गजब है राजनीतिक रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बने पीके यानि प्रशांत किशोर की दुनिया

यहां से फ्री तो वहां, वहां से फ्री तो यहां, यहां से भी फ्री तो अब कहां, नीतिश कुमार को धन्यवाद कहकर जता दिया कि वो अपने सफर में किसी की जरूरत महसूस नहीं करते, अब जदयू ने खोले अपने दरवाजे

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. पीके सबको खूब पसंद आई, इतनी कि लोगों ने खुलकर अपनी कमाई पीके पर लुटाई. पीके ने कमाई के कई रिकार्ड कायम कर दिए. पीके की स्क्रिप्ट ही इतनी मजबूत रही कि वो सबके साथ दिखी लेकिन किसी के साथ नहीं थी. अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण उसने कई रिकार्ड कायम किए. जी हां, बात चल रही है पीके फिल्म की, जिसका एक डाॅयलाॅग काफी हिट हुआ कि, ‘कोई फिरकी ले रहा है.’ बात तो सही है कोई न कोई तो है, जो जनता की फिरकी ले रहा है. लेकिन अब बात आमिर खान की फिल्म पीके की नहीं बल्कि राजनीतिक रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बने प्रशांत किशोर यानि की भारतीय राजनीति के पीके की हो रही है.

प्रशांत किशोर का नाम आज देश के सभी दिग्गज नेताओं की जुबान पर है. प्रॉफेशनल प्रमोटर से राजनीतिक सितारे बने पीके असल में किसके साथ हैं, किसी को नहीं पता चलता. वो हर चुनाव में किसी नए चेहरे के साथ होते हैं. पीके चुनाव जीतने की रणनीति को टाॅप गीयर में डालते हैं, चुनाव जिताते हैं और वहां से विदा होकर कहीं और किसी ओर चुनाव में किसी और चेहरे के साथ नजर आते हैं. एक मायने में पीके विशुद्ध रूप से व्यावसायिक यानि प्रॉफेशनल हैं. वो किसी भी विचार, विचारधारा या राजनीतिक दल के साथ नहीं हैं. इसलिए प्रशांत हर बार नए अंदाज में किसी नए जगह पर किसी नए साथी के साथ कुछ नया बुन रहे होते हैं.

पिछले कई चुनावों में कई राजनीतिक दलों के साथ खडे होकर माहिर राजनीतिज्ञों को चाणक्य अंदाज में सत्ता तक पहुंचने के गुर सिखाने वाले प्रशांत किशोर को किसी राजनीतिक जमीन की जरूरत महसूस नहीं होती. शायद इसलिए ही जब जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को पार्टी से निकाला गया तो जवाब में उन्होंने नीतिश कुमार को धन्यवाद कहकर जता दिया कि वो अपने सफर में किसी की जरूरत महसूस नहीं करते हैं. वो ऐसे कथानक हैं, जो खुद की और दूसरों की स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं. यानि एक रणनीतिकार के रूप में वो उस मुकाम पर खडे हैं, जहां उन्हें किसी की नहीं बल्कि दूसरों को उनकी खासी जरूरत है.

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प्रशांत किशोर कभी बीजेपी, कभी कांग्रेस, कभी जदयू, कभी दक्षिण की पार्टियां के साथ नजर आते रहे हैं तो अब वो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ खडे हैं. किशोर ने उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, आंध्र प्रदेश और पंजाब सहित कई राज्यों के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारतीय राजनीति में प्रवेश करने से पहले प्रशांत ने आठ वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया. 2011 में प्रशांत किशोर नौकरी छोड़ वतन लौट आए.

एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर ने 2011 में गुजरात में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार सरकार बनवाने में मुख्य भूमिका निभाई. प्रशांत स्वतंत्र रूप से काम करते हुए भाजपा या गुजरात सरकार में किसी भी कार्यालय को पकड़े बिना भाजपा के चुनाव-पूर्व अभियान में प्रमुख रणनीतिकारों में से एक बन गए. 2014 के आम चुनाव से पहले उन्होंने चुनाव की तैयारी के लिए एक मीडिया और प्रचार कंपनी का निर्माण किया. इस दौरान प्रशांत किशोर ने अभिनव विज्ञापन अभियान बनाए. उन्होंने नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए चाय पे चर्चा, 3 डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन और सोशल मीडिया कार्यक्रम रखकर भाजपा के विचार को तेजी से जनता तक पहुंचाया.
2014 के लोकसभा चुनाव ने प्रशांत किशोर को देश के सामने असली पहचान दी. देश का हर दल उनके बीजेपी के लिए चुनाव में किए गए काम से प्रभावित हुआ. लोगों से जुड़ाव के लिए शुरु किया गया चुनावी कैंपेन ‘चाय पर चर्चा’ प्रशांत किशोर का ऐसा आइडिया था जिसने मोदी की छवि को जनता के मध्य एक आम तबके के इंसान की बनाई. 2014 के चुनाव में सोशल मिडिया का इस्तेमाल भी प्रशांत की ही देन थी.

