झारखंड: रघुबर दास के सामने निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे सरयू राय! बीजेपी की बढ़ सकती मुश्किलें

मुख्यमंत्री के सामने निर्दलीय ताल ठोकने की तैयारी में सरयू राय, आलाकमान को फैसले से अवगत कराया, विपक्ष का पूरा साथ मिलने की संभावना प्रबल

Saryu Rai Vs Raghubar Das
Saryu Rai Vs Raghubar Das

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. झारखंड में विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों की सूची जारी करने के साथ ही पार्टियों में बागी उम्मीदवारों के सुर भी तीखे होते जा रहे हैं. इसी दौरान वर्तमान मुख्यमंत्री रघुबर दास के सामने भी कुछ ऐसी ही चुनौती आ खड़ी हुई है. भाजपा की रघुबर दास सरकार में कैबिनेट मंत्री सरयू राय (Saryu Rai Vs Raghubar Das) ने उन्हें धर्मसंकट में डाल दिया है. दरअसल सरयू राय का टिकट अभी तक रोका हुआ है. टिकट नहीं मिलने की सम्भावना के चलते सरयू राय ने निर्दलीय चुनाव में लड़ने का ऐलान कर दिया, बस औपचारिकता बाकी है. सरयू राय ने शनिवार को दो सीटों से नामजदगी का पर्चा खरीदा. सोमवार को नामांकन दाखिल करने की उम्मीद है. दो जगहों से नामांकन फॉर्म खरीदकर उन्‍होंने यह विकल्‍प खुला रखा है कि पार्टी टिकट देगी तो वे अपनी सीट जमशेदपुर पश्चिमी से चुनाव लड़ेंगे.

लेकिन अगर उनका टिकट कटा तो रघुबर दास (Saryu Rai Vs Raghubar Das) के लिए मुश्किलें पैदा हो जाएंगी. इसकी वजह ये है कि जिस दूसरी सीट से वे पर्चा भरने वाले हैं वो सीट है जमशेदपुर पूर्व. इसी सीट पर उनके सामने रघुबर दास होंगे. इस सीधी तकरार का मतलब ये है, एक तरफ तो सरयू जमशेदपुर पश्चिम से निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ेंगे जहां उनका वर्चस्व है. वहीं रघुबर दास के सामने खड़े होकर उनका वोट बैंक कमजोर करेंगे ताकि रघुबर दास को उनके टिकट काटे जाने का हर्जाना चुनाव में हार कर ना देना पड जाए.

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वैसे रघुवर दास और सरयू राय (Saryu Rai Vs Raghubar Das) के बीच की तल्‍खी जगजाहिर है. सरयू राय फिलहाल रघुवर दास की कैबिनेट में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री हैं लेकिन मुख्यमंत्री रघुवर दास के मंत्रिमंडल में रहने के बावजूद सरयू राय उनका खुलकर विरोध करते रहे हैं. कई नीतिगत फैसलों पर उन्होंने सरकार की मुखालफत की. एक वक्त ऐसा भी आया जब लगा कि सरयू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे देंगे, हालांकि ऐसा हुआ नहीं. फिर भी विधानसभा में विपक्षी दलों के हो-हंगामे को आधार बनाकर उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. तभी से लगने लगा था कि दोनों के बीच ठनी जमकर है.

दूसरी ओर, इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में केंद्रीय आलाकमान से ज्यादा दखल रघुबर दास का है. वे झारखंड में अब तक के सबसे सफल और पहले 5 साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले मुख्यमंत्री रहे हैं. ऐसे में उन्हें टिकट बांटने का फ्री हैंड राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिला हुआ है. ऐसे में वाजिब है कि जिनसे भी रघुबर दास को डर है, उन्हें बेटिकट रखा जाएगा. ऐसा हो भी रहा है. झारखंड में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे वर्तमान विधानसभा स्पीकर दिनेश उरांव और सरकार में नंबर दो मंत्री नीलकंठ मुंडा की टिकट भी रूकी हुई है. वहीं प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद टिकट मिलना केवल रघुबर दास का करीबी होने का गिफ्ट है.

वैसे देखा जाए तो सरयू राय की सीट पर भाजपा ने सस्पेंस बनाया हुआ है. पार्टी ने जमशेदपुर पश्चिमी से अभी तक टिकट घोषित नहीं किया है लेकिन सरयू राय ने अपनी तैयारी पहले से शुरू कर दी है. मीडिया से बातचीत में वे पहले ही बता चुके हैं कि उनकी सीट पर सस्‍पेंस भाजपा ने बनाया हुआ है. उनकी ओर से सस्‍पेंस सरीखा कुछ नहीं है. जनता जहां से चाहेगी वे वहां से चुनाव लड़ेंगे.

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वहीं सरयू राय के राजनीतिक कद को देखते हुए विपक्षी पार्टियों की नजरें भी उन पर गढ़ी हुई है. नेता प्रतिपक्ष और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्‍यक्ष हेमंत सोरेन का ताजा बयान इस बात का स्पष्ट तौर पर संकेत देता है. सोरेन ने कहा कि वे अच्‍छे नेता हैं और उन पर ईश्‍वर की कृपा बनी रहे. वे जहां भी रहेंगे, बेहतर करेंगे. इधर सरयू राय के बागी रुख पर पूर्व मुख्‍यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के अध्‍यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि यह भाजपा का अंदरुनी मामला है. हालांकि उन्होंने सरयू को अपनी पार्टी में शामिल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दिया.

सूत्रों से खबर ये भी मिली है कि सरयू राय (Saryu Rai Vs Raghubar Das) ने भाजपा आलाकमान को इस बारे में पहले ही अवगत करा दिया है कि टिकट न मिलने पर वे दोनों सीटों से निर्दलीय ताल ठाकेंगे. अगर भाजपा ने समय रहते उन्हें टिकट देकर नहीं रोक तो निश्चित तौर पर उनका ये कदम रघुबर दास की परेशानियों को हवा देगा. मुख्यमंत्री के खिलाफ अगर सरयू राय ने चुनाव लडने की घोषणा करते हैं तो विपक्षी दलों का साथ उन्हें आसानी से मिल जाएगा. कहीं अगर मुख्यमंत्री रघुबर दस सरयू राय के सामने हार जाते हैं तो प्रदेश अध्यक्ष या मुख्यमंत्री पद के लिए उनके रास्ते सीधे तौर पर खुल जाएंगे.

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