पॉलिटॉक्स ब्यूरो. 17 दिसम्बर को एक साल पूरा होने पर सूबे के मुखिया अशोक गहलोत अपनी सरकार 3.0 के सेलिब्रेशन में जुटे हुए हैं. लेकिन ‘सरकार’ के इस जश्न से ‘छोटे सरकार’ की दूरी लोगों के समझ नहीं आ रही है (Sachin Pilot in one year of government). जी हां हम बात कर रहे हैं सूबे के उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच की पुरानी अदावत किसी से छिपी नहीं है. लेकिन कुछ महीनों की शांति के बाद सरकार के एक साल के जश्न पर एक बार फिर से दोनों के बीच की खींचतान साफ दिखाई दे रही है. केवल सचिन पायलट ही नहीं बल्कि उनके कैंप के अन्य मंत्री और विधायक भी समारोह में ‘रूठे हुए फूफा जी’ से ही नजर आ रहे हैं.
ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सरकार में सिर्फ अशोक गहलोत की ही चल रही है जिससे सचिन पायलट नाराज हैं या पूरे समारोह से सचिन पायलट को इग्नोर किया गया है जिससे नाराज होकर उन्होंने दूरी बना ली है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि 17 तारीख से शुरू हुए सरकार के एक साल के जश्न के कार्यक्रमों में अभी तक सचिन पायलट ने एक भी कार्यक्रम में अपनी मौजूदगी कहीं भी दर्ज नहीं करवाई है, पूरे समारोह की कमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संभाल रखी है. बताया गया कि सचिन पायलट झारखंड विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार के लिए गए हुए हैं. लेकिन यहां दो बातें काबिले गौर हैं, पहली, सरकार के एक साल समारोह कोई छोटा प्रोग्राम नहीं है जिसके लिए झारखंड दौरा आगे-पीछे एडजस्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि सचिन पायलट सरकार में उपमुख्यमंत्री होने के साथ-साथ संगठन के मुखिया भी हैं और सरकार कांग्रेस की है, ऐसे में उनकी दोहरी जिम्मेदारी बनती है. हालांकि 17 दिसम्बर को झारखंड में कहीं भी पायलट की रैली का कोई समाचार मिला नहीं.
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दूसरी बात, माना कि उस दिन आप प्रदेश में मौजूद नहीं थे लेकिन बुधवार शाम पायलट जयपुर लौट आए थे और बावजूद उसके गुरुवार को जयपुर में MSME कॉन्क्लेव में जहां सभी बड़े मंत्रियों का जमघट लगा लेकिन सचिन पायलट उस कार्यक्रम में भी नहीं पहुंचे. पायलट ने सरकार के इस कार्यक्रम मैं शिरकत करने की जगह अजमेर में कांग्रेस कार्यकर्ता को श्रद्धा सुमन अर्पित करने को तरजीह दी, जिसे आगे-पीछे किया जा सकता था. वहीं सरकार के एक साल का कार्यकाल पूरा होने पर जहां कृषि, चिकित्सा, महिला बाल विकास विभाग, उद्योग विभाग जैसे विभागों के लिये मुख्यमंत्री ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं लेकिन पंचायतीराज जैसे सबसे बड़े विभाग को इससे महरूम रखना भी कई सवाल खड़े करता है.
आखिर यह सवाल इसलिए भी खड़े हो रहे हैं क्योंकि लगभग एक महीने से जिस जश्न की तैयारी में सरकार और संगठन पदाधिकारी जुटे थे, उन सभी मीटिंग्स में सीएम अशोक गहलोत के साथ पायलट भी मौजूद रहे थे. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि पायलट ने सरकार के किसी भी कार्यक्रम में शिरकत करना उचित नहीं समझा जबकि कार्यक्रम की सारी रूपरेखा एक-दो महीने पहले ही तय हो गई थी. यहां तक कि पायलट ग्रुप के माने जाने वाले मंत्रियों और विधायकों में भी सरकार के एक साल के कार्यक्रमों कोई खास उत्साह नजर नहीं आया, बल्कि एक अजीब सी खामोशी नोटिस की गई.
वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सरकार का एक साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मीडिया पर विज्ञापन लेकर भी सरकार का प्रचार नहीं करने सम्बन्धी बयान को सचिन पायलट ने गैर-वाजिब बताते हुए उन्हें नसीहत तक दे दी कि हमें मीडिया के सामने सोच समझकर बोलना चाहिए, जो बातें हम मोदी सरकार के लिए कहते हैं, वो हम पर भी लागू होती है. पायलट ने कहा कि मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं है कि उन्होंने क्या कहा है लेकिन अगर ऐसा है तो वह गलत है, मीडिया को आलोचना का अधिकार है, इससे व्यक्तित्व निखर कर आता है.
पायलट की गहलोत को नसीहत- ‘मोदी सरकार के बारे में हम सब जो बोलते है वो हम पर भी लागू होता है’
ऐसे में पायलट का मुख्यमंत्री का बचाव करने के बजाए उनके बयान को गलत बताना इस बात को पुख्ता करता है कि सूबे में ‘सरकार’ और ‘छोटे सरकार’ के बीच ऑल-इज-वेल नहीं है. वहीं सोनिया गांधी के फिर से कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद से सोनिया समर्थक लॉबी का कांग्रेस में शिखर पर आना और राहुल लॉबी के नेताओं का हाशिए पर जाना भी कहीं ना कहीं इसका बड़ा कारण है (Sachin Pilot in one year of government). खैर, मुख्यमंत्री गहलोत और उपमुख्यमंत्री पायलट के बीच की बढ़ती अदावत भविष्य में ना तो कांग्रेस की राजनीति के लिए ही ठीक है और ना ही प्रदेश की जनता के लिए, कहीं ना कहीं इस खींचतान का असर प्रदेश के विकास पर भी पड़ेगा.