सामने आई गहलोत सरकार के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की दोहरी संवेदनशीलता

अपने निर्वाचन क्षेत्र में हादसे के दौरान हुई एक श्रमिक की मौत के चंद घण्टों में रघु शर्मा ना सिर्फ पहुंचे बल्कि उसी दिन आक्रोशित लोगों की सभी समस्याओं का निपटारा भी हो गया वहीं 106 बच्चों की मौत पर मचे बवाल के बाद मंत्री जी को कोटा जाने में 34 दिन लगे

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. पिछले दिनों राजस्थान राज्य में घटी दो घटनाओं से गहलोत सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री की दोहरी संवेदनशीलता वाली तस्वीर उजागर हुई है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि प्रदेश में दो अलग-अलग स्थानों पर घटी इन घटनाओं में मंत्री जी की संवेदनशीलता दोनों स्थानों के लिए बिल्कुल अलग-अलग उभर कर सामने आई.

पहली घटना कोटा के जेके लोन अस्पताल से जुडी है, जहां इस अस्पताल में 34 दिन में 106 बच्चों की मौत का मातम पसरा था. गत 23-24 दिसम्बर के दरम्यान एक साथ 10 बच्चों की मौत के बाद राज्य ही नहीं बल्कि देशभर में यह खबर प्रमुखता के साथ सरकार की संवदेनशीलता पर सवाल खडे कर रही थी. लेकिन प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री ने कोटा जाने की जहमत नहीं उठाई. लेकिन जब मामला बढ़ा तो कांग्रेस आलाकमान की नाराजगी के बाद 3 जनवरी को मंत्री रघु शर्मा कोटा अस्पताल पहुंचे, मतलब चिकित्सा मंत्री को जयपुर से कोटा पहुंचने में लगभग 34 दिन का समय लग गया.

अस्पताल में दौरे के समय मंत्री रघु शर्मा के सामने नवजातों के लिए जीवन रक्षक उपकरण जैसे वार्मर, नेबुलाइजर और इंफयूजन पंप तक खराब होने की सच्चाई समाने आई. मंत्रीजी ने अस्पताल को दुरूस्त करने के निर्देश दिए. अस्पताल में आॅक्सीजन पाइप लाइन के निर्माण से लेकर उपकरणों की खरीद की स्वीकृति के साथ ही बच्चों की मौत के प्रति संवदेना रखने वाले मंत्रीजी का दौरा समाप्त हो गया.

दूसरी घटना जुडी है केकडी के सावर कस्बे से, केकडी चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का विधानसभा क्षेत्र है और सावर उनका पैत्रक गांव है. सावर में 7 जनवरी को एक निर्माणाधीन बस स्टेण्ड परिसर की छत गिर गई. घटना में एक महिला श्रमिक की मौत हो गई और दो श्रमिक गंभीर रूप से घायल हो गए. घटना दोपहर तीन बजे घटी. घटना के बाद सावर के लोगों में रोष उपज गया तो मंत्री रघु शर्मा संवदेनशीलता का परिचय देते हुए जयपुर में एक मीटिंग छोड़कर उसी दिन सावर पहुंच गए.

इतना ही नहीं, रघु शर्मा ने इस घटना के प्रति उच्च स्तरीय संवदेनशीलता दिखाते हुए मृतका के परिजनों को मुख्यमंत्री कोष से एक लाख और ठेकेदार से 5 लाख रूपए दिलवाए. मृतका के आश्रित को हिंदुस्स्तान जिंक में नौकरी दिलाने के आदेश भी दे दिए. यही नहीं बल्कि बस स्टेण्ड परिसर के निर्माण में घटिया समाग्री का उपयोग करने के आरोपी ठेकेदार सहित संबंधित अधिकारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई भी की गई. यानी घटना वाले दिन ही सावर के लोगों की हर मांग का समाधान हो गया. हालांकि अक्सर ऐसा बहुत कम देखने केा मिलता है लेकिन मंत्री रघु शर्मा ने यह कर दिखाया और करते भी क्यूं ना, परम्परागत वोट बैंक का मामला जो ठहरा.

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यह दो घटनाएं बंया कर रही हैं कि मंत्री जी की संवदेनशीलता का वेग अलग-अलग घटना के समय अलग-अलग तरीके का होता है. यह तस्वीर बताती है कि अगर केकडी या सावर के अस्पतालों से बच्चों की मौत के समाचार निकलते तो चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को वहां पहुंचने में 34 दिनों का समय शायद नहीं लगता. लेकिन मंत्री जी यह कैसे भूल सकते हैं भले ही सावर-केकड़ी उनका निर्वाचन क्षेत्र है लेकिन वो मंत्री पूरे प्रदेश के हैं.

अगर हमारे जनप्रतिनिधियों या सरकार के मन्त्रियों की सोच इसी प्रकार की बनी रहेगी तब तो हो लिया प्रदेश का विकास. घटना या दुर्घटना होना स्वाभाविक है इसको रोक पाना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन हर जनप्रतिनिधि या मंत्री की संवेदनशीलता अगर स्थान प्रधान हो जाए तो प्रदेश या देश में जो अराजकता का माहौल पनपेगा वो बहुत ही भयावह होगा. अगर सावर की घटना पर दिखाई गई संवेदनशीलता कोटा की घटना के समय दिखाई गई होती तो शायद इतना बवाल ही नहीं होता.

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