जिस सिंधिया ने एमपी में बनवाई सरकार उसी को लेकर अब बीजेपी पशोपेश में, इधर कुआं-उधर खाई की बनी स्थिति

कांग्रेस छोड़कर 22 विधायकों के साथ बीजेपी में आए सिंधिया ही बने शिवराज की मुसीबत, सर्वे में केवल सात सीट जीत रही बीजेपी, मतभेदों का पिटारा खुला

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पाॅलिटाॅक्स न्यूज/एमपी. मध्यप्रदेश में साम-दाम-दंड-भेद से बीजेपी ने भले ही शिवराज सिंह की सरकार बना दी हो लेकिन कांग्रेस छोड़कर 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के लिए ही बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं. विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि यदि सिंधिया के 22 के 22 विधायकों को भाजपा से चुनाव लड़ाया जाता है तो उनमें से आधे से ज्यादा चुनाव हार जाएंगे. जैसे-जैसे मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, प्रदेश में सियासत गर्माती जा रही है. भले ही सिंधिया के इस कदम से कांग्रेस की सरकार भले ही चली गई हो लेकिन मुसीबत में अब भी भाजपा पर ही नजर आ रही है. ग्वालियर चंबल की उन 16 सीटों पर भाजपा के पुराने नेताओं और सिंधिया समर्थकों के बीच वर्चस्व को लेकर घमासान मचा हुआ है जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था.

सियासी उल्टफेर हुआ तो अब दोनों खेमों के नेताओं को एक दूसरे के साथ आना पड़ रहा है, जो स्वाभाविक तौर पर अखर रहा है. भाजपा ने उपचुनाव के लिए चुनाव संचालन समिति और प्रबंध समिति की घोषणा कर दी है. 22 सदस्यों वाली चुनाव संचालन समिति में शिवराजसिंह के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं. यह समिति उपचुनाव का संचालन करेगी. इसके साथ ही 16 सदस्यों की प्रबंध समिति भी घोषित की गई है. इसके बावजूद भाजपा की मुश्किलें थम नहीं रही है. अंदर ही अंदर मतभेदों का पिटारा खुल रहा है.

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जा सकती है शिवराज सिंह की मुख्यमंत्री की कुर्सी

वहीं दूसरी ओर आरएसएस की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र की 16 में से आधी से अधिक सीटों पर भाजपा की हार तय है. सर्वे में बताया गया है कि यही हालात बने रहे तो भाजपा को 7 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है. अगर ऐसा होता है तो शिवराजसिंह की सरकार पर बड़ा खतरा मंडरा जाएगा.

इस सर्वे रिपोर्ट के बाद भाजपा के उन नेताओं ने अपनी जाजम बिछानी शुरू कर दी है, जो सिंधिया के भाजपा में आने से खुश नहीं है. हालांकि पार्टी अनुशासन के चलते वे सभी खामोशी साधे हुए है, लेकिन संगठन और सरकार के स्तर पर अपनी आवाज उठा रहे हैं. भाजपा में बना यह गुट नहीं चाहता कि सर्वे में जिन सीटों पर भाजपा की हार निश्चित है, उन सीटों से सिंधिया खेमे के पूर्व विधायकों को टिकट दिया जाए. वहीं सिंधिया जिन 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए हैं, उन सभी को वापस टिकट देने की बात स्पष्ट कर चुके हैं. इसके चलते मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के सामने दोहरी मुश्किल खड़ी हो गई है.

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पहली- यदि सभी सिधिया समर्थकों को टिकट दिया गया और उनमें से अधिकांश हार गए तो सरकार खतरे में आ जाएगी. दूसरी- यदि टिकट नहीं दिए गए तो सिंधिया की नाराजगी भारी पड़ जाएगी. एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि वर्षों से भाजपा की सेवा कर रहे नेताओं को भी पूरी तरह दरकिनार करना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

अभी दो दिन पहले सिंधिया के ट्वीटर अकाउंट से भाजपा शब्द के हटने का विवाद थमा भी नहीं है कि भाजपा के खेमे में टिकट वितरण को लेकर बनी चुनाव संचालन समिति को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई है. संचालन समिति में ज्योतिरादित्य के साथ भाजपा के 21 नेता हैं. इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि भाजपा के लिए नई बनने वाली स्थितियों से निबटना आसान नहीं होगा.

सिंधिया का मजबूत होना शिवराज के लिए चुनौती

इधर, राजनीतिक विश्लेषको का कहना है कि यदि मान लिया जाए कि ज्योतिरादित्य से जुड़े सभी 22 विधायकों को टिकट दे दिया जाए और वो सभी जीत भी जाएं तो भी शिवराजसिंह चौहान के लिए कई तरह की राजनीतिक चुनौतियां बनी रहेंगी. ऐसे में शिवराजसिंह भी फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं.

पिछले दो महीने से चल रहे सियासी घमासान के बीच सिंधिया की खामोशी भी बहुत कुछ कह रही है. ग्वालियर चंबल क्षेत्र में भाजपा नेताओं की ओर से लगाए गए पोस्टर भी काफी कुछ बयां कर रहे हैं. इन पोस्टर में सारे भाजपा नेता तो हैं, अगर कोई नहीं है तो सिंधिया. हालांकि प्रदेश भाजपा ने सफाई दी है कि यह भाजपा के अधिकृत पोस्टर नहीं है. लेकिन सफाई देने भर से काम चल जाता तो बात कुछ और ही होती. इन पोस्टरों से यह बात तो साफ हो गई है कि सिंधिया भले ही भाजपा में आ गए हो लेकिन स्थानीय भाजपा के कर्मठ नेताओं के गले नहीं उतर पा रहे हैं.

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भाजपा में उभर रही इस तस्वीर पर गौर किया जाए तो साफ हो जाता है कि भाजपा में अब सीधे-सीधे दो धड़े बन गए हैं. एक सिंधिया समर्थक, जो पहले कांग्रेस में थे और अब भाजपा में आ चुके हैं. दूसरा वो जो भाजपा की स्थाई सेवा कर रहे थे. दोनों ही धड़े अपने-अपने प्रत्याशियों की लिस्ट बनाकर बैठे हैं. जानकारों के अनुसार भाजपा के स्थाई कार्यकर्ताओं का गुट नहीं चाहता है कि सभी सीटों से सिंधिया सर्मथकों को टिकट दिया जाए. खास तौर से उन सीटों से जहां सर्वे में उनके हारने की बात आई है. वहीं सिंधिया सभी समर्थकों को टिकट दिलाने का वायदा कर चुके हैं. ऐसे में दोनों गुटों का टकराव होना तो निश्चित माना जा रहा है.

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