सिद्धू ने हटाया कांग्रेस का नाम, फिर से साधा कैप्टन पर निशाना, गुरु की अगली चाल पर सबकी नजर

नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने टि्वटर अकाउंट प्रोफाइल से हटाया कांग्रेस का नाम, कोटकपूरा और बहिबल कलां फायरिंग मामले में एसआईटी की जांच रद्द हो जाने के मामले में नाम लिए बिना बोला कैप्टन पर सियासी हमला, क्यों अपनों के निशाने पर आ गए सिद्धू, कांग्रेस ने नहीं चाहती कैप्टन और सिद्धू का छुटे साथ, इस बीच अब हर और से एक ही सवाल है क्या नई पार्टी बनाने की तैयारी में हैं गुरु?

क्या नई पार्टी बनाने की तैयारी में हैं गुरु?
क्या नई पार्टी बनाने की तैयारी में हैं गुरु?

Politaliks.News/Punjab. कांग्रेस के स्टार प्रचारक और बीजेपी से कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू फिर से चर्चाओं में हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ सुलह के सारे प्रयास विफल हो जाने के बाद सार्वजनिक मंचों पर लौटे विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब सरकार पर अप्रत्यक्ष सियासी हमले तेज कर दिए हैं. बुधवार को सिद्धू ने अपने टि्वटर अकाउंट प्रोफाइल से कांग्रेस का नाम हटाया और उसके बाद कोटकपूरा, बहिबल कलां फायरिंग मामले में एसआईटी की जांच रद्द हो जाने के मामले में नाम लिए बिना कैप्टन पर सियासी हमला बोला.

सिद्धू ने ट्वीट किया- हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे. सिद्धू ने आगे लिखा कि यह सरकार या पार्टी की नाकामी नहीं है बल्कि एक आदमी है, जिसने दोषियों से हाथ मिला रखा है. पिछले दो हफ्तों में सिद्धू ने न केवल सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृहनगर पटियाला में दो प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर उनकी जमकर आलोचना की. बल्कि ट्विटर, फेसबुक और अपने यूट्यूब चैनल पर वीडियो भी अपलोड किया.

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बता दें कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और 2015 में कोटकपूरा में निहत्थे सिखों पर पुलिस फायरिंग हुई थी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बेअदबी मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी द्वारा की गई जांच को खारिज कर दिया और एसआईटी को भी नए सिरे के गठित करने के आदेश जारी किए. पंजाब में 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के गठन के साथ ही बेअदबी और कोटकपुरा फायरिंग मामलों की जांच की मांग उठने लगी थी. कांग्रेस ने भी चुनाव प्रचार के दौरान सूबे के लोगों से यह जांच कराने का वादा किया था. कैप्टन सरकार ने आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया, जिसने जांच शुरू करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, तत्कालीन पुलिस प्रमुख सुमेध सैनी, फायरिंग में शामिल रहे पुलिस अधिकारियों को कठघरे में ला दिया.

इसके तुरंत बाद यह पूरा मामला राजनीतिक रंग भी लेने लगा और पंजाब भर में बादल परिवार और शिरोमणि अकाली दल को उक्त कांड के लिए दोषी के रूप में देखा जाने लगा. हालात यहां तक पहुंचे कि सुखबीर बादल, हरसिमरत कौर बादल समेत अकाली दल के शीर्ष नेताओं को सार्वजनिक स्थलों पर सिख समुदाय के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा.
अब हाईकोर्ट के फैसले ने बादल परिवार को तो राहत दी ही है, साथ ही सिद्धू को कैप्टन सरकार पर वार करने का मौका दे दिया.

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सिद्धू के निशाने पर ‘कैप्टन’
नवजोत सिद्धू की हाल ही बढ़ी सक्रियता के कई मायने निकाले जा रहे हैं. वह अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीधे निशाने पर न लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कैप्टन सरकार की नाकामियों को उजागर करने का कोई मौका नहीं चूक रहे. पहले उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कैप्टन सरकार पर सवाल खड़े किए और अब कोटकपूरा मामले में एसआईटी की रिपोर्ट रद्द होने के बारे में तीखा हमला किया है.

ताजा ट्वीट से प्रतीत हो रहा है कि पंजाब कांग्रेस में हाशिए पर जा चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू भी राजनीति के कूटनीतिक तिकड़म जान गए हैं. 2017 के चुनाव और उसके बाद 2019 तक कैप्टन से सीधे टकराते रहे सिद्धू करीब पौने दो साल बाद सार्वजनिक मंचों पर मुखर तो होने लगे हैं, लेकिन इस बार वे अपने विरोधियों और प्रतिद्वंद्वियों का नाम लिए बिना हमले कर रहे हैं.

‘अपनों’ ने की सिद्धू की शिकायत
नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस और सरकार के खिलाफ मुखर होने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराजगी है. सिद्धू के अपने साथियों ने ही कांग्रेस आलाकमान को इसकी शिकायत की है.सांसद रवनीत सिंह बिट्टू, विधायक राजकुमार वेरका ने सिद्धू के खिलाफ मोर्चा खोला है. बिट्टा ने कहा है कि अपनी सरकार के खिलाफ बयान देना पार्टी और सरकार के लिए हानिकारक है.

