आमतौर पर चुप रहने वाले एक सिख प्रधानमंत्री ने देश को उस समय अपने दिमाग और अनुभव का परिचय दिया जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में थी. करोड़ों लोगों के अरबों रुपये डूब चुके थे. बड़े-बड़े अरबपति-खरबपति सड़कों पर आ गए थे. विश्व बैंक तक कंगाल हो गई थी. उस समय भारत जैसे बड़े देश में इस कंगाली का असर नाम मात्र का रहा. ऐसी दूरदर्शी सोच रखने वाले इंसान का नाम है डॉ.मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) जो दो बार यूपीए सरकार में देश के प्रधानमंत्री बने. उनके बाद नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद संभाला और 2019 में लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने.

वक्त था साल 2008 जब दुनिया भर में आर्थिक तबाही मची थी. मेरिल लिंच और लीमैन ब्रदर्स जैसे दिग्गज़ इस तूफान में ढह रहे थे. हर कोने से शेयर बाज़ारों के गर्त छूने की ख़बरें आ रही थीं. भारत में दलाल पथ पर निवेशकों के लाखों-करोड़ों रुपये हर रोज़ गायब हो रहे थे. पिंक स्लिप थमाकर छंटनियां हो रही थीं और नई नौकरियां का अकाल पड़ता दिख रहा था. उस समय एकबारगी तो लगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लंबे राजनीति​क तजुर्बे और वित्तमंत्री का अनुभव इस्तेमाल करते हुए हालात संभालने शुरू किए. एक अरब से ज़्यादा आबादी का पहला बड़ा फ़ायदा तब दिखा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और पी.चिदंबरम की नीतियों ने घरेलू उपभोग ने कमज़ोर अर्थतंत्र को अपने कंधे पर रखकर संभाला. जल्दी ही इसका असर दिखना शुरू हुआ और ग्रामीण सहित शहरी इलाकों में बिक्री बनी रही. हालांकि बड़े कारोबारों पर कुछ असर ज़रूर हुआ, लेकिन छोटे उद्योगों पर वो प्रभाव नहीं दिखा. इस आर्थिक संकट से निपटने वाला भारत पहला देश था.

डॉ.मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh)

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर, 1932 को हुआ. वे अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं. डॉ.मनमोहन सिंह 2004 से 2014 (10 साल) के बीच लगातार दो बार देश के प्रधानमंत्री पद पर रहे. सुलझे हुए अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में वित्तमंत्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों का श्रेय भी जाता है. लोकसभा चुनाव-2009 में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री बने जिनको 5 वर्षों वर्षों का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस लिस्ट में तीसरे पायदान पर हैं.

मनमोहन सिंह का जन्म पंजाब प्रान्त में एक गरीब परिवार में हुआ जो भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया. उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था. अपने जीवन के शुरुआती 12 सालों तक वह गांव में ही रहे. गांव में न बिजली थी, न स्कूल था, न अस्पताल था और न ही पाइपलाइन से आपूर्ति किया जानेवाला पानी ही था. बंटवारे के बाद उनका परिवार हिंदूस्तान आ गया. पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की. बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए और पीएचडी की. उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डीफिल भी किया.

डॉ.मनमोहन सिंह की पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है. उन्होंने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की. वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे. वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार और जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे. 1971 में डॉ॰ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये. 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया. इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे. भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे 1991 से 1996 के बीच पी.वी.नरसिंहराव देश के वित्तमंत्री रहे.

इस समय तक डॉ. मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे, लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है. इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया. मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया. डॉ. मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया. उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है. डॉ.मनमोहन सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को पद्म विभूषण के अतिरिक्त कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा जा चुका है. उन्हें 2002 में सर्वश्रेष्ठ सांसद, 1995 में इण्डियन साइंस कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, 1993 और 1994 में एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेन्स मिनिस्टर ऑफ द ईयर, 1994 में यूरो मनी अवार्ड फॉर द फाइनेन्स मिनिस्टर आफ़ द ईयर, 1956 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. अपने राजनैतिक जीवन में वे 1991 में राज्य सभा के सांसद तो रहे ही, 1998 तथा 2004 में संसद में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं.

बताते चलें, डॉ.मनमोहन सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में एकमात्र चुनाव दक्षिण दिल्ली से लड़ा. 1999 के आम चुनाव में डॉ.मनमोहन सिंह कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण दिल्ली से चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में मल्होत्रा कुल पड़े मतों में 52.25 प्रतिशत मत हासिल कर विजयी हुए थे जबकि सिंह को 46.25 प्रतिशत वोट ही मिले.

वर्तमान में डॉ.मनमोहन सिंह राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं. इससे पहले वे असम से 5 बार राज्यसभा निर्वाचित हो चुके हैं.

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