चिन्हित किया है और प्रचारित किया. उसे समूल खत्म करने का खुला ऐलान किया है और हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार किया है, जैसे विपक्ष की सारी सरकारें जनविरोधी, देश विरोधी और विकास विरोधी हैं. प्रधानमंत्री की इस राजनीति ने विपक्षी पार्टियों को सोचने के लिए मजबूर किया, आज अगर प्रधानमंत्री पद की गरिमा दांव पर लगी है और राज्यों के साथ टकराव बढ़ा है तो उसके लिए जिम्मेदार पिछले करीब आठ साल की राजनीति है, जिसमें भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्व ने राजनीतिक प्रतिपक्ष को जानी दुश्मन बना दिया.

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