सियासी चर्चा: क्या किसानों का हित और देश का हित है अलग-अलग, पीएम मोदी से हुई बड़ी चूक या….

क्या देश के किसान और देश के हित हैं अलग-अलग? उत्तरप्रदेश में मतदान के पहले चरण की वोटिंग से कुछ घंटे पहले पीएम मोदी का ANI को दिया इंटरव्यू चर्चाओं में, पीएम मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी और किसान आंदोलन को लेकर कही 'गंभीर' बात, बोले- कृषि कानून बनाए गए थे किसानों के हित में और देशहित में उन्हें लिया गया वापस' सियासी सवाल क्या किसानों का हित और देश हित हैं अलग? प्रधानमंत्री इस बात को दोहरा रहे हैं बार-बार, क्या है कोई गंभीर बात?

सियासी चर्चा: क्या किसानों का हित और देश का हित है अलग-अलग
सियासी चर्चा: क्या किसानों का हित और देश का हित है अलग-अलग

Politalks.News/PMMOodi. उत्तर प्रदेश में पहले चरण (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022,) के कुछ घंटे पहले न्यूज़ एजेंसी ANI के द्वारा सभी न्यूज़ चैनल्स को दिया गया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) का इंटरव्यू सियासी चर्चाओं (Political discussion) में बना हुआ है. पीएम मोदी ने इस ‘महासाक्षात्कार‘ (Prime minister big interview) में उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों में भाजपा की जीत का दावा तो किया ही साथ ही किसान आंदोलन, परिवारवाद, समाजवाद और कोरोना के दौरान लॉकडाउन के बाद मजदूरों के पलायन समेत गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ भेदभाव जैसे कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी. लेकिन पीएम मोदी ने इस इंटरव्यू में किसान आंदोलन के लिए जो बात कही उसको लेकर सियासी गलियारों में जोरदार चर्चा है. पीएम मोदी ने एक कमाल की बात कही कि, ‘तीनों कृषि कानून किसानों के हित में बनाया गए थे और बाद में उन्हें देशहित में वापस लिया गया’. अब इस बात को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या किसानों का हित और देश का हित अलग-अलग है?  (Is the interest of farmers and the interest of the country different) प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी से इस तरह के कई सवाल खड़े होते हैं.

सबसे पहले आपको बताते हैं की पीएम मोदी ने इस इंटरव्यू में क्या कुछ कहा था. पीएम मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी और किसान आंदोलन के सवाल पर कहा कि, ‘मैं हमेशा छोटे किसानों का भला चाहता हूं और मैंने उसके लिए काम भी किया है. किसानों की भलाई के लिए काम उठाए हैं. किसानों की भलाई के लिए कानून लाए थे, ये बात मैंने उन्हें वापस लेते समय भी कही थी. मैंने हिन्दुस्तान किसानों का दिल जीता है. पहले भी उन्होंने मेरा साथ दिया है. हमने देशहित में कानून वापस लिए हैं. इन पर यदि आगे बात करने की जरूरत होगी तो हम बात करेंगे. जनता के साथ लगातार बातचीत होती ही रहनी चाहिए. हर कोई मुझे सुने, मेरे साथ संवाद करे. जनता के साथ संवाद करना सरकार का कर्तव्य होता है’.

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अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या किसानों का हित और देश का हित अलग-अलग है? सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब यह कहा तो सवाल कर रही ANI के पत्रकार ने उस पर कोई पूरक सवाल भी नहीं पूछा. जबकि यह पूछा जाना चाहिए था कि क्या किसानों का आंदोलन देश के लिए खतरा बन रहा था? किसानों के एक साल तक चले शांतिपूर्ण आंदोलन से देश और लोकतंत्र मजबूत हो रहा था या उससे देश के लिए खतरा पैदा हो रहा था?

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यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को लेकर सियासी गलियारों में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या किसान अपना हित नहीं समझते हैं? जो उन्होंने सरकार की बात नहीं समझी? अगर बिल में किसानों का हित था तो किसान इतना कष्ट उठा कर एक साल तक क्यों धरने पर बैठे रहे और जान गंवाते रहे? अगर बिल किसानों के हित में था तो देश के सारे किसान उसके पक्ष में खड़े क्यों नहीं हुए? पूरे देश के किसानों ने क्यों प्रदर्शन कर रहे किसानों का विरोध नहीं किया? ऐसा लग रहा है कि चुनावी चिंता में किसानों के आगे झुकने के फैसले को देशहित का जामा पहना कर सरकार को शर्मिंदगी से निकालने का प्रयास किया जा रहा है. आपको बता दें, पीएम मोदी पहले भी कृषि कानूनों को देशहित में वापस लेने की बात कह चुके हैं.

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