गुजरात दक्षिण: वलसाड़ में बीजेपी जारी रखेगी जीत का सफर या कांग्रेस वापस लेगी अपना गढ़?

चरम पर गुजरात विधानसभा चुनावों का घमासान, कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले वलसाड़ जिले में पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगा चुकी है सेंध, जिले की कुल 5 विधानसभा सीटों में से तीन आदिवासी इलाकों की सीटें हैं जिन पर कभी रहा है कांग्रेस का दबदबा, सभी पांचों सीटों पर विराजमान हैं बीजेपी के विधायक, आप भी बिगाड़ रही समीकरण

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GujaratAssemblyElection. गुजरात विधानसभा चुनावों का सियासी घमासान अब अपने चरम पर है. सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने घोड़े मैदान में खुले छोड़ दिए हैं. आज बात करें गुजरात के दक्षिणी क्षेत्र के वलसाड जिले की तो आपको बता दें कि वलसाड़ जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस गढ़ में सेंध लगाने का बड़ा काम कर दिया. वलसाड़ जिले में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से तीन आदिवासी इलाकों की सीटें हैं जिन पर कभी कांग्रेस का दबदबा रहा है. वर्तमान में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी के विधायक विराजमान हैं. वलसाड़ जिला प्रदेश का काफी बड़ा इलाका है जिसमें 13 लाख 1 हजार 422 मतदाता हैं. यहां उमरगाम सबसे बड़ी और धरमपुर सबसे छोटी विधानसभा है. आइए जानते हैं इन सभी सीटों पर सियासी आकड़ों के बारे में…

धरमपुर विस पर कांग्रेस के ईश्वरभाई पटेल कर पाएंगे वापसी!
यह विधानसभा सीट वलसाड़ की सबसे छोटी विधानसभा है जिसमें कुल मतदाताओं की संख्या करीब 2 लाख 46 हजार 816 है. इसमें 1 लाख 25 हजार 245 पुरुष और 1 लाख 25 हजार 801 महिला मतदाता हैं. शेष पोस्टल वोटर्स हैं. सीट पर आदिवासी मतदाताओं का दबदबा होने के चलते यह सीट आदिवासियों (ST) के लिए आरक्षित है और पहले के विधानसभा चुनावों में यहां कांग्रेस जीत की हैट्रिक लगा चुकी है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया था.

साल 2017 में बीजेपी के अरविंदभाई छोटूभाई पटेल ने कांग्रेस के ईश्वर पटेल को 20 हजार से अधिक वोटों से हराया था. इससे पहले ईश्वर पटेल ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई. इस बार इस सीट पर आप के कमलेश पटेल भी मैदान में हैं. बीजेपी ने सीटिंग विधायक को टिकट थमाया है. ईश्वर पटेल के फिर से यहां उतरने की संभावना है. मुकाबला कड़ा है लेकिन देखना रोचक रहेगा कि कौन वापसी करता है या रिपीट करता है.

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वलसाड़ विस में बीजेपी के गढ़ में सेंध लगा पाएगी कांग्रेस-आप
जिले की वलसाड़ विधानसभा सच्चे मायनों में बीजेपी का अभेद गढ़ बन गया है जिसे कांग्रेस पिछले 22 सालों से भेदने का प्रयास कर रही है. इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार आधे से भी अधिक वोटों से हारे हैं. यहां 1990 से 2012 तक लगातार पांच विधानसभा चुनावों में बीजेपी के दौलतभाई देसाई की एकछत्र बादशाह रही है. देसाई 1980 में भी इस सीट पर विजयी हुई थे लेकिन 1985 में कांग्रेस के बरजोरीजी परडीवाला ने यहां कांग्रेस की पताका फहराई. 2012 और 2017 में बीजेपी के भारत पटेल ने यह सीट फिर से बीजेपी को दिलवाई. अबकी बार भी यहां बीजेपी मजबूत स्थिति में दिख रही है.

इस विधानसभा सीट पर 260,425 मतदाता निवास करते हैं. इस बार बीजेपी ने फिर से एक बार भारत पटेल पर भरोसा जताया है. आप ने राजू मरछा पर विश्वास जताया है. देखना रोचक रहेगा कि बीजेपी फिर से अपना खेमा बचा पाती है या कांग्रेस यहां सिक्का जमाने में कामयाब होती है. आप और बीजेपी की जंग भी देखना मजेदार रहने वाला है.

पारडी विस में बीजेपी विधायक के सहारे टक्कर देने की कोशिश में आप
वलसाड़ के बाद पारड़ी विधानसभा भी बीजेपी का एक अभेद गढ़ बनता जा रहा है. 2 लाख 55 हजार 98 मतदाता वाली इस सीट पर कांग्रेस पिछले 15 साल और तीन विस चुनावों से जीत का स्वपन देख रही है. अंतिम बार कांग्रेस के लक्ष्मणभाई पटेल ने 2002 में यहां पार्टी को जीत दिलाई थी. उसके बाद 2007 में बीजेपी की उषाबेन पटेल, 2012 और 2017 में कानूभाई पटेल इस सीट पर कब्जा जमाया. कांग्रेस ने जीत की आस में हर बार यहां उम्मीदवार बदला लेकिन परिणाम नहीं बदल सका.

