क्या सच में कर्नाटक में अगला विस चुनाव हार रही है बीजेपी? कितनी सच्चाई है शरद पवार के दावे में..

बीजेपी से मोह भंग और भारत जोड़ो यात्रा से जनता के जुड़ाव का भी दावा कर रहे हैं एनसीपी चीफ शरद पवार, पिछली बार नाटकीय ढंग से पहले बीजेपी, फिर जेडीएस+कांग्रेस और फिर से बनी थी बीजेपी की सरकार, पिछले चार साल में तीन बार सरकार और चार बार बदले हैं सीएम

‘कर्नाटक में बीजेपी का सूपड़ा साफ़’
‘कर्नाटक में बीजेपी का सूपड़ा साफ़’

Sharad Pawar on Karnataka BJP. कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीति दलों ने अपनी अपनी रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया है. फिलहाल यहां बीजेपी की सत्ता काबिज है और बसवराज बोम्मई सरकार के मुखिया हैं. हाल में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार ने दावा किया कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की सत्ता बरकरार नहीं रहेगी. उन्होंने ये भी कहा कि अब लोग धार्मिक मुद्दों पर वोट नहीं करेंगे. चूंकि कर्नाटक में ये चुनावी साल है, ऐसे में एनसीपी अध्यक्ष का ये दावा काफी उथल पुथल मचा सकता है.
शरद पवार का यह दावा इसलिए भी काफी मायने रखता है क्योंकि उन्हें राजनीति के काफी ऊंचा दर्जा प्राप्त है और परस्पर विरोधी दलों को साथ लाकर सरकार बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.

जैसा कि शरद पवार ने बताया कि हम विपक्षी दलों को एकजुट करने और एक संयुक्त मोर्चा तैयार करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, लेकिन सभी राज्यों में अलगअलग स्थानीय मुद्दे हैं. एनसीपी चीफ के अनुसार, जनता का बीजेपी और उनकी धार्मिक नीतियों से मोह भंग हो चुका है. पवार ने एक जनमत सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि बीजेपी के खिलाफ जनता ने अपना मन बना लिया है. ऐसे में अगले चुनाव में उन्हें (बीजेपी) बड़ा झटका लग सकता है. लोग अब धार्मिक मुद्दों पर मतदान नहीं करेंगे. जनता को धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है, जो अब नहीं चलेगा.

पवार ने भारत जोड़ो यात्रा का जिक्र भी करते हुए कहा कि इस यात्रा ने जनता का समर्थन हासिल कर लिया है और इसे मिल रही प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देशव्यापी यात्रा के दम पर राहुल गांधी की भ्रामक छवि को सुधारा है. पवार ने सरकार पर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने और लोगों के अधिकारों को कुचलने का आरोप भी लगाया.

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अब बात ये आती है कि आखिर उन्होंने कर्नाटक के बारे में ऐसा क्यों कहा, जबकि महाराष्ट्र में पिछले साल ही सरकार का तख्ता पलटा है. दरअसल, जो महाराष्ट्र में हुआ, ऐसा ही कुछ कर्नाटक में ही हो चुका है. कर्नाटक में भी 2018 में विधानसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र की तरह ही कई नाटकीय मोड़ आए और बाद में बीजेपी ने कांग्रेस बागियों के इस्तीफों के बाद उन्हीं को टिकट देकर अपनी सरकार बना ली. हालांकि महाराष्ट्र में बागियों के समर्थन से सरकार बनाई गई है.

चार साल में बदली 3 बार सरकारें और 4 मुख्यमंत्री

224 विधानसभा सदस्यों वाले कर्नाटक की राजनीति में एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि यहां 2018 से लेकर अब तक

तीन बार सरकार बदली है और 4 बार अलग अलग मुख्यमंत्री बने हैं. एक साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को कर्नाटक का नया सीएम बनाया गया. मजे की बात ये है कि 2018 के विस चुनावों में अल्पमत में होने के बावजूद बीएस येदियुरप्पा ने ही सबसे पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि उनका कार्यकाल केवल 6 दिन का रहा और सरकार गिर गई. इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. सीटें अधिक होने के बावजूद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री सीट जेडीएस को दी और एचडी कुमारास्वामी कर्नाटक के नए सीएम बने.

करीब एक साल के बाद जेडीएस के 13 कांग्रेस के तीन विधायकों के इस्तीफे देकर बीजेपी में शामिल होने की वजह से सरकार फिर से गिर गई और येदियुरप्पा एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए. बाद में बीजेपी ने देशभर में एक रणनीति पर काम करते हुए येदियुरप्पा को हटा बोम्मई को कर्नाटक का नया सीएम बनाया. कर्नाटक में जिस तरह सरकार गठन में नाटकीय मोड़ आए, जनता उससे भली भांति परिचित है.

दो बार को छोड़ कोई सीएम पूरा नहीं कर पाया 5 साल का कार्यकाल

कर्नाटक की राजनीति में एक बात और मजेदार है कि यहां डी.देवराज (1972-77) और सिद्धारमैया (1913-18) को कोई भी लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री नहीं रहा है. चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले बीएस येदियुरप्पा और दो बार सीएम पद की शपथ लेने वाले एचडी कुमारास्वामी भी अपना कार्यकाल तीन वर्ष से ज्यादा नहीं खींच पाए. कुमारास्वामी ने अधिकतम डेढ़ साल सीएम का कार्यभार संभाला है जबकि युदियुरप्पा तो दो बार 6 और 7 दिन मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं. पिछले 50 सालों में यहां 5 बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी ने 104 और जेडीएस ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया. कांग्रेस और जेडीएस ने अलग अलग चुनाव लड़ा था. पिछले चुनाव में 122 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 80 सीटों पर सिमट गई. सबसे बड़े राजनीतिक दल होने के नाते येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन बहुमत साबित कर पाने के चलते 6 दिन में सरकार गिर गई. उसके बाद, अपने से आधी से भी कम सीटें आने के बावजूद कांग्रेस ने जेडीएस के एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री पद देकर बीजेपी के मनसूबों पर पानी फेर दिया. हालांकि बाद में नाटकीय घटनाक्रम के बीच करीब डेढ़ साल बाद फिर से बीजेपी की सरकार बन गई और येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के सीएम बन बैठे. फिलहाल बसवराज बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.

इस बार बीजेपी यहां सभी तरह के राजनीतिक पैतरे अपना रही है. यहां तक की धूर विरोधी जेडीएस से भी संपर्क साधा जा रहा है ताकि कांग्रेस की वापसी को हर तरह से टाला जा सके. हालांकि कांग्रेस की तरह बीजेपी मुख्यमंत्री सीट से समझौता कर ले, इसकी संभावना कम ही दिखती है लेकिन इससे कम में कुमारास्वामी तैयार भी नहीं होंगे, ऐसा होना भी निश्चत है. ऐसे में जेडीएस और कांग्रेस का साथ आना पक्का दिख रहा है. अगर दोनों पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें (जिसकी संभावना अधिक है), तो बीजेपी की सत्ता वापसी निश्चित तौर पर मुश्किल होगी.

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