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हालांकि चुनाव के बाद अमित शाह से विवाद के बाद प्रशांत किशोर बीजेपी के चुनावी अभियान से अलग हो गए. इसके बाद पीके 2015 में नीतीश कुमार के साथ जुड़े और बिहार चुनाव में जेडीयू-कांग्रेस-राजद के चुनावी अभियान का कार्य संभाला. ऐसा माना जाता है कि एक दूसरे के धुर विरोधी जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन बनवाने में भी पीके की अहम भूमिका रही.

नीतीश कुमार का जनसंपर्क अभियान ‘हर-घर दस्तक’ कार्यक्रम प्रशांत किशोर की तरफ से लॉन्च किया गया था ताकि चुनाव प्रचार में नीतीश आखिरी व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचा सकें. इसी चुनाव में उनका दिया गया नारा ‘बिहार में बहार है नीतीश कुमार है’ पूरे बिहार में हिट हुआ. इस नारे के पीछे भी प्रशांत किशोर का ही दिमाग था. नतीजा यह हुआ कि यहां बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही प्रशांत किशोर का सक्रिय राजनीति में भी पदार्पण हो गया और नीतीश ने पीके को जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया.

बिहार चुनाव से फ्री होने के बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के लिए पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियान से जुड़े. कैप्टन अमरिंदर सिंह के ‘कॉफी विद कैप्टन’ और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की किसान यात्रा और खाट सभा का पूरा खाका प्रशांत किशोर ने तैयार किया. हालांकि कांग्रेस के कुछ बड़े नेता राहुल के साथ बढ़ रही उनकी नजदीकियों तो पचा नहीं पाए और खुलेआम उनकी मुखालफत करने लगे.

यूपी में प्रशांत का मैनेजमेंट पूरी तरह से धाराशाही हो गया और कांग्रेस को यूपी में सिर्फ 7 सीटें मिली जो इतिहास में उनका सबसे शर्मनाक प्रदर्शन रहा. हालांकि पंजाब में पार्टी ने शानदार जीत हासिल की लेकिन यूपी में मिली बड़ी हार के आगे पंजाब की जीत छिप गई. आशा के अनुरुप नतीजे नहीं मिलने के कारण प्रशांत ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. हालांकि टीवी चैनलों सहित पत्रपत्रिकाओं में प्रशांत किशोर किसी रणनीतिक स्टार के रूप में सुर्खियों में आ गए.
पंजाब में जीत के बाद कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला और शंकरसिंह वाघेला सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने खुलकर प्रशांत किशोर की प्रशंसा कर जीत का श्रेय दिया.

पंजाब चुनाव के तुरंत बाद प्रशांत किशोर 2017 में आंध्र प्रदेश में नजर आए. इस बार पीके वाईएस जगनमोहन रेड्डी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किए गए. प्रशांत ने यहां समराला संवरवरम, अन्ना पिलुपु और प्रजा संकल्प यात्रा जैसे कई चुनावी अभियानों की रूपरेखा तैयार करवाई और वाईएसआरसीपी की छवि को बदलने में महत्वपूर्ण भमिका अदा की. चौकानें वाले नतीजों के साथ इस चुनाव में वाईएसआरसीपी ने 175 सीटों में से 151 सीटें हासिंल कर सरकार बनाई, इस दौरान पीके ने रेड्डी को आंध्रप्रदेश के लोकसभा चुनाव में 25 में से 23 सीटों पर जीत दिलवाई.

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इस बार प्रशांत किशोर दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के साथ खडे हैं, और पूरी-पूरी संभावना जताई जा रही है कि यहां भी केजरीवाल के विकास कार्ड के साथ पीके का जादू चलना तय है. इसी बीच सीएए और एनआरसी को लेकर लगातार जदयू की सहयोगी बीजेपी की केन्द्र सरकार के खिलाफ जेडीयू की गाइड लाइन से हटकर बयानबाजी करने और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से विवाद के चलते जनता दल यूनाइटेड ने प्रशांत किशोर को बाहर का रास्ता दिखा दिया. साल 2018 में जदयू के उपाध्यक्ष का पद संभालने के साथ ही प्रशांत किशोर यानी पीके ने सियासी सफर भी शुरू किया था. तब नीतीश ने उन्हें बिहार का भविष्य बताया था लेकिन आज वही नीतिश पीके का नाम सुनते ही गुस्से में आ जाते हैं.

वहीं ताजा खबर के अनुसार बिहार की प्रमुख और लालू प्रसाद यादव की पार्टी जदयू ने उन्हें पार्टी में आने न्यौता दिया है. राजद नेता और लालू यादव के बड़े सुपुत्र तेज प्रताप ने उन्हें पार्टी में आने का खुला निमंत्रण दिया है. पीके जदयू में शामिल होंगे या नहीं, वो दूर की बात है लेकिन तेज प्रताप के बयान के बाद ही पार्टी में पीके को लेकर दो धड़े बन गए हैं. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने प्रशांत किशोर की तुलना नाली में रहने वाले कीड़े से कर दी, हालांकि तेजस्वी यादव ने जगदानन्द को फटकार लगा दी है..