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इस बार बीजेपी अपना उम्मीदवार बदला है. बीजेपी ने इस बार केतनभाई पटेल पर दांव खेला है. कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार के तौर पर जयश्री पटेल और बीजेपी के विधायक कानूभाई पटेल को मैदान में उतारा है. पिछले दो बार के विजयी उम्मीदवार कानूभाई पटेल के आप खेमे में आने से यहां आम आदमी पार्टी थोड़ी सी मजबूत स्थिति में है लेकिन बीजेपी के इस गढ़ को ढहाना आसान नहीं होगा.

कपराड़ा विस में उपचुनाव का इतिहास दोहरा पाएगी BJP
वलसाड़ जिले की यह एक आरक्षित सीट है जिस पर आदिवासी समुदाय (ST) के मतदाताओं का प्रभाव है. यहां 2 लाख 60 हजार 248 मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर धोड़िया पटेल, कुंकना और कोली पटेल सहित तीन आदिवासी उपजातियां प्रभावशाली है. परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई कपराड़ा सीट पर साल 2012 और 2017 दोनों चुनावों में कांग्रेस के जीतूभाई हरजीभाई चौधरी विजयी हुए, लेकिन 2020 के उपचुनाव मे बीजेपी ने कांग्रेस के सीटिंग विधायक जीतूभाई चौधरी बीजेपी खेमे में आ गए और बीजेपी के टिकट पर जीत सदन में पहुंचे.

वर्तमान विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने जीतूभाई पटेल पर फिर से विश्वास जताया है. आप ने जयेंद्र गवित और कांग्रेस ने वसंत पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है. अब देखना है कि कांग्रेस फिर से सीट अपने कब्जे में कर पाती है या बीजेपी के जीतूभाई की पॉपुलर्टी को भुनाने में कामयाब होती है. आप यहां त्रिकोणीय समीकरण बना रही है.

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उमरगाम विस में हो रहा रोचक मुकाबला
गुजरात के वलसाड जिले की उमरगाम विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. इस सीट पर 1962 से अब तक 13 चुनाव हो चुके हैं. इस सीट पर अब तक बीजेपी 5 बार और कांग्रेस 7 बार जीत चुकी है. इस सीट पर साल 2007 में बीजेपी के रमनलाल पाटकर विधायक चुने गए जो 2017 तक जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रमनलाल पाटकर के खिलाफ अशोकभाई पटेल को में उतारा था. इस चुनाव में रमनलाल को 96 हजार 4 वोट मिले थे जबकि अशोकभाई को 54 हजार 314 वोट मिले थे.

इससे पहले 1975 से लेकर 1995 तक कांग्रेस के छोटूभाई वेस्ताभाई पटेल ने लगातार 25 साल अपनी सत्ता बरकरार रखी थी. 1995 और 1998 में बीजेपी के रमनलाल पाटकर ने कांग्रेस के इस तिलिस्म को तोड़ा. 2002 में यह सीट फिर से कांग्रेस और 2007 में बीजेपी के खेमे में गई. अब कांग्रेस इस सीट पर 15 साल से जीत के सूखे को खत्म करना चाहती है.

उमरगाम विधानसभा सीट में पारडी तालुका के कुछ हिस्से, चानोद और डूंगरा भी इसमें आते हैं. इस क्षेत्र में गुजराती के साथ-साथ हिंदी, भोजपुरी और मराठी भाषी भी हैं. उमरगाम विधानसभा सीट के कई निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति की आबादी का अनुपात अधिक है. कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुपात क्रमशः 3.94 और 39.98 है. यहां कुल 2 लाख 78 हजार 835 मतदाता हैं. इसमें 1 लाख 51 हजार 902 पुरुष और 1 लाख 33 हजार 493 महिला मतदाता हैं.

इस बार बीजेपी ने फिर से रमनलाल पाटकर को मैदान में उतारा है. आप की ओर से अशोक पटेल और नरेश वालकी कांग्रेस की ओर से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

वालसाड़ जिले की ये पांचों विधानसभा सीटें चुनावी लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं. बीजेपी इन सीटों को अपने पास से बिलकुल भी गंवाने के मूड में नहीं है और यहां प्रचार कार्यों में जमकर पसीना बहा रही है. कांग्रेस भी वापसी के लिए साइलेंट प्रचार कर जनता को पक्ष में लेने का प्रयास कर रही है. आम आदमी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के बीच नाराज नेताओं पर दांव खेल बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने का रास्ता तलाश रही है. मुकाबला रोचक होने की पूरी पूरी संभावना जताई जा रही है.

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