सियासी चर्चा: कांग्रेस को मुकाबले में लाकर प्रधानमंत्री मोदी ने सपा और आप से हटाया लोगों का ध्यान!

राष्ट्रपति के अभिभाषण की बहस के जवाब में पीएम मोदी का घातक भाषण, अभिभाषण के बारे में कम और कांग्रेस पर हमला था ज्यादा, सियासी गलियारों में चर्चा अचानक इस हमले का क्या मतलब? पहला मकसद- अपनी सरकार की नाकामियों से लोगों का ध्यान हटवाना, दूसरा- भाजपा के लिए कांग्रेस को हराना रहेगा आसान, क्षेत्रीय दल सपा, आप और TMC को मात देने में नाकाम रही है भाजपा, पंजाब और यूपी में मतदाताओं के बीच कंफ्यूजन पैदा करना कि अभी भी मुकाबला है कांग्रेस और भाजपा के बीच

मोदी के 'घातक हमले' के सियासी मायने
मोदी के 'घातक हमले' के सियासी मायने

Politalks.News/PMModi. बीते दिनों बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण (president abhibhashan) बहस पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने लगातार दो दिन संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस (Attack on congress ) पर बेहद तीखा हमला बोला. पीएम मोदी के इस घातक हमले को लेकर देश के सियासी गलियारों में चर्चा अभी तक जारी है. क्या पीएम मोदी का ये हमला अनायास था? या सुनियोजित था और किसी बड़ी राजनीति का हिस्सा (part of some big politics) था? आज तक देखा गया है कि संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सरकार की ओर से पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर संसद के अंदर हुई चर्चा का जवाब दिया जाता रहा है. लेकिन इस बार पीएम मोदी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का ही जवाब इस तरह दिया और कांग्रेस पर हमला करके अभिभाषण में कही गई सारी बातों से सबका ध्यान हटा दिया. दूसरी तरफ कहीं पर निगाहें वाली कहावत भी पीएम मोदी के इस हमले पर फिट बैठती है. पीएम मोदी ने कांग्रेस को फिर से मुकाबले में लाकर सपा, आप और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से लोगों का ध्यान हटाया है. भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि भाजपा के लिए क्षेत्रीय दलों को हराने के बनीसपत कांग्रेस को हराना आसान होता है. आम आदमी पार्टी और TMC इसके बड़े उदाहरण हैं.

सियासी चर्चा- अपनी सरकार की कमियों को छिपाना ‘मकसद’!
सियासी गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस पर हमला प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार की कमियों को छिपाने के लिए किया. देश में भीषण बेरोजगारी, महंगाई और गिरती अर्थव्यवस्था पर सवाल नहीं उठें इसके लिए पीएम मोदी ने लोगों का सारा ध्यान कांग्रेस की ओर मोड़ दिया. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने रेलवे की भर्ती परीक्षा के नतीजों की गड़बड़ी को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों पर लाठी चलाने और आंसू गैस के गोले छोड़ने की घटना का हवाला देते हुए कहा कि, ‘छात्रों और नौजवानों की पीड़ा को राष्ट्रपति के अभिभाषण में जगह क्यों नहीं मिली? राष्ट्रपति पूरे देश के होते हैं और उनका अभिभाषण बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है. अगर उसमें हमारे समय की तकलीफों को जगह नहीं मिलेगी तो वह कागज का एक पुलिंदा भर रह जाएगा’.

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कांग्रेस को फिर से चर्चा में लाना ‘मकसद’!

सियासी चर्चा यह है कि, ‘प्रधानमंत्री को भी यह पता है कि देश और उसके नागरिक इस समय किस तरह की तकलीफों से गुजर रहे हैं. पीएम को यह भी पता है कि उन तकलीकों का जिक्र किसी सरकारी दस्तावेज नहीं किया जा रहा है. उन तकलीफों और नागरिकों की पीड़ा पर चर्चा न हो इसलिए प्रधानमंत्री ने अभिभाषण की बातों पर बोलने की बजाय दूसरा रास्ता पकड़ा. पीएम ने कांग्रेस के बारे में ऐसी ऐसी बातें कहीं कि राजनीतिक भाषणों के प्रत्यक्ष व परोक्ष मतलब को बखूबी समझने वाले भी पलटवार करने लगे और इस तरह से एक सुनियोजित योजना कामयाब हो गई.

प्रादेशिक पार्टियों के मुकाबले
कांग्रेस से भाजपा का मुकाबला आसान!

