‘दर्द’ छुपा कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को देना पड़ा इस्तीफा, कहा- कारण जानने के लिए जाना होगा दिल्ली

इस्तीफे के बाद 8 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई बार अपना 'दर्द' भी छुपाते नजर आए त्रिवेंद्र सिंह रावत, बुधवार को 10 बजे देहरादून स्थित भाजपा कार्यालय पर विधायक दल की बैठक में होगा नए मुख्यमंत्री के नाम का एलान, सूत्रों के अनुसार राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी और धन सिंह रावत का नाम सबसे आगे

त्रिवेंद्र सिंह रावत को देना पड़ा इस्तीफा
त्रिवेंद्र सिंह रावत को देना पड़ा इस्तीफा

Politalks.News/Uttrakhand. तीन दिनों से उत्तराखंड सरकार में जारी सियासी घमासान का आखिरकार मंगलवार दोपहर बाद 4:10 पर एकबारगी पटाक्षेप हो गया, जिसके चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है. सुबह से ही इशारे मिलने लगे थे कि त्रिवेंद्र सिंह रावत आज 2 बजे बाद कभी भी राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मिलकर इस्तीफा सौंप देंगे. जिसकी खबर सबसे पहले आपके विश्वसनीय पोर्टल पॉलिटॉक्स ने कई बड़े चैनल्स से पहले आप तक पहुंचाई. वहीं राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की. 8 मिनट की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में त्रिवेंद्र सिंह रावत कई बार अपना ‘दर्द‘ भी छुपाते रहे.

पीसी के दौरान पत्रकारों ने त्रिवेंद्र रावत से पूछा कि आपको इस्तीफा देने के कारण क्या रहे ? तब त्रिवेंद्र सिंह ने कहा कि इसके लिए आपको दिल्ली जाना होगा‘. खैर अब त्रिवेंद्र सिंह रावत ‘पूर्व‘ मुख्यमंत्री हो चुके हैं. अब उत्तराखंड नए मुख्यमंत्री की तलाश में है. अब जो संकेत मिल रहे हैं उसमें सबसे बड़ा नाम धन सिंह रावत और राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी का है. हालांकि कल यानी बुधवार को 10 बजे देहरादून स्थित भाजपा कार्यालय पर विधायक दल की बैठक भी बुलाई गई है. इस बैठक में नए मुख्यमंत्री के नाम का एलान होगा. वहीं दूसरी ओर त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा देने से पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत कहते फिर रहे थे कि पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन त्रिवेंद्र के इस्तीफा देने के बाद वह मीडिया के सामने नजर नहीं आए.

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आपको बता दें कि एक दिन पहले सोमवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजधानी दिल्ली पहुंचने पर उनके इस्तीफे की ‘उल्टी गिनती‘ शुरू हो गई थी. त्रिवेंद्र सिंह ने दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से घर जाकर मुलाकात की थी. इससे पहले उत्तराखंड के सियासी घटनाक्रम को लेकर गृहमंत्री अमित शाह और नड्डा की भी आपस में मुलाकात हुई थी. अमित शाह और नड्डा की मुलाकात में ही उत्तराखंड का ‘नया नेतृत्व‘ भी तय हो चुका था. बता दें कि सोमवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत के दिल्ली जाने के बाद उत्तराखंड की सियासत में यह सवाल गरमाता रहा कि दिल्ली में क्या हुआ? सियासी दलों के दफ्तरों से लेकर राज्य सचिवालय के गलियारों में हर दिल्ली की खबर जानने को बेताब था. सोमवार देर रात तक अटकलों का बाजार गरमाता रहा.

तीन दिन से जारी सियासी उठापटक के बाद की दिल्ली में लिखी गई पटकथा

तीन दिनों से प्रदेश की राजधानी देहरादून से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक सियासी तापमान गरमाया हुआ था. भाजपा नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं और तमाम ब्यूरोक्रेट्स में अटकलों का दौर जारी रहा, सभी की जुबान पर एक ही सवाल था, क्या उन्हें राज्य में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव से पहले नया मुख्यमंत्री मिलेगा? निगाहें दिल्ली दरबार के फैसले पर आकर टिक गई. आइए अब इस घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से आगे बढ़ाते हुए समझते हैं कि राज्य में मुख्यमंत्री के नेतृत्व परिवर्तन का जारी सियासी उथल-पुथल के बीच ऊंट किस करवट बैठेगा.

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तारीख थी 6 मार्च, दिन शनिवार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अचानक सियासत के अनुभवी और एक्सपर्ट पंडितों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व परिवर्तन का बहुत जोर से ‘शंख‘ बजाया था. जब इस शंख की आवाज उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के पास पहुंची तब उन्होंने मीडिया के सामने आकर पूरे आत्मविश्वास और जोरदार आवाज में कहा कि उत्तराखंड सरकार में ‘सब कुछ ठीक-ठाक है’. लेकिन बंशीधर भगत अंदर ही अंदर सच्चाई जान रहे थे लेकिन उसे बाहर लाना नहीं चाहते थे.

