सबसे पहले पॉलिटॉक्स के सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं, प्रत्येक देशवासी के जीवन में हर्ष, उल्लास और समृद्धि के रंग हमेशा बिखरे रहें…
Politalks.News/PoliticalHoli. देशभर में होली का उल्लास (Celebration of Holi) छाया है, लेकिन सियासी होली की बात ही कुछ और है. सियासी जानकारों का कहना है कि यूं तो किसी भी बड़े चुनाव के नतीजे पक्ष में आने के बाद राजनीतिक दलों के लिए अमूमन हर दिवाली या होली सियासी रंगों से सराबोर होती है. वोटों में मिली जीत से कार्यकर्ताओं का उत्साह दोगुना हो जाता है और नई उम्मीदें हिलोरें लेने लगती हैं. इस होली पर भी हाल में पांच राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद फाल्गुन के माह में कुछ ऐसे ही हालात हैं. इन चुनावों में पंजाब (Punjab Assembly) को छोड़ बाकी चार राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) एक बार फिर से सत्ता में लौटी है, इसलिए जोश का ‘भगवा‘ (Bhagwa) गुलाल कुछ ज्यादा ही उड़ रहा है. दूसरी तरफ बात करें सीजन के सौदागरों की तो इस बार होली का सियासी रंग ‘भगवा’ है. वहीं केसरिया रंग के गुलाल के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के मुखौटों की मांग बढ़ी. आलम यह है कि थोक कारोबारियों के यहां माल हाथों हाथ बिक गया. माल कम होने की वजह से सप्लाई तक बंद हो गई है. छोटे कारोबारियों को मांग मुताबिक पूरा माल नहीं मिल पाया.
यूपी में भाजपा का धमाल, विपक्ष के लिए साबित हुई ‘लठ्ठमार’ होली
भाजपा की सबसे ज्यादा धूम मचाने वाली होली तो आज उत्तर प्रदेश में मन रही है. यूपी में मिली जीत ने भाजपा का होली का मजा दोगुना कर दिया है. माना जा रहा है कि दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ 24 मार्च को लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी इकाना क्रिकेट स्टेडियम में शपथ ले सकते हैं. इस भव्य शपथग्रहण समारोह को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और 200 वीवीआइपी गेस्ट बुलवाने की तैयारी है. दूसरी तरफ पूरे पूरे उत्तरप्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए तो 10 मार्च से ही होली जारी है. भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी में भाजपा बंपर बहुमत से सत्ता में लौटी है, लिहाजा होली के केन्द्र मथुरा-वृंदावन में भगवा रंग बेहद गाढ़ा है, उस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का न उतरने वाला देसी रंग अलग से चढ़ा हुआ है. जबकि बीते विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के लिए यह ‘लठमार‘ होली साबित हुई है. उस खेमे में निराशा है, साथ ही ‘जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ कर‘ होली खेलने का संतुष्टि भाव भी है.
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उत्तराखंड में चढ़ ही गया भगवा
हालांकि भाजपा को उत्तराखंड में पार्टी की खींचतान के चलते मुख्यमंत्री का नाम तय होने में दिक्कत पेश आ रही है. लेकिन चुनाव के पहले भाजपा में भारी अंतर्कलह और पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद भी मतदाताओं ने अगर भाजपा को ही भरपूर बहुमत दिया तो यह वोटर्स के भगवा रंग में रंगे होने का ही प्रमाण है, जो दूसरे किसी रंग के प्रति आकर्षित ही नहीं हो रहा. दिलचस्प बात यह है कि जहां भीतरी कलह के लिए मतदाता ने पंजाब में पूर्व में सत्तारूढ़ कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर काला रंग पोता तो इसी बीमारी से ग्रस्त भाजपा को उत्तराखंड में सत्ता से नवाज कर गुलाबी रंग में रंगा.
गोवा में सावंत कार्यकर्ताओं साथ मनाएंगे- शिमगोत्सव
गोवा में नए सीएम के रूप में प्रमोद सावंत का नाम फिर तय होने के बाद वहां होली के अवसर पर मनाए जाने वाले ‘शिमगोत्सव’ में नई जान आ गई है. यह त्यौहार गोवा में रंगपंचमी के मौके पर मनाया जाता है. प्रमोद सावंत लो प्रोफाइल होने के बाद भी पार्टी को दूसरी सत्ता के दरवाजे तक ले जाने वाले नेता साबित हुए हैं. दरअसल, सावंत मराठा हैं और उन्हें फिर से सीएम की कुर्सी देकर भाजपा ने न सिर्फ गोवा बल्कि पड़ोसी महाराष्ट्र को भी एक राजनीतिक संदेश दिया है. शिमगा गोवा का पारंपरिक त्यौहार है, जो मछुआरा समुदाय में भी काफी लोकप्रिय है.
