Politalks.News/Bharat. मोदी 2.0 सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार बुधवार को हो गया है. इस दौरान सबसे ज्यादा चौंकाने वाली खबर जो रही वो थी रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर का इस्तीफा. चंद मिनिटों में सूचना प्रौद्योगिकी, कानून और टेलिकॉम जैसे अहम मंत्रालयों को संभालते आ रहे रविशंकर प्रसाद की कुर्सी छिन गई है. मोदी मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल से कुछ मिनटों पहले अचानक रविशंकर प्रसाद और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के इस्तीफे की खबर आई तो सब चौंक गए. अकसर अपने फैसलों से चौंकाने वाले पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल के पहले कैबिनेट विस्तार में भी सरप्राइज पैकेज दे दिया. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक अब रविशंकर प्रसाद के इस्तीफे के रहस्य की पड़ताल में जुट गए हैं.
आपको बता दें, रविशंकर प्रसाद का इस्तीफा ऐसे समय परहुआ है जब उनका अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर से विवाद चल रहा था. नए आईटी नियमों को लागू करने वाले रविशंकर प्रसाद ने दिग्गज सोशल मीडिया कंपनियों को भारत के नए कानून के मुताबिक चलने को मजबूर किया है. ऐसे समय पर अचानक रविशंकर प्रसाद को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाए जाने पर बहस छिड़ गई है. बहुत से लोग रविशंकर के इस्तीफे को ट्विटर विवाद से जोड़ रहे हैं.
जहां तक रविशंकर प्रसाद की बात है तो उन्हें भी यकीन नहीं होगा कि कानून, आईटी, कम्युनिकेशन जैसे बड़े मंत्रालय संभालते-संभालते वह अचानक से मंत्री पद से हाथ धो बैठेंगे. लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि जो मंत्री राजनीतिक और नीतिगत मामलों में लगातार सरकार का पक्ष रखने के लिए मीडिया के बीच उपस्थित होते रहते थे उन्हें क्यों हटा दिया गया. कहा जा रहा है कि ट्विटर से लड़ाई रविशंकर प्रसाद को भारी पड़ गयी.
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वहीं, रविशंकर प्रसाद के बारे में तर्क दिया जा रहा है कि वो ट्विटर के साथ जो पंगा लिया उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा. भारत सरकार अमेरिका को नाराज नहीं कर सकती है, यह आज के वैश्विक माहौल के लिहाज से ठीक नहीं रहेगा, खास कर वैसे हालात में जहां चीन के साथ आपकी ठना ठनी बनी हुई है. एक तरफ जब रविशंकर प्रसाद ट्विटर को धमका रहे थे तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री लगातार ट्विटर पर बने हुए थे और उनके ट्वीट आ रहे थे. एक ऐसा प्रधानमंत्री जो सोशल मीडिया पर सक्रिय रहता हो वो कभी यह पसंद नहीं करेगें कि उनका एक मंत्री उसी सोशल मीडिया के एक अंग को धमका रहा हो. रविशंकर प्रसाद के पास कानून मंत्रालय भी था. कहा जा रहा है कि उसके काम काज से भी प्रधानमंत्री खुश नहीं थे. मगर क्या यही सच है? यह सही है कि विदेशी सोशल मीडिया कंपनियों से जिस तरह रविशंकर प्रसाद भिड़े उससे भारत एक अजीब स्थिति में फंस गया क्योंकि एक ओर तो हम विदेशी कंपनियों को अपने यहां निवेश का न्यौता दे रहे हैं दूसरी ओर ऐसा संदेश भी गया कि हम उन्हें भारत के कानूनों से डरा भी रहे हैं. यह माना गया कि रविशंकर प्रसाद इस मुद्दे से और आसान तरीके से निबट सकते थे. रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से दुनिया की बड़ी तकनीक कंपनियों को चुनौती दी, उससे भारत एक अजीब स्थिति में फंस गया. जहां अमेरिका को भी कहना पड़ा कि भारत ग़लत कर रहा है. हमारा मानना है कि भारत का आशय किसी वैश्विक विवाद में फंसना नहीं था. इससे भी मोदी सरकार को बहुत दिक़्क़त हुई है.
