राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से नेतृत्वहीन हुई कांग्रेस पार्टी को अपना नया अध्य्क्ष 10 अगस्त को होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में मिलने की प्रबल सम्भावना है. इसके लिए पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी है. गौरतलब है कि लोकसभा में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद राहुल गांधी को इस्तीफा वापस लेने के लिए कई बार मनाने के प्रयास किये गए लेकिन राहुल गांधी अपने रुख पर अडिग रहे और साथ में यह भी स्पष्ट कर दिया कि न तो वह और ना ही गांधी परिवार का कोई दूसरा सदस्य अब इस जिम्मेदारी को सम्भालेगा.

राहुल गांधी के इस तटस्थ फैसले के बाद यह तो तय है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन यह नहीं पता कौन होगा. गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कई योग्यताओं को पूरा करना होगा, इसके बाद ही उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो पायेगी.

गांधी परिवार के प्रति वफादारीः

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए नेहरू-गांधी परिवार के प्रति वफादारी पहली कसौटी है, जिस पर खरा उतरे बगैर किसी भी नेता को पार्टी की कमान नहीं मिल सकती है. कांग्रेस का अगला अध्यक्ष वही होगा जो गांधी परिवार के नजदीक होगा, हालांकि 30 साल के लंबे समय से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना है. लेकिन 2004 से 2014 तक यानी 10 साल तक केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की सरकार थी, गांधी परिवार के बाहर के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. लेकिन उस समय भी सत्ता की चाबी गांधी परिवार यानि सोनिया गांधी के पास ही रही. अब राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को इसी तर्ज पर गांधी परिवार से मुक्त करना चाहते है. वो पार्टी की कमान अपने सबसे भरोसेमंद साथी के हाथों में सौंपना चाहते है ताकि जब भी वो चाहे पुनः कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले पायें.

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राष्ट्रीय पहचानः

राहुल गांधी के विकल्प में कांग्रेस को ऐसे नेता की तलाश है, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की हो. दरअसल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका राजनीतिक रुप से फैलाव उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के सभी राज्यों में फैला हुआ है. इसी वजह से कांग्रेस ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाएंगी जो देश के हर हिस्से में अपनी पहचान रखता हो.

हिंदी भाषी राज्य से हो तो बेस्ट:

कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के लिए सबसे जरुरी योग्यता यह है कि अध्यक्ष बनने वाले नेता की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए. इसके पीछे मकसद है कि वो उत्तर भारत के लोगों तक अपनी बातों को असानी से पहुंचा सके, जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी बातों को समझने में सफल रहते हैं. ठीक उसी प्रकार वो भी अपनी बात जनता को समझाने में कामयाब रहे. कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीद इन्हीं हिंदी भाषी राज्यों से थी, लेकिन यहां के नतीजे उसके अनुमान के बिल्कुल उलट आए.

संघर्षशील नेताः

सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए सड़क पर संघर्ष करते कम ही नजर आए हैं, हालांकि राहुल आखिर के दिनों में कई बार जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर नजर आए. लेकिन सोनिया गांधी अपने कार्यकाल के दौरान एक बार भी ऐसा करती नजर नहीं आई. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए इसको भी जिम्मेदार मानती है. इसीलिए वो इस बार ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है, जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरकर संघर्ष करें और सरकार को घेर सके.

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, शशि थरूर, शत्रुघन सिन्हा समेत कुछ और कांग्रेस नेताओं ने प्रियंका गांधी के नाम को आगे बढ़ाया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में राजनीतिक फैसलों के साथ-साथ सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखा जाएगा. खैर, प्रियंका गांधी ने भी इस जिम्मेदारी को लेने से साफ मना कर दिया है.

पिछले लगभग 2 माह में कांग्रेस को नेतृत्व के अभाव में जो भारी नुकसान और फ़जीयत सहन करनी पड़ी है वो किसी से छुपी नहीं है. बात चाहे गोवा और कर्नाटक के घटनाक्रम की हो या लोकसभा या राज्यसभा बनी लाचारी की कांग्रेस को हर मोर्चे पर मात खानी पड़ी है. इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी में एक मजबूत नेतृत्व का अभाव जिसके चलते पार्टी अब बिखरने लगी है.

वर्तमान में कांग्रेस के सबसे संकटपूर्ण दौर में जबकि अभी गांधी परिवार का नेतृत्व होते हुए ही जब पार्टी के कई नेता सरेआम पार्टी विचारधारा से अपनी असहमति जता रहे हैं, तब गांधी परिवार से बाहर के नये नेतृत्व के लिए भविष्य की चुनौती कितनी गंभीर होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. बहरहाल, आने वाले महीनों में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस कम से कम अपना नया अंतरिम अध्यक्ष तो चुन ही लेगी.

बता दें, बीजेपी ने आगामी महीनों में होने आगामी महीनों में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी का बिगुल बजा दिया है. बीजेपी के चाणक्य राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है.

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