शहर में किसी भी जगह को सरकार कर सकती है नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित, कटारिया ने बताया दादागिरी चलाने वाला डंडा

विधानसभा में राजस्थान नगर पालिका संशोधन विधेयक पारित, सदन में लाहोटी ने बताया एक हजार करोड़ का चूना लगाने वाला कदम, वहीं तेज आवाज में स्पीकर बजाने पर अब लगेगा 5 हजार का जुर्माना

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पॉलिटॉक्स न्यूज/राजस्थान. जयपुर, जोधपुर और कोटा सहित तीन शहरों में दो-दो निगम बनाने को मान्यता और शहरों में कहीं भी नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित करने वाला चर्चित ‘राजस्थान नगर पालिका संशोधन विधेयक-2020’ ध्वनि मत से विधानसभा में पारित हो गया. इस कानून के पास होने से अब अप्रैल में जयपुर-जोधपुर और कोटा में नवगठित दो-दो निगमों को चुनाव कराने का रास्ता पूरी तरह से खुल गया है. साथ ही सरकार को पावर मिल गया है कि किसी भी शहर में कहीं भी सरकार अब नो-कंस्ट्रशन जोन घोषित कर सकेगी.

नियमों के अनुसार, निकायों में चुनावों के दौरान गलत जानकारी देने या गलत शपथ पत्र पेश करने पर जुर्माना और सजा का प्रावधान भी रखा गया है. अब से इसे दंडनीय अपराध माना जाएगा. तेज आवाज में स्पीकर बजाने पर लगने वाले जुर्माने की राशि भी बढ़ाई गई है. जुर्माना दो हजार से बढ़ाकर पांच हजार रुपये कर दिया गया है.

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हालांकि विधानसभा में दो-दो निगम बनाने को लेकर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया. नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने 194-क के प्रावधान को जयपुर से सरकार की दादागिरी चलाने वाला डंडा तक बता दिया. वहीं बीजेपी विधायक अशोक लाहोटी ने बिना जनता से पूछे दो-दो निगम बनाने को एक हजार करोड़ का चूना लगाने वाला कदम बताया. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और विधायक किरण माहेश्वरी ने भी सत्ता पक्ष पर हमला बोला.

विपक्ष के तल्ख हमलों के बीच यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने उत्तर देकर सभी को चुप करा दिया. धारीवाल ने कहा कि 2009 में निगम चुनाव संबंधी धारा जोड़ना भूल गए थे, भाजपा के समय भी वहीं कानून था, बाकी कोई बदलाव नहीं है. नो-कंस्ट्रक्शन जोन की शक्तियां सरकार के अपने हाथ में ही है. इसमें कुछ गलत नहीं है. लाहोटी की ओर इशारा करते हुए धारीवाल ने कहा कि आप तो दो-दो निगम बनाने के खिलाफ हाईकोर्ट डबल बैंच में गए थे, क्या हुआ? कोर्ट ने मुहर लगा दी ना कि सरकार को नए निगम बनाने का पावर है. धारीवाल ने बीजेपी की किरण माहेश्वरी पर तंज कसते हुए कहा कि आपको नगर पालिका एक्ट भी मालूम नहीं है? आप भी तो पालिका की चेयरमेन रही हैं. नगरपालिका एक्ट का एक पूर्व चेयरमैन को तो मालूम होना चाहिए.

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हालांकि कानून पर चर्चा के लिए बहुत कम समय रखा गया. मात्र 40 मिनट में 32 विधायकों को बोलना था. ऐसे में अंतिम तीन विधायकों को तो कुछ ही सैकेंड में ही बैठने के लिए बोला गया.

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