आपको बता दें, रविशंकर प्रसाद के खिलाफ लेकिन सिर्फ यही मामला नहीं था. दूरसंचार मंत्री के रूप में ना तो वह बीएसएनएल का भला कर पाये ना ही प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘भारतनेट’ को तेजी से आगे बढ़ा पाये. यही नहीं जिस तरह से कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान केंद्र सरकार को कभी हाईकोर्ट तो कभी सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ती रही उससे भी यही संदेश गया कि कानून मंत्रालय सही तरीके से सरकार का पक्ष अदालतों में नहीं रखवा पा रहा है. इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि कानून मंत्री के तौर पर रविशंकर प्रसाद के रिश्ते न्यायिक तंत्र के साथ सहज नहीं रहे और बड़ी संख्या में जजों की रिक्तियों को भरने के लिए भी मंत्रालय पर्याप्त कदम नहीं उठा पाया था. साथ ही भारत लोगों की निजी जानकारियों को लेकर डेटा प्रोटेक्शन लॉ भी ला रहा है. इस पर संयुक्त संसदीय समिति रिपोर्ट तैयार कर रही है. लेकिन रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के पेश होने से पहले ही ट्वीट कर दिया था कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं.
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इन सबके बीच कुछ जानकार सूत्रों का कहना है कि उन्हें कैबिनेट से बाहर इसलिए कर दिया गया क्योंकि उनसे जस्टिस नुथलापति वेंकट रमना मामले में बड़ी चूक की थी. जस्टिस एनवी रमना भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बनाए गए हैं. 23 अप्रैल को बोबडे के सेवानिवृत्त होने के बाद रमना ने भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली. जस्टिस रमना 26 अगस्त, 2022 तक देश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे. रमना के चलते आने वाला एक साल सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती वाला होगा. और जस्टिस रमना आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेहद करीबी माने जाते हैं.
जानकार यह भी मानते हैं कि रविशंकर प्रसाद में एक तरह का गुरूर भी आ गया था. उनकी भाषा, उनका लहजा, उनके तेवर बहुतों को पसंद नहीं आ रहे थे, हालांकि पहली बार पटना से लोकसभा का चुनाव भी जीते मगर मंत्रिमंडल में अपनी जगह खो बैठे. अभी यह भी तय नहीं है कि मोदी शाह और संघ के पास रविशंकर के भविष्य को लेकर कोई योजना भी है या नहीं? संघ से जुड़े कुछ सुत्र वो भी दबी जबान में कह रहे हैं कि रविशंकर को लेकर बीजेपी और संघ में पिक्चर क्लीयर नहीं है और साथ ये भी कह रहे हैं कि रविशंकर को बिहार में बीजेपी का फेस बनाया जा सकता है. क्योंकि बीजेपी हमेशा से बिहार में नेतृत्व के चेहरे की तलाश में घूम रही है. एक सुशील मोदी बीजेपी के पास है जो हमेशा डिप्टी सीएम ही बन पाते हैं. उनके चेहरे पर चुनाव में उतरना बीजेपी भी मुनासिब नहीं समझ रहा है.
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वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के इस फैसले ने विपक्ष को वार करने का मौका दे दिया है. शिवसेना सांसद संजय राउत ने तंज कसते हुए कहा- ‘रविशंकर प्रसाद को हटा दिया गया. उन्होंने कहा- ‘रविशंकर प्रसाद हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को मास्टर स्ट्रोक बताते हुए शेखी बघारते थे. हालांकि, इस बार इस मास्टर स्ट्रोक ने उन पर पलटवार किया है.’ राउत ने कहा कि अन्य अनुभवी मंत्रियों जैसे प्रकाश जावडेकर और थावरचंद गहलोत को इस्तीफा देना पड़ा. नए चेहरों को लाया गया है. जाहिर है, उन्होंने नए मंत्रियों को उनकी योग्यता के आधार पर अपनी टीम में शामिल किया होगा.
वहीं, जनअधिकार पार्टी के नेता और पूर्व सांसद पप्पू यादव ने तो यहां तक लिखा कि रविशंकर प्रसाद को अमेरिका को खुश करने के लिए हटाया गया है. अधिकतर ट्विटर यूजर्स इसी तरह के सवाल उठा रहे हैं तो कुछ चुटकी लेते हुए उन्हें ट्विटर के देसी वर्जन कू पर यह विस्तार से बताने को कह रहे हैं कि आखिर उनकी कुर्सी क्यों चली गई.