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पंजाब में ‘कद और पद’ की लड़ाई
नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर सिंह के सामने मनमाफिक ‘पद और कद’ नहीं मिला. अमरिंदर सिंह लगातार सिद्धू के पर कतरते रहे. पंजाब कांग्रेस के आला नेताओं से सिद्धू की कभी बनती नहीं दिखी. कांग्रेस हाईकमान के साथ सिद्धू के रिश्ते कुछ अलग ही कहानी कहते हैं. कांग्रेस आलाकमान किसी भी हाल में सिद्धू को पार्टी से अलग करने के पक्ष में नहीं है. कांग्रेस आलाकमान कोशिश में लगा है कि किसी तरह सिद्धू की सरकार में वापसी कराई जाए. काफी समय से कयास लगाए जा रहे हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस के साथ बनाए रखने की कोशिश हो सकती है. लेकिन, अमरिंदर सिंह इसके लिए राजी नजर नहीं आते हैं. पंजाब में कांग्रेस अपने सबसे पुराने सिपहसालार अमरिंदर सिंह को खोना नहीं चाहती है और सिद्धू को भी पार्टी में बनाए रखना चाहती है. यह कांग्रेस के लिए एक बहुत ही मुश्किल काम नजर आता है. तो कांग्रेस आलाकमान भी समय का इंतजार कर रहा है और खुद ही कुछ रास्ता निकल जाने की उम्मीद कर रहा है.

पंजाब कांग्रेस में पीके का दखल
मुख्यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपना मुख्‍य सलाहकार नियुक्‍त कर चुके हैं. इस नियुक्ति के बाद उन्होंने कांग्रेस के विधायकों के साथ एक बैठक की थी. जिसके बाद सवाल उठने लगे थे कि प्रशांत किशोर टिकट वितरण में भूमिका निभा सकते हैं. अमरिंदर सिंह ने साफ कर दिया है कि प्रशांत किशोर की भूमिका उनके मुख्य सलाहकार के रूप में ही सीमित है. लेकिन, पश्चिम बंगाल का उदाहरण लोगों के सामने है. तृणमूल कांग्रेस में प्रशांत किशोर के बढ़े दखल की वजह से विधानसभा चुनाव से पहले ही कई नेताओं ने टीएमसी का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था. पंजाब में भी ऐसी स्थितियां बनती दिख रही हैं. अमरिंदर सिंह लाख सफाई दें, लेकिन कांग्रेस नेताओं में फैली आशंका का समाधान होता नहीं दिख रहा है. पंजाब में एक मात्र डिसीजन मेकर अमरिंदर सिंह ही हैं. जानकारों की माने तो यहां कांग्रेस आलाकमान की भी कुछ खास नहीं सुनी जाती है. इस स्थिति में चुनाव से पहले नेताओं में टिकट कटने के डर की वजह से भगदड़ मच सकती है.

क्या सिद्धू बना सकते हैं नई पार्टी ?
नवजोत सिंह सिद्धू के पास पंजाब में दो ही विकल्प हैं. पहला ये कि वह कांग्रेस में ही बने रहें, जो अभी के उनके बदले तेवरों से कहीं से भी उनके हित में जाता नहीं दिख रहा है. कांग्रेस में रहते हुए उनकी गिनती हमेशा अमरिंदर सिंह के बाद ही की जाएगी. भाजपा में उनकी घर वापसी असंभव-सी नजर आती है, लेकिन राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं है और आम आदमी पार्टी ने सिद्धू के लिए अभी अपने दरवाजे नहीं खोले हैं. इस स्थिति में उनके पास दूसरा विकल्प नई पार्टी बनाने का ही हो सकता है. शायद यही वजह है कि उन्होंने अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर सिंह ही कैप्टन थे और रहेंगे जब तक वो चाहेंगे. कांग्रेस के पास तो कैप्टन के अलावा कोई विकल्प नहीं है. पंजाब प्रभारी हरीश रावत भी सिद्धू को सलाह दे चुके हैं कि उन्हें कैप्टन के हिसाब से ही चलना होगा. सूत्रों की माने तो अमरिंदर सिंह से नाराज कुछ कांग्रेस विधायकों को साथ लेते हुए सिद्धू पंजाब में एक बड़ा दांव चल सकते हैं. बता दें कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ विधायक मंत्रिमंडल में जगह न मिलने से नाराज चल रहे हैं और इसका फायदा सिद्धू उठा सकते हैं.

पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव होने हैं, पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के रास्ते अलग हो चुके हैं. कृषि कानूनों की वजह से दोनों की पार्टियों में तलाक हो चुका है. आम आदमी पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव में उतरने की कोशिश में जुटी है. कांग्रेस से अलग होकर सिद्धू अगर नई पार्टी बनाते हैं, तो इससे सीधे तौर पर कांग्रेस को नुकसान होगा. 117 सदस्यीय विधानसभा में 5 पार्टियों के बीच होने वाली चुनावी जंग निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी होगी.

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