दूसरी बात यह रही कि शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के भेजे गए दो पर्यवेक्षक, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और उत्तराखंड प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम का अचानक देहरादून आना नेतृत्व परिवर्तन को लेकर काफी कुछ बता गया था. उसके एक दिन बाद 7 मार्च रविवार को पूरे दिन अटकलों का दौर जारी रहा. दूसरी ओर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सामान्य तरीके से अपना कामकाज निपटाते रहे. एक बार फिर सोमवार सुबह से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में तेजी के साथ सन्नाटा पसरने लगा.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर कुछ कार्यक्रमों में जाने की तैयारी कर रहे थे उसके बाद ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण भी जाना था, कि तभी एक बार फिर दिल्ली हाईकमान से अचानक मुख्यमंत्री का बुलावा आ जाता है. दिल्ली से आए फरमान के बाद आनन-फानन में 11 बजे सीएम रावत प्लेन से राजधानी दिल्ली के लिए उड़ जाते हैं. मुख्यमंत्री के दिल्ली रवाना होने के बाद एक बार फिर ‘भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत कहते फिर रहे थे कि पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है‘ ? बंशीधर ने कहा कि मुख्यमंत्री सामान्य तौर पर दिल्ली गए है. पार्टी में कोई कलह नहीं है. वर्ष 2022 का विधान सभा चुनाव भी त्रिवेंद्र के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. लेकिन राजधानी दिल्ली में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोधी खेमा मजबूत नजर आया. मालूम हो कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने की मांग राज्य में पार्टी का एक धड़ा काफी लंबे समय से कर रहा था, और माना जा रहा है कि इसी को लेकर दो पर्यवेक्षकों को उत्तराखंड भेजा गया था.

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पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बाद भाजपा हाईकमान ने लिया फैसला

भाजपा के पर्यवेक्षक के तौर पर देहरादून गए छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और उत्तराखंड के प्रभारी और पार्टी महासचिव दुष्यंत गौतम ने अपनी रिपोर्ट बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को सोमवार सुबह सौंप दी. बता दें कि पिछलेेेे शनिवार को रमन सिंह ने देहरादून के बीजापुर गेस्ट हाउस में कोर ग्रुप की बैठक में मौजूद हर सदस्य से अलग-अलग बातचीत की. बाद में रमन सिंह मुख्यमंत्री के सरकारी आवास भी गए जहां पार्टी के 40 विधायक मौजूद थे. कोर ग्रुप की बैठक के बाद सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय भी गए थे. इस दौरान दोनों पर्यवेक्षकों ने केंद्रीय शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से भी अलग से मुलाकात की थी. इस तरह तेजी से घटे घटनाक्रम ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को हवा दे दी.

यही नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोधी खेमे में कई मंत्री और विधायक पिछले दो दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं. उत्तराखंड के चार मंत्री और दर्जन भर विधायक दिल्ली में मौजूद थे. त्रिवेंद्र सरकार के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, पूर्व सांसद बलराज पासी, विधायक खजान दास, हरबंस कपूर, हरबजन सिंह चीमा आदि नेता भी दिल्ली में मौजूद थे. सोमवार से चर्चा शुरू हो गई कि राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी में से किसी एक को राज्य की बागडोर सौंपी जा सकती है. बता दें कि पिछले कुछ समय से अनिल बलूनी गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफी करीबी माने जाते हैं. तीन महीने पहले जब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने दिल्ली में अपना सरकारी आवास खाली किया था तब भाजपा हाईकमान ने प्रियंका का आवास राज्यसभा सांसद बलूनी को आवंटित किया था.

उत्तराखंड में सीएम के नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कांग्रेस मे छाई बहार

राजधानी दिल्ली में उत्तराखंड के सीएम को बदलने की रूपरेखा लिखी जा रही है. उत्तराखंड में अगले साल के शुरुआत में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं, जिसे लेकर विपक्ष जोरदार तरीके से तैयारी में जुट गया है. प्रदेश सरकार में मचे सियासी घमासान के बीच राज्य की कांग्रेस में बाहर छा गई है. कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि भाजपा हाईकमान कांग्रेस शासित राज्य सरकारों में फूट डालकर अपनी सरकार बनाती है, अब उसको स्वयं उत्तराखंड में वैसे ही हालातों का सामना करना पड़ रहा है. उत्तराखंड में चल रहे सियासी भूचाल के बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ट्वीट कर तंज करते हुए लिखा कि ‘उत्तराखंड भाजपा में सत्ता की खुली लड़ाई, चिंताजनक स्थिति बयान कर रही है. कुछ उजाड़ू बल्द जिनको भाजपा पैसारूपी घास दिखाकर हमारे घर से चुराकर ले गई, उसका आनंद अब भाजपा को भी आ रहा है. हरीश रावत ने लिखा कि भाजपा ने जो बोया, उसको काटना पड़ेगाा‘. वहीं उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि बजट सत्र को बीच में छोड़ने से साबित हो रहा है कि भाजपा में जबरदस्त अंदरूनी घमासान है. प्रीतम सिंह ने कहा कि विपक्ष ने सदन के भीतर महंगाई, बेरोजगारी, किसान, मातृशक्ति पर लाठीचार्ज, आपदा प्रबंधन, गन्ना किसान सहित सभी जनहित के मुद्दों पर सरकार को घेरा. सरकार का सदन के अंदर प्रदर्शन देखकर ही कांग्रेस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि अचानक त्रिवेंद्र सिंह रावत का राजधानी गैरसैंण से आना भाजपा सरकार में सियासी भूचाल की पुष्टि हो गई थी. प्रीतम ने कहा कि चुनाव के ऐनमौके पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर दूसरे को मुख्यमंत्री बनाना बताता है कि राज्य की भाजपा सरकार ने देवभूमि के लोगों को चार सालों में निराश किया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार के पास विधायकों के क्षेत्र की समस्याएंं सुनने का वक्त नहीं था, वह आपसी कलह निपटाने में पूरे चार साल व्यतीत कर गई, भाजपा का ध्येय मात्र सत्ता प्राप्ति ही रहता है.

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