सियासी चर्चा: प्रतीकों की राजनीति में मोदी के सामने राहुल हैं काफी पीछे, चूक जाते हैं हर बार बड़ा मौका

प्रतीकों की राजनीति को लेकर सियासी चर्चा, पीएम मोदी को माना जाता है प्रतीकों की राजनीति का 'बेताज बादशाह', जो भी काम करते हैं, वेशभूषा से देते हैं खास मैसेज, गणतंत्र दिवस और रामानुजाचार्य की मूर्ति अनावरण तो हैं बानगी, दूसरी तरफ राहुल कॉपी तो करते हैं लेकिन मैसेज देने में रहते हैं नाकाम

प्रतीकों की राजनीति!
प्रतीकों की राजनीति!

Politalks.News/Modi-Rahul. देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election in 5 States) का घमासान अपने चरम पर है और प्रथम चरण का मतदान गुरुवार को होना है. इस बीच प्रतीकों की राजनीति को लेकर देशके सियासी गलियारों में एक नई तरह की चर्चाओं का दौर शुरू हुआ है. आपको याद दिला दें, हर खास मौके पर अपनी विशेष वेशभूषा से तत्कालीन परिस्थितियों को साधने में माहिर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) बीती गणतंत्र दिवस के मौके पर भी एक अलग ही अंदाज में नजर आए थे. प्रतीकों की राजनीति (political symbol) के लिए मशहूर पीएम नरेंद्र मोदी इस दौरान उत्तराखंड की टोपी और मणिपुर का गमछा पहने दिखाई दिए थे. पीएम मोदी की टोपी पर उत्तराखंड (Uttrakhand Assembly Election 2022) के राज्यपुष्प ब्रह्मकमल भी अंकित था. बता दें, इन दोनों ही राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.

इसके आलावा हाल ही में हैदराबाद में आयोजित हुए स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी के अनावरण समारोह में भी पीएम मोदी का भेष एक खास मैसेज देने वाला था. पीएम नरेंद्र मोदी की वेशभूषा को इन दोनों राज्यों के लिए संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, हालांकि पीएम मोदी अक्सर ही देश के अलग-अलग हिस्सों की वेशभूषा में नजर आते रहे हैं. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी प्रतीकों की राजनीति नहीं करती थी. लेकिन शायद उस तरह का मैसेज नहीं दे पाती है. मसलन, हाल ही में कांग्रेस के पूर्व और अघोषित वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul gandhi) अभी हरिद्वार में गंगा आरती (Ganga Aarti) में शामिल हुए थे लेकिन लोगों का ध्यान नहीं खींच पाए. हालांकि प्रतीकों की राजनीति में राहुल से बेहतर कांग्रेस में प्रियंका गांधी को माना जाता है.

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कांग्रेस नहीं देती प्रतीकों की राजनीति पर ध्यान!
सियासी गलियारों में चर्चा है कि, कांग्रेस के प्रतीक अलग थे, जैसे- गरीबी हटाओ. वहीं धार्मिक प्रतीकों की राजनीति पर कांग्रेस बहुत ध्यान नहीं देती थी. शुरुआती दौर में सहज भाव से इंदिरा गांधी मंदिर जाती थीं और रूद्राक्ष की माला पहनती थीं. सोनिया और राहुल गांधी के समय में यह चीज बंद हो गई. अब भाजपा की देखा-देखी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धार्मिक प्रतीकों की राजनीति को मैच करने की मजबूरी में कांग्रेस नेता भी ऐसी राजनीति कर रहे हैं. पर पार्टी को इसका अनुभव नहीं है इसलिए पिछड़ जा रहे हैं.

पीएम मोदी प्रतीकों से मैसेज देने में ‘माहिर खिलाड़ी’!

हाल ही में बीती पांच फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों के धार्मिक क्रिया-कलापों का फर्क साफ नजर आया. प्रधानमंत्री मोदी हैदराबाद गए थे, जहां उन्होंने 11वीं सदी के संत रामानाजुचार्य की मूर्ति का अनावरण किया. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने पारंपरिक वेश-भूषा धारण की. पीएम मोदी ने स्थानीय धार्मिक परंपरा के मुताबिक ऊपर से नीचे तक भगवा वस्त्र पहने थे और माथे पर त्रिपुंड तिलक भरा था. पीएम एक धार्मिक कार्य में थे तो उन्होंने हर तरह से इसका संदेश दिया. इससे पहले काशी, अयोध्या सहित अन्य धार्मिक जगहों पर भी पीएम मोदी इस तरह के मैसेज देते रहे हैं. धार्मिक कार्यों के साथ-साथ मोदी पहनावे से भी हिंदुओं को मैसेज देते हैं. हालांकि सियासी गलियारों में ये तंज भी कसा जाता है प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार पहनावे से लोगों को पहचानने का मंत्र भी दिया था.

राहुल करते सब हैं लेकिन मैसेज देने में रहते हैं नाकाम!

दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने पांच फरवरी को हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा आरती की. उससे पहले राहुल ने गंगा पूजन भी किया. लेकिन राहुल आरती के दौरान अनुकूल पहनावे में नहीं थे. दूसरे, उनके आसपास इतनी भीड़ थी कि कोई एक्सक्लूसिव फुटेज नहीं बन सकी. इसके मुकाबले याद करें काशी में मोदी के गंगा में डुबकी लगाने की. सियासी चर्चा है कि राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर गए, काशी विश्वनाथ गए, वैष्णो देवी की यात्रा की, हर की पौड़ी पर गंगा आरती की लेकिन क्या कहीं से वे वैसी फुटेज बनवा सके, जैसी नरेंद्र मोदी बनवा देते हैं?

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सियासी जानकार राहुल से बेहतर मानते हैं प्रियंका को!

सियासी जानकारों का मानना है कि प्रतीकों की राजनीति में राहुल के मुकाबले प्रियंका गांधी इस मामले में बेहतर प्रदर्शन करती हैं. प्रियंका जब मंदिरों में जाती हैं तो पूजा के तरीके, पहनावे और माथे पर चंदन-तिलक से वे हिंदुओं में मैसेज देने में कामयाब होती हैं. सियासी पंडितों का कहना है कि, कोई भी पार्टी या नेता, जब प्रतीकात्मक राजनीति करता है तो उस प्रतीक का संदेश बहुत स्पष्ट होना चाहिए. आज ढके-छिपे तरीके से संदेश देने का समय नहीं है. ऐसे में सियासत के जानकारों का मानना है कि राहुल या तो इस राजनीति में नहीं पड़ें और पड़ें तो फिर सारे काम उसी तरह से करें, जैसे नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.

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