चिदंबरम के पकड़े जाने के बाद कइयों के नीचे की जमीन खिसकने लगी, कई नेता बचने रास्ते ढ़ूंढ़ रहे है. कुछ लोगों ने नागपुर के संघ कार्यालय के फोन नंबर भी ढ़ूढ़ने शुरू कर दिए. यह भी चर्चा चल पड़ी है बड़ी संख्या में अपनी जान बचाने के लिए कई नेता पंजे को बंद करके उसकी मुटठी में कमल पकड़ने जा रहे है .

(यह लेख आलोक कुमार सिन्हा ने लिखा है. वैज्ञानिक डॉ. राम श्रीवास्तव ने फेसबुक पर साभार उद्धृत किया है. वहां से उठाकर कुछ त्रुटियां सुधारने के बाद यह पॉलिटॉक्स पर प्रकाशित किया जा रहा है)

कांग्रेस नेता चिदम्बरम ने सिर्फ चोरी ही नहीं देश के साथ धोखा भी किया है. 15 जून, 2004 को लश्कर की आतंकी इसरत जहां अपने तीन साथियों के साथ मोदी को उड़ाने के लिए गुजरात पहुंचती है इशरत सारी रिपोर्ट कश्मीरी लश्कर आतंकी मुजम्मिल भट्ट को देती है. देश की खुफिया एजेंसी गुजरात पुलिस को जानकारी देती है कि इसरत जहां नामक लश्करे तोयबा की आत्मघाती आतंकी अपने तीन साथियों के साथ गुजरात पहुंच चुकी है. उसका टारगेट नरेंद्र मोदी (तत्कालीन मुख्यमंत्री) है.

खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर गुजरात पुलिस जांच करती है और इन तीनों आत्मघाती हमलावरों को तलाश कर ढेर कर देती है. इनके एनकाउंटर की खबर सुनते ही लश्करे तोयबा खुद अपनी साइट पर लिखता है कि हमारे तीन बंदे शहीद हुए. लश्कर खुद कबूल कर चुका था कि ये तीनों उसके आतंकी हैं पर,,,,,यहीं से कांग्रेस का पाप शुरु होता है. केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार और उसके गृहमंत्री चिदंबरम ने इन तीनों को आतंकी नहीं मानते हुए और इसे मासूम मुस्लिमों का एनकाउंटर बताया और जांच की दिशा पलट दी. खुफिया रिपोर्ट को भी नकार दिया.

अमित शाह और नरेन्द्र मोदी सहित कई लोगों के खिलाफ चिदंबरम ने जांच बैठा दी. आतंकी इसरत के घर आर्थिक सहायता का चेक खुद कांग्रेस ने पहुंचाया. लंबी जांच चली. 10 वर्ष तक कांग्रेस सरकार ने आतंकियों को निर्दोष और गुजरात पुलिस सहित अन्य बेगुनाहों को जेल में रखा,प्रताड़ित किया. सिर्फ इसलिए कि किसी तरह मोदी शाह को जेल हो जाए. आतंकियों के एनकाउंटर करने के आरोप से लंबे संघर्ष के बाद सभी अदालत से निर्दोष साबित हुए पर कांग्रेस और चिदंबरम देश को यह घाव दे गए कि आतंकी को बचाने के लिए देश की सुरक्षा एजेंसियों तक को आपस मे लड़ा दिया और उन्हें झुठला दिया. इस तरह कांग्रेस ने देश की और उन्हें झुठला दिया.

इस तरह कांग्रेस ने अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए देश की सुरक्षा में भी सेंध लगाई. लेकिन कहावत है-

पुरुष बली नहीं होत हैं
समय होत बलवान
अमित शाह गृह मंत्री हैं
चिदंबरम को फोन बंद करके फरार होना पड़ा

याद कीजिए नौ वर्ष पहले अमित शाह जेल में थे और चिदंबरम गृहमंत्री थे. समय का पहिया घूम गया. आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम भी अपने घर पर मिलते. वे डरे हुए नहीं होते. उन्हें लापता नहीं होना पड़ता. वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है. संयोग देखिए. पी. चिदंबरम आज आरोपी हैं और देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है. कभी तस्वीर एकदम उलटी थी. तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे. तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर “भगवा आतंकवाद” की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे. अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं. मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है. यह अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम को रातोंरात लापता होना पड़ा.

यही अमित शाह के काम करने की शैली है. किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में इस तरह बाजी पलट दी जाएगी. उम्मीद तो यह भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का यह हस्र भी होगा. पर यही अमित शाह हैं. उनकी किताब में “रियायत” नाम का शब्द नही हैं. सही-गलत क्या है, यह फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं. आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश है.

चिदंबरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे. लेकिन आखिरकार किस्मत जवाब दे गई. उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं. एक भी आरोप हवाई नहीं हैं. विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं. आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं. यह सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे.

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है. परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं. अब ये आर-पार की लड़ाई है. आज चिदंबरम की बारी आई है. नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा. इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी नहीं हुआ.

नोट कर लीजिए कि भारत की राजनीति के ये पांच साल अगले 100 सालों तक राजनीति के पंडितों के लिए शोध का विषय रहेंगे.

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