बीजेपी हारी या मोदी-शाह? क्या बीजेपी तय करेगी बंगाल में हार की जिम्मेदारी? सामने आई कमियां सारी

बंगाल की हार बीजेपी की है या नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की ये भाजपा के लिए है चिंतन का विषय, भाजपा से कहां हुई गलती, मोदी और शाह से फिर कैसे हो गई दिल्ली वाली गलती? क्या ममता को टारगेट करना पड़ा महंगा? क्या बीजेपी से इंपोर्ट किए गए नेताओं के कारण सत्ता से दूर हुई बीजेपी, पॉलिटॉक्स की इस खास रिपोर्ट में मिलेगी सारी जानकारी

क्या बीजेपी तय करेगी बंगाल में हार की जिम्मेदारी?
क्या बीजेपी तय करेगी बंगाल में हार की जिम्मेदारी?

Politalks.News/WestBengalElection. पश्चिम बंगाल में नतीजे आने के बाद यह बात तय हो गई है कि यहां विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हारे हैं. भाजपा ने तो पिछले विधानसभा चुनाव में हुई 3 सीट की जीत में कई सौ गुना का इजाफा कर लिया है. दूसरी, बात यह भी है कि बंगाल में भाजपा चुनाव नहीं लड़ रही थी, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ वो खरीदी हुई सेना चुनाव लड़ रही थी, जो तृणमूल कांग्रेस से उधार ली गई थी. इसलिए पश्चिम बंगाल में अगर भाजपा सत्ता से बहुत दूर रह गई है या ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार भारी-भरकम जीत हासिल की है तो यह बीजेपी की नहीं बल्कि पीएम मोदी और अमित शाह की हार है.

दरअसल, यहां चुनाव से पहले ही यह तय हो गया था कि बंगाल में भाजपा नहीं लड़ेगी, बल्कि पीएम मोदी और शाह के चेहरे पर बीजेपी के बाहर से आए दूसरे नेता लड़ेंगे. इसका नतीजा यह हुआ है कि बंगाल के हर जिले में भाजपा में बिखराव हो गया. हालांकि यह खबर मीडिया में आने नहीं दी गई. हर जगह बस सिर्फ यह दिखाया गया कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में टूट हो रही है. यही दर्शाया गया कि TMC के सांसद विधायक और पदाधिकारी बीजेपी में चले गए हैं. मीडिया में यह नैरेटिव चलाया गया कि ‘अमुक जी अधिकारी‘ बहुत बड़े नेता हैं, ये ममता दीदी के बहुत ही करीबी हैं और बंगाल की 60 सीटों पर सीधा असर रखते हैं, जो कि दीदी को छोड़कर बीजेपी के साथ आ गए हैं. यही नहीं बल्कि यहां तक कहा गया कि ये सभी ममता बनर्जी से नाराज हैं क्योंकि वो केवल अपने भतीजे अभिषेक के बारे में सोचती हैं.

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बीजेपी के पुराने कर्मठ कार्यक्रताओं की नाराजगी पड़ गई भारी
वहीं इसके उलट सच्चाई ये थी कि पूरी भारतीय जनता पार्टी अंदर ही अंदर बिखर रही थी. अव्वल तो भाजपा के पास अपने कोई विधायक तो थे ही नहीं और जो जमीन कार्यकर्ता थे भी तो उन्हें TMC से आए नेताओं के सामने छोटा दिखाया गया. जिसके चलते पार्टी का जमीनी संगठन बिखर गया. बाहरी लोगों को टिकट देने से उनमें नाराजगी हुई और उन्होंने भाजपा को छोड़ा. इसके अलावा दर्जनों ऐसे नेता भी थे जो बरसों से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे और टिकट बाहर से आए लोगों को मिल गई. इस वजह से पार्टी संगठन और पार्टी के स्थानीय नेता नाराज हुए और उन्होंने या तो घर बैठना उचित समझा या अंदरखाने तृणमूल की मदद की.

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दिल्ली की गलती फिर बंगाल में दोहराई
इसके साथ ही, पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री शाह ने बंगाल के प्रचार में वही गलती की, जो उन्होंने दिल्ली चुनाव में की थी. जिस तरह से दिल्ली में पूरा फोकस अरविंद केजरीवाल पर बना कर आमने-सामने की लड़ाई मोदी और शाह ने बनाई थी वैसी ही लड़ाई
उन्होंने बंगाल में भी बना दी. जिसका नतीजा यह हुआ कि लेफ्ट और कांग्रेस का भी पूरा वोट तृणमूल की ओर चला गया. वहीं पीएम मोदी और शाह ने अपने ऊपर फोकस बनवा कर भी एक बड़ी गलती की, जिससे ममता बनर्जी को बाहरी और भीतरी का नैरेटिव बनाने में मदद मिली.

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देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री पर निजी हमले पड़ गए उल्टे
इन सबके आलावा एक बड़ी गलती को प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे ज्यादा की वो ममता बनर्जी को टारगेट करने से हुई. वे देश की इकलौती महिला मुख्यमंत्री हैं और उनके ऊपर निजी हमले या प्रधानमंत्री के उनको चिढ़ाने वाले अंदाज में संबोधित करने से महिलाओं का एकमुश्त वोट उनकी ओर गया. कुल मिला कर लड़ाई मोदी-शाह बनाम ममता की थी, जिसमें ममता ने अकेले व्हील चेयर पर बैठ कर दोनों को हरा दिया.
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