NRC पर शुरु हुआ ट्वीट वॉर, अब प्रशांत किशोर भी उतरे सियासी दंगल में

आज की सोशल मीडिया की हलचल

Twitter war on NRC
Twitter war on NRC

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू करने की बात क्या कही, देशभर में केवल यही बहस शुरु हो गई. कई नेताओं ने बयान दिए, कईयों ने खिलाफत की. अब ये मुद्दा राजनीति के पटल से उछलकर सोशल मीडिया पर आ पहुंचा है. यहां नेताओं की बहस हो रही है, बयान दिए जा रहे हैं. इस बयानबाजी की जंग में अब ममता बनर्जी के रणनीतिकार और विशेष सलाहकार प्रशांत किशोर भी उतर आए हैं.

प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया पर एक ट्वीट पोस्ट करते हुए लिखा, ’15 से अधिक राज्यों में गैर भाजपाई मुख्यमंत्री हैं और ये ऐसे राज्य हैं जहां देश की 55 फीसदी से अधिक आबादी है. आश्चर्य यह हे कि उनमें से कितने लोगों के से एनआसी पर विमर्श किया गया और कितने राज्य इसे लागू करने को तैयार हैं.

ऐसा नहीं है कि प्रशांत किशोर ने पहली बार NRC पर सवाल उठाया है. इससे पहले भी प्रशांत ने एक ट्वीट कर कहा था कि NRC ने अपने देश में लाखों लोगों को विदेशियों के रूप में छोड़ दिया!

उनके इस ट्वीट और सोच को सुनकर गिरिराज सिंह कहां चुप रहने वाले हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पलटवार करते हुए कहा, ‘अमित शाह जब बोलते हैं तो कई लोगों को बुरा लगता है. कोई कहता है कि हम अपने राज्य में इसे लागू नहीं होने देंगे. इसमें सहमति और आम सहमति का क्या सवाल है? एनआरसी के माध्यम से तो उन्हें निकाला जाएगा जो अवैध हैं.

केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार, हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को नागरिकता मिलनी चाहिए, इसीलिए नागरिकता संशोधन विधेयक की आवश्यकता है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाले इन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल सके.’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘एक देश एक कानून और एक नागरिकता, यही है हिंदुस्तान की पहचान. NRC है हिंदुस्तान की मांग’

इस मसले पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपनी राय रखी. सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘गृहमंत्री अमित शाह का NRC फॉर्मूला असम में विफल रहा. यहां तक ​​कि राज्य भाजपा इकाई ने भी इसके खिलाफ विद्रोह किया है. असम में एनआरसी के कार्यान्वयन की हर पार्टी आलोचना कर रही है. एनडीए ने इस पर करोड़ों खर्च किए और इसका परिणाम असफल रहा’.

वहीं सोशल मीडिया पर #BoycottNRC हैशटैग जोरो शोरों से ट्रेंडिंग कर रहा है. इस हैशटैग से सोशल मीडिया के यूजर्स ‘एनआरसी क्यों लागू नहीं होना चाहिए’ पर अपनी राय ट्वीटर पर पोस्ट कर रहे हैं.

एक सोशल मीडिया यूजर ने पोस्ट किया, ‘जिस गरीब के पास खाने के लिए दो वक़्त की रोटी नहीं होती है, वो अपनी कागजात कहां से खोजेंगे? एनआरसी में सिर्फ असम में हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए गए 5 साल का वक्त लगा लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ’.

वहीं एक अन्य यूजर ने कहा, ‘#BoycottNRC के प्रति देशव्यापी जागरूकता होनी चाहिए क्योंकि ये एक तमाशा है’.

एक राजनीतिक पार्टी के ट्विटर हैंडल से पोस्ट किया गया, ‘एनआरसी अभ्यास की ऐसी आश्चर्यजनक सफलता है कि असम सरकार ने केंद्र से हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अस्वीकार करने का अनुरोध किया. हमें विभाजन से ठीक होने में लंबा समय लगा. अपने विभाजनकारी राजनीति के नाम पर हमारे देश को अलग मत करो’.

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