क्या विपक्ष को एक सूत्र में बांधने की कोशिशों में सफल हो पाएगी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी?

जो भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी न कर पाए, वो अकेले मनीष सिसोदिया ने कर दिखाया, फिलहाल सीबीआई की कस्टडी में हैं दिल्ली के उप मुख्यमंत्री, इधर विपक्ष के 9 नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर दिए एकता के संकेत, सबसे पहले हस्ताक्षर किए शरद पवार में

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Opposition on the arrest of Manish Sisodia. इस बात में कोई दो राय नहीं कि देशभर में भारत जोड़ो यात्रा निकालकर राहुल गांधी ने विपक्षी एकता का सूत्रधार किया. कन्याकुमारी से दक्षिण भारत तक निकाली गई करीब साढ़े तीन हजार किमी. लंबी पदयात्रा में कई नेताओं ने राहुल गांधी का समर्थन किया लेकिन कुछ ऐसे मजबूत नेता भी थे, जिन्होंने इस यात्रा को मौन समर्थन तो दिया, लेकिन शामिल नहीं हुए. अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार इनमें से प्रमुख रहे. हालांकि भारत जोड़ो यात्रा को विपक्ष से जितना समर्थन मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिल पाया लेकिन दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की आबकारी नीतियों के चलते उनकी गिरफ्तारी ने विपक्ष को शायद एकता के सूत्र में बांधना शुरू कर दिया है. हाल ही में विपक्ष के 9 प्रमुख नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में चिट्ठी भेजना इस बात का पुख्ता सुबूत है.

दरअसल, राउज एवेन्यू कोर्ट में मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई टल गई है और कोर्ट ने 10 मार्च तक के लिए जमानत पर फैसला सुरक्षित रख लिया. साथ ही साथ सीबीआई को उनकी दो दिन की रिमांड दे दी. इसके बाद मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर 9 विपक्ष के नेताओं ने पीएम मोदी को एक चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में लिखा है कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश से तानाशाही शासन में तब्दील हो गया है. इन नेताओं में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, BRS चीफ के.चंद्रशेखर राव (KCR), पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राजद नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस लीडर फारूक अब्दुल्ला, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, शिवसेना ठाकरे ग्रुप के चीफ उद्धव ठाकरे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शामिल हैं.

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इस पत्र के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर निशाना साधा गया है. इस पत्र के माध्यम से कहा गया है, ‘ हमें भरोसा है कि आपको आज भी लगता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का मनमाना इस्तेमाल यह दिखाता है कि हम एक लोकतंत्र से तानाशाही में तब्दील हो गए हैं. लंबी तलाश के बाद 26 फरवरी, 2023 को मनीष सिसोदिया को CBI ने गिरफ्तार कर लिया. कथित तौर पर गड़बड़ी के आरोप में ये गिरफ्तारी की गई और वह भी बिना कोई सबूत दिखाए.’

पत्र में ये भी लिखा गया है कि मनीष सिसोदिया दिल्ली स्कूल एजुकेशन में बदलाव के लिए पहचाने जाते हैं. उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है. यह राजनीतिक षडयंत्र एवं बदले की भावना से की गई राजनीतिक कार्रवाई है. इस गिरफ्तारी ने पूरे देश की आवाम को गुस्से से भर दिया है. इससे वह बात भी पुष्ट हो रही है, जिसके बारे में पूरी दुनिया आशंकित है कि भाजपा के तानाशाही शासन के दौरान भारत के लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं.

केंद्र को निशाने पर लेते हुए विपक्षी नेताओं द्वारा मजबूरी में बीजेपी ज्वॉइन होने की बात का भी जिक्र किया गया है. पत्र में आगे लिखा है, ‘आपके शासन में 2014 से अब तक जितने राजनेताओं की गिरफ्तारी हुई, छापे मारे गए या पूछताछ हुई, उनमें ज्यादातर विपक्षी नेता हैं. मजेदार बात यह है कि उन विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जांच धीमी पड़ जाती है, जो बाद में भाजपा जॉइन कर लेते हैं. उदाहरण के तौर पर पूर्व कांग्रेस नेता और असम के मौजूदा सीएम हेमंत बिस्व सरमा. सीबीआई और ईडी ने 2014-2015 में शारदा चिटफंड घोटाले में उनके खिलाफ जांच शुरू की. हालांकि जबसे उन्होंने भाजपा जॉइन की, तब से केस आगे नहीं बढ़ा है.

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इसी तरह नारदा स्टिंग ऑपरेशन केस में तृणमूल नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय ED और CBI के रडार पर थे. विधानसभा चुनाव से पहले इन लोगों ने भाजपा जॉइन कर ली और तब से केस में कोई खास तरक्की नहीं हुई है. महाराष्ट्र के नारायण राणे केस को ले लीजिए. ऐसे कई उदाहरण हैं.’

पत्र में विपक्ष के आधा दर्जन नामों का जिक्र किया गया, जिनके खिलाफ जांच एंजेंसियों द्वारा छापेमारी की गई. इनमें लालू प्रसाद, संजय राउत, आजम खान सहित कई नेताओं के नाम हैं. पत्र में कहा गया कि ऐसे कई मामलों में केस या गिरफ्तारी तब हुई जब चुनाव होने वाले थे. इससे ये साफ पता चलता है कि जांच एंजेसियों के ये एक्शन पॉलिटिकली मोटिवेटिड थे. पत्र में ये भी लिखा गया है कि जिस तरीके से विपक्ष के प्रमुख नेताओं को टारगेट किया जा रहा है, उससे इस आरोप को बल मिलता है कि आपकी सरकार जांच एजेंसियों की मदद लेकर विपक्ष काे खत्म करने की कोशिश कर रही है.

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पत्र के आखिर में बदले की भावना से केंद्रीय एजेंसियों और गवर्नर जैसे संवैधानिक दफ्तरों के गलत इस्तेमाल पर निंदा प्रकट की गई है. साथ ही मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर कहा गया है कि डेमोक्रेसी में लोगों की इच्छा सर्वोपरि होती है. लोगों ने जो फैसला सुनाया है उसका आदर किया जाना चाहिए, भले ही वह ऐसी पार्टी के पक्ष में दिया गया हो जिसकी सोच आपसे मेल नहीं खाती है.

कहने को तो ये केवल एक पत्र है लेकिन आधा दर्जन से ज्यादा मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो द्वारा लिखा गया यह पत्र विपक्षी एकता को एकसूत्र में बांध रहा है. हालांकि ये बात भी गौर करने योग्य है कि विपक्षी एकता का राग अलपाने वाले नीतीश कुमार और कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिनिधि इस पत्र में शामिल नहीं है. जबकि नीतीश बार बार सार्वजनिक सभाओं में विपक्षी एकता का कई बार राग अलपा चुके हैं जबकि राहुल गांधी देशभर में इसी मुद्दे पर साढ़े तीन हजार किमी. की पदयात्रा निकाल आए. इसके बावजूद मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी ने जिस तरह आधा दर्जन राजनीतिक पार्टियों को एकता के सूत्र में बांधा है, उसने नीतीश कुमार और राहुल गांधी के प्रयासों को काफी पीछे छोड़ दिया है.

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