महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम में ‘मैन ऑफ द मैच’ बने संजय राउत के तीखे तेवरों ने बनाई शिवसेना की सरकार

बाला साहब के सपने शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने में संजय राउत का बड़ा हाथ, विपरीत धूरी की पार्टियों को एक साथ लाने में कामयाब रहे राउत, सामना और ट्वीटर हैंडल से लगातार फडणवीस और बीजेपी सरकार को रखा निशाने पर

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. महाराष्ट्र में ठाकरे राज कायम हो गया और उद्वव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए. महाविकास अघाड़ी गठबंधन वाली इस सरकार के शिल्पकार शरद पवार रहे जिन्होंने अपने कुटिल चाणक्य दिमाग से बीजेपी के धुरंधर अमित शाह तक को मात दे दी, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में एक महीने चले इस सियासी मैच में ‘मैन ऑफ द मैच’ बने बाला साहब की सेना के सच्चे सिपाही संजय राउत (Sanjay Raut) की उनके सपने को पूरा करने की निष्ठा और तटस्थता को किसी तरह से कम नहीं आकां जा सकता. विधानसभा चुनाव के बाद से ही संजय राउत एक ही बात पर अडिग रहे कि चाहे कुछ भी हो मुख्यमंत्री शिवसेना का ही बनेगा. संजय राउत ने कहा कि पूरे महाराष्ट्र की जनता की भावना है और लाखों शिवसैनिकों की भी भावना है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही हो, ताकत के बल पर कोई महाराष्ट्र की कुंडली नहीं बदल सकता, ये बालासाहेब की सेना है और शतरंज खेलने में माहिर संजय राउत ने महाराष्ट्र की सियासत में इस तरह मोहरे फिट किए कि वे हारी हुई बाजी जीतने वाले ‘बाजीगर’ बन गए.

संजय राउत शिवसेना की ओर से राज्यसभा सांसद के साथ पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ के एग्जीक्यूटिव संपादक भी हैं. एक लेखक, एक रिपोर्टर के तौर पर जाने जाने वाले संजय अपने तीखे बोल की वजह से खासतौर पर पहचाने जाते हैं. महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे आने के बाद बीजेपी के साथ सत्ता के बंटवारे के तहत सरकार में बराबर की भागीदारी की मांग सबसे पहले संजय राउत (Sanjay Raut) ने ही उठाई. गौर करने वाली बात ये रही कि पार्टी प्रमुख उद्दव ठाकरे तक ने इस बारे में कोई टीका टिप्पणी नहीं की और एक तरह से राउत को ही फ्री हैंड दे दिया.

वे संजय राउत ही थे जो चुनावी नतीजों से पहले और बाद में भी लगातार शरद पवार सहित अन्य कांग्रेस नेताओं से संपर्क साध रहे थे. उन्हीं के कहने पर उद्दव ठाकरे ने एनसीपी की शर्त के अनुसार, मोदी सरकार में एक मात्र शिवसेना मंत्री अरविंद सावंत को मंत्री पद से इस्तीफा दिलवाया.

वे संजय राउत ही थे जिन्होंने एक तरफ तीनों पार्टियों का आपस में सम्पर्क बनाए रखा और दूसरी तरफ सामना के माध्यम से देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते रहे. उन्होंने किसानों सहित ऐसे मुद्दे प्रमुखता से उठाये जो फडणवीस और बीजेपी सरकार की कमजोर कड़ी थे. इसके अलावा, उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल को भी देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधने का प्रमुख अस्त्र बनाया और वहां से तीखे प्रहार जारी रखे. संजय राउत (Sanjay Raut) शिवसेना के ऐसे नेता रहे जो न केवल इन चुनावों में प्रमुखता से हाईलाइट हुए, बल्कि अपनी बात पर अडिग रहते हुए ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसकी आस बीजेपी तो क्या, खुद शिवसेना और उद्दव ठाकरे तक को नहीं थी.

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संजय राउत ने उद्दव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए राजी किया जो इस रेस में कभी थे ही नहीं. भाजपा से बातचीत में भी हमेशा उद्दव के बड़े बेटे आदित्य ठाकरे को ही सीएम पद का दावेदार बताया गया. लेकिन गठबंधन की दोनों पार्टियों के वीटो के बाद किसी अनुभवी को ही मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठी, यहां एक बार तो खुद संजय राउत (Sanjay Raut) का नाम भी शरद पवार ने मुख्यमंत्री के लिए उठाया और संकेत एकनाथ शिंदे के भी आने लगे. लेकिन राउत के प्रयासों के बाद आखिर में महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेता बनकर उद्दव बाला साहेब ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. गौर करने वाली बात ये भी रही कि न तो उद्दव ने चुनाव लड़ा और न ही सक्रिय तौर पर राजनीति की. हां, पर्दे के पीछे रहकर सत्ता को नियंत्रित जरूर किया.

महाविकास अघाड़ी सरकार के शिल्पकार रहे शरद पवार ने सबसे बड़ा जो काम किया वो यह कि कट्टर हिंदूवादी शिवसेना और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली कांग्रेस यानि दो विपरीत विचारधारा वाली कट्टर विरोधी पार्टियों को एक लाइन में लाकर खड़ा कर दिया. इस खासे मुश्किल काम में उनकी सहायता की संजय राउत ने जिनके बिना शायद ये सम्भव नहीं हो पाता. शरद पवार भी संजय राउत (Sanjay Raut) की भूमिका से अनभिज्ञ नहीं हैं. यही वजह रही कि तीनों पार्टियों की जब एक साथ परेड कराई गई तब उद्दव ठाकरे और शरद पवार ने संयुक्त तौर पर उन्हें महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति का ‘मैन ऑफ द मैच‘ कहकर पुकारा.

महाराष्ट्र की राजनीति के पल पल बदलते घटनाक्रम में एक दौर वो भी आया जब वे बीमारी के चलते लीलावती अस्पताल में भर्ती हुए. इस दौरान राज्यपाल ने एनसीपी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था लेकिन शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में आपसी संपर्क कमजोर पड़ने से सियासी गतिविधियां अचानक से बदल गई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. लेकिन संजय राउत ने जल्दी ही अस्पताल की चार दिवारी से निकलते हुए फिर से मोर्चा संभाला और तीनों पार्टियों के बीच टूटी कड़ियों को फिर से जोड़ते हुए बतौर एक सूत्रधार काम किया.

संजय राउत की मेहनत रंग लाई. इसके साथ ही कथित तौर पर शरद पवार की बेहद उच्च कोटि की सियासी रणनीति में पूरा महाराष्ट्र ऐसा उलझा कि बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह तक उलझ कर रह गये. शरद पवार ने ऐसी तिहरी चाल खेली कि एक ही झटके में राष्ट्रपति शासन भी हट गया, प्रदेश की सत्ता की कुर्सी पर गठबंधन का मुख्यमंत्री भी विराजमान हो गया और बीजेपी की छवि भी धूमिल कर दी.

खैर…जो भी हुआ, अंत भला तो सब भला. जो भी हुआ हो और जिसने भी किया हो, संजय राउत (Sanjay Raut) की ईमानदारी और पार्टी के प्रति निष्ठाभाव कम न हुआ. हालांकि इस पूरे सियासी नाटक से पर्दा गिरने से उठने तक संजय राउत को किसी बड़े पद के तौर पर कोई ईनाम भले ही न मिला हो लेकिन शिवसेना को एक वरिष्ठ नेता, प्रखर वाचक और एक रणनीतिकार जरूर मिल गया है जिसकी जरूरत उन्हें फिर से भविष्य में पड़ने वाली है.

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