कांग्रेस पर प्रधानमंत्री के तीखे हमले का एक मकसद सरकार की विफलताओं से ध्यान हटाना और उन पर चर्चा नहीं होने देना है तो दूसरा सबसे बड़ा मकसद कांग्रेस को वापस राजनीतिक लड़ाई में ले आना है. देश और राज्यों की राजनीति में कांग्रेस का कमजोर होकर खत्म होना भाजपा के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि कांग्रेस को हराना भाजपा के लिए हमेशा ज्यादा आसान रहा है. अगर देश में कांग्रेस खत्म होती है और उसकी जगह कोई दूसरी प्रादेशिक पार्टी मजबूत होती है ऐसे में भाजपा उससे लड़ने में सफल नहीं हो पा रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी और पश्चिम बंगाल में TMC इसके बड़े उदाहरण हैं.

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दिल्ली में आप की चुनौती से पार नहीं पा पाए हैं मोदी और भाजपा

आपको बता दें कि दिल्ली में भाजपा ने 2013 के चुनाव में कांग्रेस को हरा दिया था. उसने 32 सीटें जीती थीं और आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी, जिसको 28 सीटें मिली थीं, लेकिन दिल्ली में जैसे ही कांग्रेस खत्म हुई और आम आदमी पार्टी ने उसकी जगह ले ली, भाजपा के लिए उसे हराना नामुमकिन हो गया. उसके बाद के दो चुनावों में भाजपा की सीटें दहाई में भी नहीं पहुंचीं और आज भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए आम आदमी पार्टी ज्यादा बड़ी चुनौती बन गई है.

TMC को पश्चिम बंगाल में और केजरीवाल को रोकना होगा मुश्किल!

ऐसा ही पश्चिम बंगाल में हुआ है. सूबे में कांग्रेस और लेफ्ट के खत्म होने से ममता बनर्जी के रूप में एक ऐसा प्रतिद्वंद्वी उभर गया है, जिससे मुकाबला भाजपा के लिए मुश्किल हो गया है. इसी तरह का संकट भाजपा पंजाब में देख रही है. अगर पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जीत जाती है तो वह देश की राजनीति को बदलने वाला घटनाक्रम होगा. उसके बाद केजरीवाल और उनके ब्रांड की राजनीति को रोकना मुश्किल हो जाएगा. वे दिल्ली मॉडल दिखा कर अगर पंजाब जीतते हैं तो फिर पंजाब मॉडल दिखा कर देश की राजनीति करना शुरू करेंगे.

कांग्रेस को चुनौती में लाना और सपा का जिक्र नहीं करना बड़ी रणनीति!

पीएम मोदी और भाजपा के रणनीतिकार यह अच्छे से जानते हैं. कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कुछ नहीं कर पाती है और समाजवादी पार्टी मजबूत ताकत के रूप में उभरती है तो उसे हराना या आगे के चुनावों में रोकना भाजपा के लिए मुश्किल होगा. असल में प्रधानमंत्री मोदी को चिंता 2024 के चुनाव की है. अगर इस बार उत्तर प्रदेश में सपा जीत जाती है तो दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी उससे कड़ी टक्कर होगी. पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी और दिल्ली में केजरीवाल की चुनौती पहले ही बांहे खोले खड़ी है.

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कांग्रेस पर पीएम मोदी का हमला था सुनियोजित!
ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सुनियोजित तरीके से संसद में लगातार दो दिन कांग्रेस पर हमला किया और कांग्रेस को मुकाबले में ला दिया. इसका सीधा मैसेज है कि भाजपा की लड़ाई कांग्रेस से है. इसका तात्कालिक फायदा यह हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट में कंफ्यूजन हो और उनका थोड़ा रूझान कांग्रेस की तरफ भी दिखे. इससे समाजवादी पार्टी को नुकसान होगा. वहीं दूसरा फायदा पंजाब में होगा. प्रधानमंत्री के कांग्रेस से सीधी लड़ाई दिखाने से सिख, जाट सिख किसान, जो भाजपा के पूरी तरह से खिलाफ हैं उनमें कांग्रेस के लिए सहानुभूति बनेगी. ऐसा लग रहा है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की पहली प्राथमिकता समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को रोकने की है. इसलिए कांग्रेस को मुकाबले में लाने की राजनीति हो रही है, लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस की साख भी बिगाड़नी है. उसे आम हिंदू और मध्यवर्गीय मतदाताओं के बीच देशविरोधी भी ठहराना है. यह काम भी प्रधानमंत्री के भाषण से बखूबी हुआ है.

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