झारखंड: फिर एक बार इतिहास रच पाएंगे रघुबर दास या झामुमो फेरेगी सपनों पर पानी

जितनी सरल उतनी ही पेंचीदगी से भरी है झारखंड की राजनीति, दो दशक में 10 से ज्यादा मुख्यमंत्री लेकिन रघुबर दास के अलावा कोई भी पूरा नहीं कर सका कार्यकाल, स्थानीय पार्टियों से पार पाना मुश्किल

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. झारखंड (Jharkhand) की राजनीति देखने में जितनी सरल है अंदरूनी तौर पर उतनी ही उलझी हुई है. इसका अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड के दो दशक के राजनीतिक इतिहास में अभी तक एक बार भी सत्ताधारी पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी. वहीं झारखंड में वर्तमान सीएम रघुबर दास प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. रघुबर दास सीएम कार्यकाल पूरा कर पहले ही इतिहास रच चुके हैं और अब आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों में फिर से इतिहास रचना चाहते हैं. वहीं विपक्ष एकजुट होकर उन्हें घेरने के लिए चक्रव्यूह रचने में जुटा है.

झारखंड राज्य के गठन को 19 साल हो गए हैं और यहां अब तक 10 मुख्यमंत्री बन चुके हैं. झारखंड में अब तक रघुबर दास पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. रघुबर दास से पहले राज्य में बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधू कोड़ा, हेमंत सोरेन सीएम बन चुके हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन और भाजपा के अर्जुन मुंडा तो तीन-तीन बार झारखंड (Jharkhand) के मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री पद पर अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. ऐसे में पहली बार मिले मौके को रघुबर दास ने अच्छे से भुनाते हुए यह इतिहास रच दिया.

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झारखंड (Jharkhand) के गठन के साथ ही 2000 में पहली बार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही. बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे केवल 28 महीने ही पद पर रह सके. इसके बाद भाजपा के अर्जुन मुंडा ने 18 मार्च, 2003 में सत्ता संभाली और 2 मार्च, 2005 तक ही पद पर रहे. अगले चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) पार्टी के शिबू सोरेन राज्य के नए मुख्यमंत्री बने लेकिन वे केवल 10 दिन ही इस पद पर रह सके. इस तरह एक-एक करते हुए पांच मुख्यमंत्री बने लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. इसी बीच तीन बार झारखंड में राष्ट्रपति शासन भी लागू करना पड़ा.

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झारखंड (Jharkhand) में आगामी 30 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. कुल 81 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव 5 चरणों में आयोजित होंगे. पहला चरण 30 नवंबर, दूसरा चरण 7 दिसम्बर, तीसरा चरण 12 दिसम्बर, चौथा चरण 16 दिसम्बर और अंतिम चरण 20 दिसम्बर को होगा. नतीजे 23 दिसम्बर को घोषित किए जाएंगे.

अब रघुबर दास का विजयी सफर रोकने के लिए कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित अन्य विपक्षी पार्टियां एक होकर भाजपा के खिलाफ व्यूह रचना करने में जुट गयी है. झारखंड मुक्ति मोर्चा क्षत्रप के साथ वहां की सबसे बड़ी स्थानीय पार्टी है. पिछले चुनाव में इस पार्टी ने 19 सीटों पर अपना कब्जा जमाया और विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी बनकर बैठी. वहीं झारखंड विकास मोर्चा की भाजपा से पुरानी अदावत है. कांग्रेस और स्थानीय पार्टी आजसू के अलावा मायावती की बसपा और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइडेट भी यहां चुनाव लड़ रही हैं. हालांकि जेडीयू एनडीए की सहयोगी पार्टी है लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हुई आपसी तकरार के बाद जहां तक उम्मीद है झारखंड में नीतीश कुमार स्वतंत्र चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

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इस प्रकार झारखंड में भाजपा और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियों को छोड़ दें तो झामुमो, झाविमो सहित तीन स्थानीय पार्टियां ऐसी हैं जिन्होंने पिछले चुनाव में निर्दलीय समेत आधी सीटों पर कब्जा जमाया था. ऐसे में स्थानीय पार्टियों की भूमिका यहां काफी अहम है जिनसे बेरूखी कर किसी भी पार्टी के लिए यहां सरकार बनाना करीब-करीब नामूमकिन है. सीटें कम हैं लेकिन दर्जनभर पार्टियों की मौजूदगी यहां चुनावी दंगल को घमासान बनाने के लिए तैयार है. ऐसे में देखना काफी रोचक रहेगा कि क्या हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में जनता के विश्वास पर खरे न उतरने के बावजूद सरकार बनाने वाली भाजपा झारखंड (Jharkhand) में फिर से सत्ता हथियाने में सफल होगी या फिर दो दशक तक सत्ता से बेदखल रही कांग्रेस पहली बार अपना परचम लहराने में कामयाब होगी. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा अकेले भी रघुबर दास का सफर रोकने का माद्दा रखती है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

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