गहलोत की प्यार भरी चेतावनी बनी चर्चा का विषय, सुधीजनों ने कहा “ऐसा नहीं होता सरकार..! यह लोकतंत्र है राजतंत्र नहीं”

'मीडिया संस्थान विज्ञापन तो ले लेते हैं लेकिन सरकार की योजनाओं या देश हित में सावर्जनिक मंच से की गई बात का प्रचार-प्रसार नहीं करते हैं, उसके लिए फोन करके रिक्वेस्ट करनी पड़ती है'

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान की कांग्रेस सरकार का एक साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा मीडिया (Gehlot on Media) संस्थानों को दी गई प्यार भरी चेतावनी हर मीडिया हाउस और राजनेताओं में चर्चा का विषय बनी रही. अपनी सरकार के एक साल पूरा होने पर पत्रकार वार्ता के दौरान सीएम गहलोत ने मीडिया घरानों और पत्रकारों को बातों-बातों में कहा कि, ‘मीडिया संस्थान विज्ञापन तो ले लेते हैं लेकिन सरकार की योजनाओं या देश हित में सावर्जनिक मंच से की गई बात का प्रचार-प्रसार नहीं करते हैं, उसके लिए फोन करके रिक्वेस्ट करनी पड़ती है’. तो क्या अब जो मीडिया हाउस सरकार का प्रचार-प्रसार करेगा उसी को विज्ञापन मिलेगा? या जो सरकार की कमियां उजागर करेगा उसको सरकारी विज्ञापन से वंचित कर दिया जाएगा?

दरअसल इन दिनों कुछ (Gehlot on Media) मीडिया संस्थान सिर्फ गहलोत सरकार की कमियां उजागर करने में लगे हैं जो कि वैसे तो मीडिया का काम भी है. मीडिया को “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” भी कहा गया है जिसका काम सरकार की अच्छी और बुरी बातें लोगों तक पहुंचाना है, लेकिन कुछ मीडिया हाउस केवल सरकार की गलतियां ही उजागर कर रहे हैं और कुछ मीडिया संस्थान या हाउस सरकार का गुणगान ही करने में लगे हैं. ऐसे में आम लोगों के लिए अब मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानना भी बेमानी सा लगने लगा है.

वहीं यह कहना भी जरूरी हो जाता है कि कुछ मीडिया संस्थान (Gehlot on Media) तो जैसे सरकार की गोद में ही चले गए हैं, ऐसे में अब जो शेष संस्थान है जो सरकार की कमियां भी उजागर करते हैं तो सरकार को बुरा लगता है लेकिन यह बात भी यहां कहना तो बनता ही है जिस मीडिया ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की उपाधि पाई है अब उसे पूरी तरह खत्म किया जा रहा है इसलिए अब लोगों का मीडिया के प्रति विश्वास भी कम होता जा रहा है.

गौरतलब है कि पिछली वसुंधरा सरकार में मीडिया को प्रतिबन्धित करने के लिए कुछ नियम सरकार ने बनाए थे जिसका उस वक्त प्रदेश कांग्रेस में सरपरस्त रहे अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने पुरजोर विरोध किया था और सरकार बनने से पूर्व मीडिया को लेकर काफी बड़ी बड़ी बातें भी कही थी जिनमें मीडिया पर कानून या नियमों को थोपना गलत भी बताया था (Gehlot on Media). लेकिन आज जब मीडिया फ्रेंडली माने जाने वाले गहलोत की सरकार के बारे में पत्रकार कुछ लिखते हैं तो उन्हें यह गलत क्यों लगता है? अगर ऐसा ही चला तो फिर राजस्थान में या कहीं और भी ऐसा सभी सरकारों को लगने लगे तो मीडिया की जरूरत ही क्या रह जाएगी? क्योंकि मीडिया सरकार को आईना दिखाने का काम करता है और आईना कभी झूठ नहीं बोलता… लेकिन ऐसा ही चला तो मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ शायद गिर जाएगा.

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बहरहाल कुछ वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और पत्रकारों ने दबे स्वरों में ना सिर्फ इसे गलत बताया बल्कि गहलोत सरकार के लिए प्यार भरे अंदाज में यह भी कह दिया कि यह “लोकतंत्र है राजतंत्र नहीं” अगर ऐसा ही चलेगा तो ना आपकी सरकार को अपनी कमियों का पता चलेगा और ना ही सरकार उसे दूर करने का प्रयास करेगी (Gehlot on Media) और यह कदम सरकार के लिए खुद अपने लिए खड्डा खोदने जैसा होगा. अगर यही चला तो आपके पास भी चापलूसों की फौज नजर आने लगेगी जो किसी भी सरकार में दीमक की तरह काम करती है और ये तो सब जानते ही है कि दीमक जहां भी लगती है वो उसे खाकर ही अपना पेट भरती है. आप (श्रीमान अशोक गहलोत) क्या कोई भी शायद ऐसा नहीं चाहेगा और आप तो वैसे भी अपनी सूझबूझ के लिये पहचाने जाते हैं और फिर आपकी मंशा भी कुछ और ही है तो उसे खुलकर सबके सामने आने दीजिये गहलोत सर. ऐसा नहीं करना आप की छवि के खिलाफ है और शायद आप भी अपनी छवि नहीं बिगाड़ना चाहेंगे. अगर सरकार को पाबन्दी लगानी ही है तो उन पर लगाए जो मीडिया हाउस सिर्फ अपना पेट भरने में लगे हैं, जिनका पत्रकारिता से कोई सरोकार नहीं, अब बाकी तो सरकार खुद समझदार है..।

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