मणिपुर में भाजपा का रंगोत्सव ‘योशांग’
उधर, मणिपुर में भी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का दोबारा सत्ता संभालना तय है. हालांकि मणिपुर में होली नहीं मनाई जाती, लेकिन होली जैसा रंगोत्सव ‘योशांग’ हर साल मार्च के अंत में मनाया जाता है, जो 6 दिनों तक चलता है, ये त्यौहार मणिपुरी माह लाम्डा की पूर्णिमा से शुरू होता है. राज्य के सबसे प्रभावशाली मैतेई समुदाय में यह त्यौहार बेहद लोकप्रिय है. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से हैं और राजनीतिक रूप से यह समुदाय अब काफी हद तक भगवा रंग में रंग गया है.
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पंजाब ने मनाई आप की ‘क्रांतिकारी’ होली
पंजाब में प्रचंड बहुमत से चुनाव जीती आम आदमी पार्टी के लिए तो यह क्रांतिकारी होली है. लोगों को उम्मीद तो थी कि आप वहां सरकार बना सकती है, लेकिन इतने भारी बहुमत से बनाएगी, यह तो शायद अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने भी नहीं सोचा होगा. यही कारण है कि मान ने सीएम के रूप में अपनी शपथ ग्रहण के लिए शहीदे आजम भगत सिंह की जन्म स्थली खटकड़कलां को चुना. दरअसल, पंजाब में देश के बाकी उत्तर भारतीय राज्यों से हटकर होली को ‘होला मोहल्ला’ के रूप में मनाने की प्रथा है, जिसे सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने शुरू की थी. होली के दौरान निहंग सिख पूरे लाव लश्कर के साथ अपनी पारंपरिक युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं. जिसमें शौर्य और त्याग का मिलाजुला रंग होता है. पंजाब में अब सत्ता की कमान उन भगवंत मान के हाथ में है, जिन्होंने नेता के बजाए जनता ही बने रहने की कसम खाई है. बता दें कि भगवंत मान पूर्व कमेडियन रह चुके हैं.
भाजपाईयों के चेहरे पर रौनक, तो सपा, कांग्रेस, बसपा के चेहरे मायूस
अपेक्षा से कहीं ज्यादा अच्छे नतीजे आने से जहां भाजपाइयों के चेहरों पर रौनक है तो दूसरी तरफ सपा, कांग्रेस व बसपा के समर्थक बेहद मायूस हैं. होली के भाड़ुओं की माने तो विपक्ष को जनता ने वोटों के कोड़े मारे हैं और जमकर टोटा भी किया है. नतीजों का असर सियासी पार्टियों के दफ्तरों पर भी नजर आ रहा है. भाजपा कार्यालय में उत्साही कार्यकर्ता जश्न मना रहे हैं तो सपा, रालोद, बसपा व कांग्रेस के दफ्तरों व नेताओं के घरों पर सन्नाटा पसरा है. चुनाव नतीजे सपा-रालोद गठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं. हालांकि चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के कई बड़े नेता इस बार विधानसभा की चौखट तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सके लेकिन कुल मिलाकर पार्टी की जबर्दस्त कामयाबी ने इस जख्म पर मरहम लगा दिया.
अखिलेश-जयंत का रंग पड़ा फीका
पीएम नरेंद्र मोदी व सीएम योगी आदित्यनाथ की जोड़ी के सामने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी का रंग फीका पड़ गया. कांग्रेस और मायावती के बाद जयंत को साथ लेकर चुनावी किला फतह करने का सपा का तीसरा प्रयोग भी सफल नहीं हो सका. मतदाताओं ने न सिर्फ सपा और उसके सहयोगियों नकार दिया बल्कि इनके सियासी प्रयोग की ऐसी हवा निकाली जिसकी टीस इन्हें लंबे वक्त तक सताती रहेगी. प्रदेश के मतदाताओं ने साफ कर दिया कि चुनावी फायदे के लिए ‘बेमेल साथ’ उसे पसंद नहीं आया.
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मायावती और प्रियंका ‘रंग’ भी रहा बेअसर
मोदी और योगी की भगवा आंधी ने बसपा प्रमुख मायावती व कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा गांधी का रंग भी उड़ा दिया है. बसपा के नीले और कांग्रेस के तिरंगे पर भाजपा का चटख भगवा रंग चढ़ गया. इस बार के मायावती जिस तरह से चुनाव मैदान में नजर आ रही थीं उसे देखते हुए माना जा रहा था कि वह बहुत गंभीर नहीं है. इसी का नतीजा रहा कि बसपा सीटों के लिहाज से 2017 के आंकड़े के आसपास भी नहीं पहुंच सकी. बसपा को अपना वोट बैंक गंवाकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी. चुनाव नतीजों से साफ है कि बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में भाजपा और सपा कामयाब रही, जिसमें भाजपा के पाले में बड़ा हिस्सा गया.
वहीं इन नतीजों से इतना तो साफ हो गया कि अब दलित उनके साथ पहले की तरह जुड़ा नहीं रह गया है. अलबत्ता प्रियंका गांधी पूरे चुनाव में सक्रिय तो रहीं लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी और एक के बाद एक कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर भाजपा में चले जाने की वजह से कांग्रेस पूरे चुनाव में मुकाबले से बाहर ही नजर आई. इक्का-दुक्का सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों ने अपने समीकरणों और दम के आधार पर जरूर अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुत मजबूत उपस्थिति दर्ज नहीं करा सकी.