महाराष्ट्र: पहले से अधिक ताकतवर बनकर राजनीति में उभरे हैं अजित पवार, फिर बनेंगे ठाकरे राज में उपमुख्यमंत्री!

सूत्रों की मानें तो अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में कैबिनेट का हिस्सा बनने जा रहे हैं अगर ऐसा नहीं होने वाला होता तो एनसीपी से कोई ओर गुरुवार को उद्वव ठाकरे की शपथ के बाद ही उपमुख्यमंत्री की शपथ ले चुका होता

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. महाराष्ट्र में गुरुवार से ठाकरे राज का आगाज हो गया है. ठाकरे परिवार से पहली बार मुख्यमंत्री बने उद्वव ठाकरे ने आज मुम्बई के शिवाजी पार्क में 70000 से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उद्वव के साथ महाविकास अघाड़ी के 6 अन्य विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली. इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि अजित पवार का इस नई सरकार में क्या रोल होगा? क्या उन्हें फिर से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया जाएगा या उनके लिए कोई और भूमिका चुनी जाएगी. इस मसले पर शपथ ग्रहण समारोह से पहले जब मीडिया ने अजित पवार से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि वह आज शपथ नहीं लेने जा रहे हैं.

महाविकास अघाड़ी की सत्ता के इस गठबंधन में एनसीपी का एक अहम रोल है जिसके बिना सरकार बनाना तो क्या सोचना भी दूर की कोड़ी था. महाराष्ट्र की राजनीति में बीते 23 से 26 नवम्बर के बीच क्या-क्या हुआ और किस तरह शरद पवार ने अपने राजनीतिक कौशल से बीजेपी को धराशायी किया ये किसी से छिपा नहीं है. महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार के फॉर्म्युले में इकलौते उपमुख्यमंत्री का पद एनसीपी के खाते में आया है. ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प है कि अजित पवार मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं या नहीं और मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं तो क्या उपमुख्यमंत्री का पद उनके पास फिर आएगा? वैसे सूत्रों की मानें तो अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में कैबिनेट का हिस्सा बनने जा रहे हैं अगर ऐसा नहीं होने वाला होता तो एनसीपी से कोई ओर गुरुवार को उद्वव ठाकरे की शपथ के बाद ही उपमुख्यमंत्री की शपथ ले चुका होता. वैसे भी अजीत पवार के राजनीतिक अनुभव को देखते हुए उपमुख्यमंत्री से कम पर अजीत मानेंगे ऐसा कहना मुश्किल है.

बड़ी खबर: महाराष्ट्र में शुरू हुआ ‘ठाकरे राज’, 6 अन्य नेताओं ने भी ली मंत्री पद की शपथ

प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार बारामती से वर्तमान विधायक हैं. एनसीपी का गढ़ कहे जाने वाले इस विधानसभा क्षेत्र से अजित पवार के खिलाफ भाजपा-शिवसेना सहित कुल 10 उम्मीदवारों ने दांव लगाया लेकिन अजित पवार ने भारी मतों से एक तरफा जीत दर्ज कर अपनी परम्परागत सीट पर विजयी सफर को जारी रखा. अपनी बेबाक छवि और अपने चाचा शरद पवार की तरह परिश्रमी और न थकने वाले अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले अजीत पवार फिर से एक बार सुर्खियों में छाए हुए हैं. आइए जानते हैं उनके राजनीतिक, सामाजिक और निजी जीवन की कहानी…

अजीत अनंतराव पवार का जन्म 22 जुलाई, 1959 को देवलि प्रवर, अहमदनगर में हुआ. उनके पिता अनंतराव पवार शरद पवार के बड़े भाई थे जो शुरूआत में मुंबई में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता वी. शांताराम के फिल्म स्टूडियो ‘राजकमल स्टूडियो’ के लिए काम किया करते थे. अजीत जब अपने स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे तब अपने पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ी और वे अपने परिवार की देखभाल करने लगे. वे केवल माध्यमिक विद्यालय स्तर तक शिक्षित हैं. अजीत के पढ़ाई के समय में ही शरद पवार सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में एक नामी राजनीतिक व्यक्ति बन गए थे.

