Meghalay Assembly Election. मेघालय में चुनावी प्रचार अंतिम चरण में चल रहा है. इसी के चलते सत्ताधारी नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी एवं वॉइस ऑफ द पीपल पार्टी सहित अन्य स्थानीय राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं को आकर्षित करने और जीत हासिल करने के लिए पूरा दमखम लगा रही हैं. प्रदेश में केवल 13 दिनों का वक्त शेष है. 60 सदस्यीय वाली मेघालय विधानसभा में मतदान 27 फरवरी को और चुनावी परिणाम 2 मार्च को आना है. फिलहाल यहां एनपीपी की सत्ता है और कोनराड संगमा के हाथों में सत्ता की बागड़ोर है. यहां सबसे रोमांचक राजनीतिक सफर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रहा है, जो इस बार शून्य जनाधार के बावजूद पूरा दमखम लगा रही है.
हिमाचल की तरह मेघालय में भी कांग्रेस की कमान स्थानीय नेताओं के हाथों में ही है, जो बड़े मंच और रैलियों की जगह घर घर प्रचार की ढगर पर चलते हुए मतदाताओं को आकर्षित करने के हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. मेघालय की 60 विस चुनाव के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के 375 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं लेकिन कम जनाधार के बावजूद कांग्रेस पर सभी दलों एवं राजनीतिक विशेषज्ञों की नजरें गढ़ी हुई है.
इसकी वजह है पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के पिछले विस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन. 2018 में पिछले विधानसभा चुनाव में यहां 59 सीटों पर चुनाव हुए थे. तब कांग्रेस यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत हासिल हुई है. एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, जिसके खाते में 19 सीटें थी. वहीं बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि यूडीपी को 6 सीटें हासिल हुईं थी. एनपीपी, बीजेपी एवं अन्य पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई और कांग्रेस सत्ता से दूर रह गई.
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एक समय कांग्रेस ने लगभग सभी पूर्वोत्तर राज्यों पर शासन किया था, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी अब मेघालय में कमजोर नजर आ रही है. कारण है- पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा, पूर्व स्पीकर चार्ल्स पिंग्रोप और 10 अन्य कांग्रेस विधायक 2021 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस के तीन विधायक हाल ही में एनपीपी, दो यूडीपी में शामिल हुए हैं और इन्हीं के टिकट पर चुनावी मैदान में है. इन सभी विधायकों को कांग्रेस ने एनपीपी नेतृत्व, विशेष रूप से मुख्यमंत्री और एनपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोनराड के संगमा के साथ मेलजोल के लिए निलंबित कर दिया था. अन्य विधायक भी अन्य पार्टियों की शरण में जा चुके हैं. कुल मिलाकर पिछले विस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी कांग्रेस के मौजूदा विधायकों की संख्या इस समय शून्य है.
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इस समय मेघालय में कांग्रेस के साथ साथ सत्ताधारी नेशनल पीपुल्स पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, वॉइस ऑफ द पीपल पार्टी और अन्य दल राजनीतिक दल मौजूद हैं. इस बार चुनावी दंगल में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, वंशवादी राजनीति, मेघालय-असम सीमा विवाद और अवैध खनन के मुद्दे छाए हुए हैं. बीजेपी और एनपीपी चुनावी मैदान में अलग हैं लेकिन बड़े मंच पर चुनावी रैलियां कर रहे हैं. इधर, अर्श से फर्श का सफर तय करने वाली कांग्रेस साइलेंट मोड में चुनावी प्रचार कर रही है. उनका मुख्य फोकस मतदाता से सीधे संपर्क साधना है. हालांकि कांग्रेस की राह एनपीपी और तृणमूल के होने से काफी मुश्किल है लेकिन पार्टी स्थानीय एवं सामाजिक सरोकार वाले चेहरों के दम पर पिछला प्रदर्शन दोहराने की जीतोड़ कोशिश कर रही है.
राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा में गारो पर्वतीय क्षेत्र में सबसे अधिक 24 विधानसभा सीटें हैं. यहां कांग्रेस जमकर पसीना बहा रही है. कांग्रेस इस बार के चुनाव को ‘वाटरशेड चुनाव’ बता रही है. कांग्रेस ने दावा किया है कि दंगल में उतारे गए 60 में से 47 उम्मीदवारों की उम्र 45 वर्ष से कम है, जो युवाओं को आगे लाने की दिशा में एक कदम है. इसी क्रम में 10 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उतारा गया है, जो अन्य पार्टियों के मुकाबले सबसे अधिक है. चूंकि मेघालय में महिलाओं का वर्चस्व अधिक है लेकिन राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है. ऐसे में कांग्रेस इस मुद्दे को भी भुनाना चाह रही है.
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हालांकि सत्तारूढ़ मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस के सभी सहयोगी पार्टनर इस चुनाव में अलग अलग स्वतंत्र लड़ रहे हैं. लेकिन पिछली बार की फिल्म को देखें तो इन सभी को एक पाले में आने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. यही वजह है कि कांग्रेस अपने चुनावी प्रचार में इन सभी पार्टियों को बीजेपी की पार्टी-ए, बी और सी बता रही है. कांग्रेस का जनाधार भले ही इस समय मेघालय में शून्य है, लेकिन जिस तरह से स्थानीय युवा नेताओं को पार्टी ने टिकट थमाया है, उससे कांग्रेस के प्रदर्शन पर नजरें सभी की गढ़ी हुई है.