अजित पवार (Ajit Pawar) ने साल 1982 में राजनीति में प्रवेश किया और कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री के बोर्ड में चुने हुए. इसके बाद साल 1991 में वे पुणे डिस्ट्रिक्ट कॉपरेटिव बैंक के चैयरमैन बने. अजित पवार पहली बार 1995 में बारामती से लोकसभा सांसद भी निर्वाचित हुए, बाद में उन्होंने शरद पवार के लिए यह सीट खाली कर दी थी. 1991 से 1992 के बीच वे नाइक सरकार में कृषि राज्य मंत्री, अपने चाचा शरह पवार की सरकार में पॉवर एवं प्लानिंग मंत्री बने. कांग्रेस की विलासराव देशमुख सरकार में केबिनेट मंत्री और सुशील कुमार शिंदे सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे.

महाराष्ट्र की बारामती विधानसभा सीट पर पिछले 52 सालों में सिर्फ दो ही लोग विधायक बने. यह दोनों ही पवार परिवार के हैं, शरद पवार और अजित पवार (Ajit Pawar). चाचा शरद और भतीजे अजित इस सीट पर छह-छह बार एमएलए बन चुके हैं. पवार परिवार ने इस सीट को आठ बार कांग्रेस के लिए और चार बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के लिए फतह किया. शरद पवार सन 1967 से 1990 तक निरंतर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी हुए. इसके बाद में अजित पवार ने भी दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते. बाद में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी और एनसीपी बनाई. तब से लेकर अब तक चार बार अजित पवार एनसीपी से यहां जीतते रहे हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में अजित सातवीं बार बारामती से जीते हैं.

90 के दशक में विदेशी मूल की सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध करने पर शरद पवार को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. उसके बाद 24 मई, 1999 को शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर एनसीपी की स्थापना की. उसके बाद अजित पवार ने अपने चाचा के साथ पार्टी की बागड़ौर संभालने में मदद की. बाद में साल 2010 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में अजित पवार (Ajit Pawar) पहली बार महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री बने. हालांकि सितंबर 2012 में एक घोटाले के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में एनसीपी ने एक श्वेत पत्र जारी किया और कहा कि अजित पवार बेदाग हैं.

अजित पवार (Ajit Pawar) का विवादों से भी नाता रहा है. उनका नाम महाराष्ट्र में 1500 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले से भी जुड़ा और वे इस मामले में आरोपी हैं. साल 2013 में अजित पवार की उनके एक बयान की वजह से काफी आलोचना की गई थी. दरअसल, अजित पवार ने सूखे को लेकर 55 दिनों तक उपवास करने वाले कार्यकर्ता पर विवादित टिप्पणी की थी. बाद में अपने इस बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी. इसी तरह उन पर साल 2014 में बारामती में ग्रामीणों को धमकाने का भी आरोप लगा. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अजित पवार अपनी चचेरी बहन सुप्रिया सुले के लिए प्रचार करने एक गांव में गए थे. यहां उन्होंने कथित तौर पर ग्रामीणों को धमकाया और सुले को वोट न देने की स्थिति में पानी की सप्लाई कटवाने की धमकी भी दी थी.

बड़ी खबर: आखिर उद्वव ने पूरा किया बाला साहेब ठाकरे को दिया ‘शिवसैनिक को सूबे का मुख्यमंत्री’ बनाने का वचन

अजित पवार (Ajit Pawar) अपने चाहने वालों के बीच ‘दादा’ के रूप में लोकप्रिय हैं. उन्होंने सोशल इंटरप्रिन्योर सुनेत्रा से शादी की है और उनके दो बच्चे पार्थ और जय पवार हैं. कहा जाता है कि अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा ही पर्दे के पीछे से उनका सारा चुनावी कामधाम देखती हैं और रणनीति बनाती हैं. अजित पवार खेती-किसानी के भी जानकार हैं. अजित पवार (Ajit Pawar) ने अपने बेटे पार्थ पवार को भी राजनीति में उतार दिया है. पार्थ ने 2019 में बारामती लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और चुनाव हारने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य बने.

अजित कुछ समय से अपने चाचा शरद पवार से नाराज चल रहे थे लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक घोटाले में उनके साथ शरद पवार का नाम भी घसीटे जाने के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. यहीं से उनके और शरद पवार के रिश्तों में नजदीकियां आने लगी. इसका परिणाम भी सकारात्मक रहा और पार्टी ने 56 सीटें अपने नाम कर सरकार बनाने में अहम भूमिका का निर्वाह किया.

ढलती उम्र के साथ शरद पवार का चुनावी दंगल में जोश काबिले तारीफ रहा लेकिन ये उनकी राजनीति की अंतिम पारी मानी जा रही है. लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में न उतरकर उन्होंने इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं. ऐसे में अजित पवार पार्टी के अगले उतराधिकारी भी बन सकते हैं.

Leave a Reply